मनसा – वाचा – कर्मणा , धर्म – सनातन अपनाओ ;
हिंदू तब ही जी पायेगा , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
हिंदू- नेता की बुद्धि भ्रष्ट है , शायद चरित्र भी भ्रष्ट है ;
उल्टे – सीधे काम कर रहा , धर्म कर रहा नष्ट है ।
जेहादी के चंगुल में है , मर्दे-मुजाहिद बन गया है ;
गजवायेहिंद ये करवा देगा , हिंदू – द्रोही बन गया है ।
तथाकथित हिंदूवादी दल,अभी भी इसको समझ न पाया ;
लगता सबकी बुद्धि भ्रष्ट है , धर्म – सनातन बिसराया ।
झूठा इतिहास पढ़ा है सबने, जल्दी इतिहास ये बन जायेंगे ;
सच्चा – इतिहास नहीं जानेंगे , तो जल्दी ही मिट जायेंगे ।
यूपी या आसाम से सीखो , जागरूक हिंदूवादी हैं ;
जागरूक जो भी हिंदू है , सच्चा वही राष्ट्रवादी है ।
ये ही धर्म बचा पायेंगे , राष्ट्र – बचेगा , देश – बचेगा ;
वरना वर्तमान जो नेता , सब – कुछ नष्ट करा देगा ।
हिंदू- दल कल्याण चाहता , फौरन अपना नेता बदलो ;
यूपी या आसाम से लाकर , धर्म की सत्ता जागृत कर लो ।
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , विश्व – विजय करवायेगा ;
स्वर्ण – काल जो था भारत का , उसको वापस लायेगा ।
हिंदू – हाथों में अंतिम – मौका , इसको नहीं गंवाना है ;
वरना इतने गिर जाओगे , कभी न ऊपर आना है ।
हिंदू – हाथों में दोनों अवसर , जो भी चाहो अपनाओ ;
चाहे धर्म बचा लो अपना , या फिर खुद को दफनाओ ।
सदियों बाद मिले हैं नायक , यूपी व आसाम में ;
इनको हाथों – हाथ उठाओ , गहराती इस शाम में ।
इस अवसर को चूक न जाना , आगे रात अंधेरी है ;
हो सकता है सुबह न हो , जेहादी – रात घनेरी है ।
केवल धर्म का सूरज ऐसा , जो ये रात मिटायेगा ;
धर्म – सनातन के प्रकाश से , अंधकार मिट जायेगा ।
धर्म – सनातन ले आयेंगे , ऐसे धर्म के नायक हैं ;
उनकी राह को जो भी रोके , भारत के खलनायक हैं ।
एक नहीं दो – दो नायक हैं , हर हालत में दिल्ली लाओ ;
सारा अत्याचार मिटेगा , देश को हिंदू- राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”, रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”