सारा कुमारी । फूल फूल पर बैठे मधुमक्खी, शहद दिया बनायमल पर बैठी मक्खी, तो अमृत कहां से आए।
धर्म छोड़ कर बैठा प्राणी, सुख की आस लगाएघांस – फूंस से बना मकान, हल्की वर्षा से ढह जाएं।
काम, अर्थ, धर्म, मोक्ष, 4 पुरुषार्थ दिए बताएं पहले के पीछे सब भागे, बाकी दो दिए भुलाए।
स्कूल, कॉलेज में जाते जाते, उम्र दिया बिताए शिक्षा का अभाव हो गया, डिग्री के ढेर लगाएं।
लालच से भरे सब नेता, जनता को भरमाए सब कुछ लूट रहा हैं अपना, फिर भी देख ना पाएं।
राम, कृष्ण को छोड़ के सब, नेता के गुण गाए अहंकार से भरा वो नेता, रावण सा बन जाए।
जब तक अपना ठीक है सबकुछ, चुप्पी लिए लगाएं जो अपनी पे आए मुसीबत, तो हाय हाय चिल्लाए।
स्वार्थी हो गया हर प्राणी, केवल अपनी चिंता सताए मरने दो मरता है हिंदू, हम क्यूं आंसू बहाए।
आने वाली पीढ़ी को, कुछ तोहफा दे कर जाए सर्वनाश पे बैठी दुनियां, ज्ञान से इन्हे बचाएं।
जीवन की परिधि में, केवल धर्म को केन्द्र बनाएं।जो भी करना हो जीवन में, अधर्म ना होने पाएं।
अधर्म ना होने पाएं।
अधर्म ना होने पाएं।
जय हिन्द जय भारत