तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने पहली बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर 20 मई 2011 को शपथ ली थी। दूसरी बार ममता ने 27 मई 2016 को मुख्यमंत्री पद संभाला। इस दौरान राजनीति में कई बदलाव आए पर ममता का टकराव भरा रवैया लगातार जारी है। 2009 में तृणमूल कांग्रेस मनमोहन सिंह सरकार में हिस्सा रही। 2011 में ममता सरकार में कांग्रेस शामिल थी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के बावजूद केंद्र के खिलाफ ममता ने मोर्चा खोल दिया। मनमोहन सरकार की नीतियों को लेकर आलोचना की। ममता ने 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के खिलाफ पहले दिन से मोर्चा खोल रखा है। हाल-फिलहाल में देखे तो कोरोना महामारी के प्रकोप को लेकर ममता बनर्जी ने हर बात पर एतराज जताया। 20 मई को अम्फन तूफान को लेकर दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बैठक में बंगाल के रेजीडेंट कमिश्नर को बुलाए जाने पर ममता सरकार ने तूफान खड़ा कर दिया। प्रवासी मजदूरों की वापसी और बंगाल के लोगों को लेकर आने के मसले पर भी केंद्र, भाजपा और ममता में तनातनी चल रही है। बंगाल की सीमा पर नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से आने वाले ट्रकों को लेकर भी केंद्र-ममता में टकराव रहा। रेल चलाने, विमान उड़ाने समेत कई मुद्दों पर तनातनी हुई। भाजपा नेताओं के ममता सरकार के खिलाफ ‘मिसिंग ममता‘, भय पेयेचे ममता, ‘कोथाय आचे ममता‘ के बाद ‘ममताडाहाफेल‘ अभियान चलाने और हुगली के तेलिनीपाड़ा में हुए दंगे को लेकर सोशल मीडिया में सवाल उठाने पर पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और आईटी सैल के प्रभारी अमित मालवीय के खिलाफ हुई रिपोर्ट पर पुलिस ने जांच शुरु कर दी। सांसद अर्जुन सिंह और लॉकेट चटर्जी समेत कई नेताओँ पर मामले दर्ज किए गए। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ से टकराव में तो राजनीतिक औपचारिकता की भी सभी हदें पार हो गई है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच सामान्य शिष्टाचार भी नहीं है।
राज्य में भाजपा को रोकने के लिए कभी कांग्रेस तो कभी वामदलों की तरफ हाथ बढ़ाने के संकेत देती रही ममता बनर्जी ने राजनीति चमकाने के लिए मनमोहन सिंह सरकार के दौरान रेल किराये बढ़ाने पर तत्कालीन रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के सांसद दिनेश त्रिवेदी से इस्तीफा दिलवा दिया था। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस सरकार में थी जरूर पर, कांग्रेस के मंत्री और विधायकों को ममता बनर्जी कोई तवज्जो नहीं देती थी। कम्युनिस्ट राज में धुनते रहे कांग्रेसियों की ममता राज में भी जमकर पिटाई होती रही। कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं की हत्याओं के आरोप तृणमूल कांग्रेस के नेताओं पर लगे। उस समय ममता ने दिनेश त्रिवेदी का जबरन इस्तीफा दिलवाकर मुकुल राय को रेल मंत्री बनवा दिया और कुछ समय के लिए समर्थन दे दिया। 21 मई 2012 को तृणमूल कांग्रेस के सभी छह मंत्रियों ने ममता बनर्जी के कहने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार से इस्तीफा दे दिया। उस समय लोकसभा में तृणमूल के 19 सांसद थे। तृणमूल ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस लिया तो समाजवादी पार्टी के 22 और बहुजन समाज पार्टी 21 सांसदों सरकार बचा ली। 22 सितंबर 2012 को पश्चिम बंगाल सरकार में शामिल कांग्रेस के सभी छह मंत्रियों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद तो मनमोहन और ममता सरकार में कई बार टकराव हुआ। तत्कालीन राज्यपाल एम के नारायण से भी ममता, ममता के मंत्रियों और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं से टकराव चला। ममता की राज्यपाल रहे केसरीनाथ त्रिपाठी से अनबन रही। केन्द्र में 2014 में भाजपा के नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के बनने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार टकराव के रास्ते पर हैं। 