ऊंचे – ऊंचे पद पर बैठे , कितना नीचे गिर जाते हैं ?
कितना बड़ा पेट है उनका ? आखिर कितना वो खाते हैं ?
कौन सी भूख सताती इनको ?तन की,मन की या धन की ;
या कामुकता शैतानी उनकी , क्या ये ही चाहत है उनकी ?
आखिर कुछ तो कमी है उनमें , जो पदलिप्सा है इतनी ;
आयु पिचहत्तर से भी आगे , पद की इच्छा है उनकी ।
किसी की मिट्टी अलग नहीं है , एक ही मिट्टी बनना है ;
चाहे जितनी हो भोग-वासना , कुछ भी हाथ नहीं आना है ।
बड़े – बड़े राजे – महाराजे , हिटलर जैसा तानाशाह ;
मिट्टी में ये सारे मिल गये , धरी रह गई उनकी चाह ।
कुछ भी हाथ नहीं आने का , कुछ भी साथ नहीं जाने का ;
तेरे कर्मों का लेखा – जोखा , वही साथ है जाने का ।
अच्छे कर्मों की गति अच्छी , सद्गति तुझे दिलाती है ;
इससे उलट बुरे कर्मों का फल , दुर्गति तेरी कराती है ।
कुछ तो अपनी दुर्गति सोचो,अधर्म का कुछ मत कार्य करो ;
परम- तीर्थ- स्थल है काशी , उसका मत अपमान करो ।
शिव-परिवार के मंदिर तोड़े , तुलसीदास का मंदिर तोड़ा ;
व्यास भवन को तोड़के तूने , औरंगजेब को पीछे छोड़ा ।
कितने पाप कर रहा आखिर ? तुष्टीकरण बढ़ाया कितना ?
परमश्रेष्ठ है धर्म- सनातन , उसके सम्मुख तू है कितना ?
आखिर क्या मजबूरी है ? क्यों धर्म से इतनी दूरी है ?
अब तो ऐसा लगने लगा है , तेरी कुछ कमजोरी है ।
उस कमजोरी के ही कारण , ब्लैकमेल तू होता है ;
इससे मन में प्रश्न उठ रहा , राष्ट्र तुझे क्यों ढोता है ?
अच्छे नेता की कमी नहीं है , यूपी – आसाम में सूर्योदय ;
क्यों अंधकार भारत में छाया ? अब हो भारत में सूर्योदय ।
अंधकार हम दूर करेंगे , हर हिंदू ने ठाना है ;
यूपी से सूरज को लाकर , दूर अंधेरा करना है ।
रात अंधेरी बीत रही है , सूर्योदय का स्वागत है ;
भारत के पीएम हों योगी , धर्म – सूर्य का स्वागत है ।
हिंदू- धर्म -सूर्य हैं योगी , पूरा भारत आलोकित हो ;
धर्म का शासन – न्याय का शासन , मानवता आधारित हो ।
अब सूर्योदय में देर नहीं है , अंधकार मिट जायेगा ;
लाल-किले से इसी बार ही , योगी ध्वज फहरायेगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”