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India Speak Daily > Blog > धर्म > उपदेश एवं उपदेशक > यहां किसी की मर्जी नहीं चलती, जो चलती है उसकी मर्जी चलती है। Osho
उपदेश एवं उपदेशक

यहां किसी की मर्जी नहीं चलती, जो चलती है उसकी मर्जी चलती है। Osho

ISD News Network
Last updated: 2021/12/09 at 11:02 AM
By ISD News Network 727 Views 4 Min Read
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Osho
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प्रश्न : भगवान, मैं अपने को बड़ा ज्ञानी समझता था, पर आपने मेरे ज्ञान के टुकड़े—टुकड़े कर के रख दिए। अब आगे क्या मर्जी है?

धर्मेश, जो उसको मंजूर! मेरी क्या मर्जी? यहां मेरी मर्जी नहीं चलती। और यहां तुम्हारी मर्जी भी नहीं चलेगी। यहां तो हम सबने अपनी मर्जी उसकी मर्जी में डुबो दी। वह जो करवाता है, होता है। और उस पर छोड़ने का एक मजा है। अगर तुम इस संन्यासियों के परिवार का थोड़ा अवलोकन करोगे, तो बहुत चौंकोगे। न हम किसी से भीख मांगने जाते, न हम किसी से दान मांगते, हम किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते। उसके सामने फैला दिए हाथ, अब किसके सामने हाथ फैलाने! और अड़चन आती ही नहीं।

सब होता चला जाता है। आज एक हजार संन्यासी आश्रम के हिस्से हैं। और मेरे संन्यासी कोई दीनता और दरिद्रता से रहने में भरोसा नहीं रखते। जो मनुष्य के लिए बिल्कुल जरूरी है, मिलना ही चाहिए। मस्ती से रहते हैं, आनंद से रहते हैं, उत्सव से रहते हैं। उस पर छोड़ते ही कुछ अनूठा घटित होना शुरू होता है।. . . अभी पांच—सात दिन पहले लक्ष्मी को दस लाख रुपयों की जरूरत थी।

वह मुझसे कहने लगी कि दस लाख रुपए एकदम से कहां से आएंगे? मैंने कहा, जैसे और आते हैं, वैसे ये भी आएंगे! और आ गए! लक्ष्मी भी चौंकी! कि एक व्यक्ति परसों ही आया स्विट्जरलैंड से! और उसने कहा कि मैंने दस लाख रुपए जमा कर दिए हैं आश्रम के नाम से, स्विट्जरलैंड में! पूरे दस लाख रुपए। लक्ष्मी ने पूछा, किसलिए? किसने तुमसे कहा? उसने कहा, किसी ने मुझसे कहा नहीं, लेकिन अचानक मुझे लाभ हो गया।

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जिसकी कोई अपेक्षा भी नहीं थी, जिसके लिए मैंने कोई प्रयास भी नहीं किया था, तो मैंने सोचा कि जिसके लिए मैंने कोई प्रयास नहीं किया, जिसके लिए मेरी कोई अपेक्षा भी नहीं थी, जो आकस्मिक रूप से आ गया है, वह अपना नहीं है।

इसे कहीं भी भगवान के काम में लगा देना चाहिए। जीवन इस ढंग से भी जीआ जा सकता है। सब उस पर छोड़कर भी जीआ जा सकता है। और यह तो मलूकदास की श्रृंखला चल रही है, तुम्हें उनका वचन याद ही होगा—सभी को याद है, उसी एक वचन के कारण मलूकदास को लोग जानते हैं, और तो उनके वचन लोगों को मालूम भी नहीं हैं—अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम; दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।

इसे मलूकदास ने ऐसे ही नहीं कह दिया होगा। मलूकदास का भी काम ऐसे ही चला! अब तुम मुझसे पूछते हो, आप की क्या मर्जी? उसकी जो मर्जी। उसकी मर्जी पूछते हो, धर्मेश, तो पहला तो काम संन्यास! क्योंकि जब ज्ञान खंडित हो गया, और तुम्हें भ्रांतियां थीं कि मैं जानता हूं, वे टूट गई, सरलता अब स्वाभाविक हो जाएगी। और सरलता ही संन्यास है।

अब ज्ञान की भ्रांति टूट गईं, तो ध्यान सुगम हो जाएगा। और ध्यान ही संन्यास है। संन्यास तो बस आयोजन है कि ध्यान घट सके, सरलता घट सके, निर्दोष हो सके चित्त बच्चों की भांति। और तुम्हारा ज्ञान तुम्हारा नहीं था, इसलिए टूट गया। तुम्हारा होता तो क्यों टूटता? उधार था, बासा था; वेद का था, कुरान का था, बाइबिल का था, तुम्हारा नहीं था। बुद्ध का था, महावीर का था, कबीर का था, तुम्हारा नहीं था। काश, तुम्हारा होता तो कैसे टूट जाता! अपना टूटता ही नहीं। अपने को टूटने का कोई उपाय नहीं। आग जला नहीं सकती उसे, शस्त्र छेद नहीं सकते उसे, मृत्यु मिटा नहीं सकती उसे।

ओशो,
राम दुवारे जो मरै

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TAGGED: Bhagwan Shri Rajnish, Osho, osho audio, osho discourse, ओशो, ओशो प्रवचन, ओशो वाणी, भगवान श्री रजनीश
ISD News Network December 9, 2021
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