2014 में पश्चिम बंगाल में भाजपा की कोई खास ताकत नहीं थी। इसके बावजूद ममता बनर्जी ने 2014 मोदी के शपथग्रहण में हिस्सा नहीं लिया था और अपने प्रतिनिधि अमित मित्रा और मुकुल रॉय को भेजा था। रॉय बाद में भाजपा में शामिल हो गए। ममता बनर्जी ने 2019 में भी मोदी के शपथ ग्रहण में हिस्सा नहीं लिया था। ममता बनर्जी ने लगातार दूसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर 27 मई 2016 को शपथ ली थी। तृणमूल कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर कांग्रेस-वाम गठबंधन और भाजपा को मात देते हुए 294 में से 211 सीटों पर जीत हासिल की थी। ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री रहते हुए नौ साल केंद्र, राज्यपाल और भाजपा से लड़ते हुए बिताएं। मोदी सरकार की योजनाओं, केंद्रीय मंत्रालयों के द्वारा भेजे गए निर्देश और राज्यपाल की सलाह और निर्देशों को ममता बनर्जी ने बार-बार मानने से इंकार कर दिया। साथ ही चुनाव आयोग, केंद्रीय सुरक्षा बलों और सेना की भी आलोचना की। ममता बनर्जी केंद्र की योजनाओं के नाम बदल दिए। पश्चिम बंगाल में ‘दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना’ का नाम ‘आनंदाधारा’, ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का ‘मिशन निर्मल बांग्ला’, ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ का ‘सबर घरे आलो’,‘राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ को ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को ‘बांग्लार ग्राम सड़क योजना’ और ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का नाम बदलकर ‘बांग्लार गृह प्रकल्प योजना’ कर दिया गया।
कोरोना महामारी के प्रकोप के दौरान तो केंद्र से ममता का टकराव और तेज हो गया। ममता ने राजभवन की पूरी तरह अनदेखी कर दी है। राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बार-बार सूचनाएं मांगने पर भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं। ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी के 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज को ममता ने बिग जीरो बताया। ममता बनर्जी का कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज को देश की जनता के साथ धोखा है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा राहत के कदमों का ऐलान के बाद ममता ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब पीएम ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की तो लोगों को उम्मीद थी कि कुछ मिलेगा, राज्यों के हितों पर ध्यान दिया जाएगा, एफआरबीएम की सीमा बढ़ाई जाएगी लेकिन वित्त मंत्री की घोषणाओं के बाद पता चला कि सभी छले गए हैं, उन्हें कुछ नहीं मिला है। आर्थिक पैकेज महज धोखा है और इसमें राज्यों को कुछ नहीं मिला है। ममता ने तो केंद्र सरकार पर संघीय व्यवस्था को ध्वस्त करने का भी आरोप लगाया। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर कहा कि पीएम मोदी के भाषणों में उत्तर कोरिया के पूर्व तानाशाह किम जोंग इल की झलक मिलती है। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इस पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की गई।
ममता बनर्जी ने 11 मई को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक को लेकर नाराजगी जताई। बैठक के अगले दिन ममता ने कहा कि जब भी पीएम के साथ मीटिंग होती है तो हमें उम्मीद रहती है कि कुछ मिलेगा, लेकिन हमें हर बार निराशा हाथ लगती है। इस मीटिंग से बंगाल को कुछ हासिल नहीं हुआ और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। ममता का यह भी कहना था कि राज्य को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में केंद्र से कोई वित्तीय सहयोग नहीं मिला। राज्य का 52,000 करोड़ रुपये भी केंद्र नहीं दे रहा है। बैठक के दौरान ही ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया और कहा कि इस मुश्किल घड़ी में किसी भी दल को राजनीति नहीं करनी चाहिए। केंद्र से संघीय ढांचा बरकरार रखने की अपील करते हुए ममता ने आपत्ति