अली अब्बास ज़फर की वेबसीरीज ‘तांडव’ के चाबुक हिन्दू की पीठ पर बरस रहे हैं। ये दिन ‘एक दिन’ तो आना ही था। मैं इस लेख को लिखते हुए बराबर ये सोचता रहा कि दो माह पूर्व केंद्र सरकार को ओटीटी प्लेटफॉर्म को नियंत्रण में लेने के लिए राष्ट्रपति ने शक्तियां प्रदान की थी। इन शक्तियों को माननीय राष्ट्रपति महोदय ने केंद्र सरकार के दूसरे माननीय प्रकाश जावड़ेकर के तरकश में डाल दिया था।
दो माह से वे अभूतपूर्व शक्तियां यानी सशक्त कानून जावड़ेकर के तरकश में ही पड़ी रही हैं। कदाचित उन शक्तियों का उपयोग माननीय जावड़ेकर जी को न आता हो। शायद लगातार पढ़ने वालों को याद हो कि मैंने इस बात की आशंका उस समय ही प्रकट कर दी थी, जब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ड्रग्स मामलों में बॉलीवुड पर छापेमारी कर रहा था। उस समय ही मैंने लिख दिया था कि अब बॉलीवुड के हाथ हमारे पौराणिक अवतारों तक पहुंचेंगे।
इस आशंका से श्रीमान जावड़ेकर और केंद्र सरकार को कई बार अवगत करवाया गया था लेकिन इन चेतावनियों पर ध्यान ही नहीं दिया गया और न अब दिया जा रहा है। बॉलीवुड ओटीटी पर लगातार ऐसा कंटेंट परोस रहा है, जो विवाद का कारण बन रहा है। श्रीमान जावड़ेकर जब राष्ट्रपति द्वारा दी गई शक्तियों को पाकर फूला नहीं समा रहे थे, उस समय उन्होंने मीडिया के सामने एक बयान दिया था।
आप भी भूल गए होंगे। उन्होंने कहा था ‘हम समिति का गठन करने जा रहे हैं, जो ऐसे कंटेंट पर लगातार नज़र रखेगी।’ तो भारत अब सरकार से पूछ रहा है कि वह समिति आखिर है कहाँ। इस समिति ने अब तक आखिर किया क्या। इस समिति की कार्रवाई की कोई खबर हमें क्यों नहीं मिल रही। केंद्र सरकार के इन मंत्री महोदय की विशेषता है कि वे जनता के सवालों के जवाब देना उचित नहीं समझते हैं।
शैम्पेन पसंद करने वाला एक एलिट क्लास का मंत्री आम जनता की बात भला क्यों सुनने लगा। इधर एक बात मुझे समझ नहीं आती। जब ऐसी कोई वेब सीरीज या फिल्म आती है तो विरोध करने वालों में केवल भाजपा नेता ही होते हैं। मुझे ये भी समझ नहीं आता कि वे विरोध किसके सामने कर रहे हैं। यहाँ सरकार तो उनकी ही है।
उनकी सरकार के कार्यकलापों से फिल्टर्ड होकर ये वेब सीरीज हम तक पहुंची है। मुंबई के राम कदम ‘तांडव’ को लेकर ट्वीट पर ट्वीट किये जा रहे हैं। वे लिखते हैं कि इस फिल्म के खिलाफ एफआईआर करवाएंगे। क्या ये नेता इतने नासमझ हैं, जो ये नहीं जानते कि तांडव के जरिये हिन्दुओं की पीठ पर चाबुक बरस रहे हैं तो इसका कारण केंद्र सरकार के सूचना व् प्रसारण मंत्रालय का टोटल फेलियर है।
क्या हम भूल जाए कि मध्यप्रदेश के गृहमंत्री जी ने नेटफ्लिक्स के अधिकारी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई थी। क्या हुआ उस एफआईआर का? गृहमंत्री जी क्या कर सके? मनोरंजन उद्योग को लेकर इतनी लाचारी तो और किसी भी सरकार में नहीं देखी गई। क्या ये कम शर्मनाक है कि एक राज्य के गृहमंत्री नेटफ्लिक्स के एक अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं करवा सके। इन शैम्पेन प्रेमी मंत्री जी से प्रश्न आखिर कौन करेगा?
राम कदम घाटकोपर पुलिस स्टेशन जाने के बजाय प्रकाश जावड़ेकर से मिलकर पूछे कि वे राष्ट्रपति द्वारा दिए गए कानून का प्रयोग विगत दो माह से क्यों नहीं कर पा रहे हैं। क्या ऐसा करने से बॉलीवुड से उनके अच्छे संबंध आड़े जा जाते हैं। क्या हमें याद नहीं कि जेएनयू के एक देशद्रोही कार्यक्रम में दीपिका पादुकोण के घोर विरोध के बाद उनके बचाव में श्रीमान प्रकाश जावड़ेकर ही आगे आए थे।
केंद्र का एक मंत्री अपने लचर रवैये से सरकार की छवि को धूल में मिलाने में लगा हुआ है। केंद्र की ऐसी क्या विवशता है कि ऐसे निष्क्रिय मंत्री को ढोए जा रहा है। प्रधानमंत्री सब जानते हुए भी हस्तक्षेप क्यों नहीं करते। यदि वे ऐसा नहीं करते तो कहीं एक दिन इसका ज़िम्मेदार उन्हें ही नहीं मान लिया जाए।