सुरेश चिपलूनकर।इंदौर शहर के सिंधियों ने अपने-अपने मंदिरों से गुरुग्रंथ साहिब की लगभग 80 प्रतियों को इमली साहब गुरूद्वारे को सौंप दिया है. मामला ये है कि अमृतसर से कुछ निहंग सिख इंदौर आए थे और उन्होंने यह सिंधी समाज को ये कहकर धमकाया कि उनके मंदिरों में सिख धर्म के अलावा अन्य देवताओं की भी पूजा होती है, इसलिए हमारे गुरुग्रंथ साहब का पर्याप्त सम्मान नहीं होता है… अतः या तो अपने मंदिरों से गुरुग्रंथ साहब को छोड़कर बाकी सभी देवताओं को हटा लो, या फिर हमारे ग्रंथी साहब उन मंदिरों में आकर गुरुग्रंथ साहब की पूजा करेंगे तथा उन मंदिरों को गुरुद्वारा घोषित कर दिया जाएगा.
ये निहंग लोग, गुरुग्रंथ साहब के अपमान की शिकायत लेकर पुलिस रिपोर्ट भी करना चाहते थे. उन्होंने सिंधियों के कुछ मंदिरों से गुरुग्रंथ साहब की प्रतियां भी उठा लीं… इसके पश्चात सिन्धी समाज ने टकराव एवं दोनों समाजों में कटुता टालने की खातिर एक समिति का गठन किया, जिसने निर्णय के अनुसार सिंधी समाज ने बड़े ही भारी मन से यह तय किया कि उनके पास जितने भी गुरुग्रंथ साहब हैं, उन्हें वे अपने निकट के गुरूद्वारे में सौंप देंगे…
उल्लेखनीय है कि कई सौ वर्षों से सिंधी समाज में गुरुग्रंथ साहब की पूजा एवं पठन किया जाता है. गुरुनानक जी भी सिंध प्रांत में आए थे, तथा सिंधी समाज में उनकी शिक्षाओं का प्रसार हुआ है. सिंधियों के मंदिरों में वर्षों से एक तरफ ग्रंथसाहब तथा दूसरी तरफ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ तथा भगवद्गीता होती हैं.
निहंगों का आरोप था कि सिन्धी समाज गुरुग्रंथ का पूजन ठीक से नहीं करता है, जबकि वास्तव में बात ये है कि सिंधियों एवं सिखों में गुरुग्रंथ साहब की पूजन पद्धति थोड़ी अलग-अलग है.
कुल मिलकर बात ये है कि पंजाब से निकली यह कट्टरता अब निहंगों के माध्यम से धीरे-धीरे अन्य शहरों में फैलाई जा रही है… जबकि गुरुग्रंथ साहब का अपमान कोई कभी नहीं करता है… परन्तु खुद को “अलग दिखाने” की होड़ तथा धार्मिक-राजनैतिक विवाद एवं कटुता फैलाने के लिए इस पद्धति का उपयोग किया जा रहा है… बहरहाल… इंदौर के सिंधी समाज ने उचित निर्णय लेकर अपने पास मौजूद ग्रंथसाहब की सभी प्रतियां ग्रंथियों को सौंप दी हैं, और वे केवल भगवान् झूलेलाल सहित अन्य देवता ही अपने मंदिरों में रखेंगे…
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नोट :- वैसे हिन्दू-सिख आपस में इतना अधिक गुँथे हुए हैं कि मैंने शायद कहीं पढ़ा है कि अगर कोई कट्टर व्यक्ति गुरुग्रंथ साहब के पृष्ठों में उल्लिखित हिन्दू देवताओं, एवं उनके उल्लेखों को एक-एक करके हटाना शुरू कर दे, तो अंत में उसके हाथ में ग्रंथसाहब की केवल जिल्द ही बची रह जाएगी…