जताई और कहा कि बंगाल को लिखी केंद्र की चिट्ठी पहले ही लीक हो जाती है। प्रवासी श्रमिकों को लेकर गृह मंत्री अमित शाह की चिट्ठी को लेकर ममता ने यह सवाल उठाय़ा था। इससे पहले लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी श्रमिकों को लेकर केन्द्र और बंगाल में टकराव तेज हो गया था। दरअसल पश्चिम बंगाल में प्रवासी मजदूरों की परेशानी को लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने ममता बनर्जी को पत्र लिखकर कहा था कि प्रवासी श्रमिकों को घर पहुंचाने में राज्य सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है। प्रवासी मजूदरों को लेकर भाजपा ने भी ममता सरकार आरोप लगाए थे। अमित शाह ने भी अपने पत्र में जिक्र किया कि राज्य सरकार का रवैया श्रमिकों के साथ अन्याय है। शाह ने पत्र में लिखा था कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के बीच दो लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचने में मदद दी। देशभर में फंसे पश्चिम बंगाल के मजदूरों की भी बड़ी संख्या है, जो अपने गृह राज्य लौटना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार को राज्य से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। रेलवे द्वारा संचालित श्रमिक ट्रेनों को बंगाल नहीं पहुंचने दिया जा रहा है। राज्य सरकार का यह असहयोगात्मक रवैया मजदूरों की मुश्किलें बढ़ाने वाला है।अमित शाह के पत्र पर तिलमिलाए ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी ने शाह से आरोप साबित करने या माफी मांगने की मांग की।
अभिषेक बनर्जी ने ट्वीट किया कि संकट के दौरान अपने कर्तव्यों निर्वहन करने में नाकाम रहे गृह मंत्री केवल झूठ बोल कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। हालांकि बाद में रेलवे की तरफ से साफ कर दिया गया कि पश्चिम बंगाल तक श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि बंगाल सरकार कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना से प्रवासियों को लाने के लिए आठ ट्रेन चलाने की पहले ही योजना बना चुकी है। इस पर रेलवे की तरफ से कहा गया कि उसके पास अब तक ऐसी ट्रेन का भी प्रस्ताव नहीं है। साफ है कि रेलवे की सफाई के बाद तृणमूल कांग्रेस की राजनीति सामने आ गई थी। इससे पहले कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या, मृतकों की संख्या, सख्ती से लॉकडाउन का पालन न करने, कोरोना के लिए केंद्रीय टीम भेजने पर भी ममता और केंद्र के बीच टकराव रहा। इसके साथ ही अमित शाह के भेजे गए पत्र को लेकर लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता सरकार पर आरोप लगा दिए। अधीर ने कहा कि मैंने खुद अमित शाह से बंगाल के प्रवासी मजदूरों को वापस भेजने के लिए दो दिन पहले बात की थी। गृह मंत्री ने बताया कि बार- बार सूची मांगे जाने के बावजूद राज्य सरकार ने लिस्ट नहीं दी। इसके साथ ही तृणमूल के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ ब्रायन ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि वैश्विक महामारी के समय में भी इस तरह की विभाजनकारी राजनीति भाजपा ही कर सकती है और ऐसा करना शाह के डीएनए में है। डेरेक ने सीआरपीएफ और इंटर मिनिस्ट्रियल टीम बंगाल भेजने पर भी सवाल उठाए। बंगाल में कोरोना से लगातार मौत हो रही हैं। संक्रमित मरीज लगातार सामने आ रहे हैं। ममता सरकार पर कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा छिपाने और लॉकडाउन का सख्ती से पालन नहीं करने का आरोप लगने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में आईएमसीटी (इंटर मिनिस्ट्रीयल सेंट्रल टीम) भेजने का फैसला किया। ममता बनर्जी टीम भेजने का पहले विरोध किया फिर केंद्र के सख्त रुख को देखते हुए मंजूरी दे दी। सरकार की ओर से लॉकडाउन-4 को लेकर जारी गाइडलाइन को दरकिनार करते हुए ममता बनर्जी ने बंगाल में बाजार खोलने का ऐलान कर दिया। ममता बनर्जी ने कहा है कि वह केंद्र की जनविरोधी शर्तों को स्वीकार नहीं करना चाहती है। जाहिर है ममता हर मसले पर राजनीति करना चाहती है।