प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमेटी ने फैसला किया कि आलोक वर्मा सीबीआई निदेशक की गरिमा के लायक नहीं हैं। लिहाजा उन्हें पद से तत्काल हटा दिया गया। वर्मा मामले में इसी कमिटी का फैसला चाहते थे वे तमाम लोग जो सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे थे। अब कमेटी ने फैसला जारी कर दिया तो, फैसला मनमुताबिक न होने पर सुप्रीम कोर्ट के नंबर 2 जज जो मुख्यन्याधीश के प्रतिनिधि के रुप में शामिल हुए उन्हें ही मोदी सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप लगा कर फर्जी और फरेबी खबर गढ़ दिया पत्रकारिता के नाम पर धंधा करने वाले गिरोह ने। द प्रिंट ने खबर छापा…’आलोक वर्मा को हटाने वाले पैनल में शामिल होने वाले जस्टिस सीकरी कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल में शामिल होंगे’। खबर के हैडिंग से साबित होता है कि खबर कहना क्या चाहता है….
जिस पत्रकार के हवाले से खबर छापी गई है उसके पत्रकारीए सूझबूझ पर सवाल इसलिए नहीं उठा सकता कि वो लंबे समय तक सीबीआई बीट का रिपोर्टर रहा है। लेकिन जब आप पत्रकारिता के नाम कुछ प्लांट करना चाहते हैं तो अपराधी की तरह कई पेंच छोड़ते हैं जो आपकी पत्रकारिता पर सवाल करता है और आपको पक्षकारिता के कटघरे में खड़ा कर देता है। अब द प्रिंट के रिपोर्ट के हवाले से ही समझिए..वेबसाइट लिखता है… ‘नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले महीने निर्णय लिया है कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी को लंदन स्थित कॉमलवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल (CSAT) में खाली अध्यक्ष/सदस्य पद के लिए नामित करेगी। जस्टिस एके सीकरी सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के बाद दूसरे सबसे सीनियर जज हैं। वे सुप्रीम कोर्ट से 6 मार्च को रिटायर हो रहे हैं। इसके बाद वे लंदन में इस ट्रिब्यूनल का पदभार संभालेंगे। इस प्रतिष्ठित ट्रिब्यूनल में सदस्यों को चार सालों के लिए नियुक्त किया जाता है, जो कि आगे और भी बढ़ाया जा सकता है’।
मतलब साफ है कि सरकार ने यह फैसला तब लिया जब आलोक वर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला होगा यह किसी को पता नहीं था। आलोक वर्मा का मामला जिस पीठ के पास था उसकी अध्यक्षता भारत के मुख्यन्यायधीश जस्टिस रंजन गोगई कर रहे थे। वही जस्टिस गोगई जिन्होने आज से ठीक एक साल पहले 12 जनवरी 2017 को जस्टिस चलामेश्मर समेत चार जजों संग मिल कर ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेस किया था। तत्कालिन मुख्यन्याधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल में कायदे से भारत के मुख्यन्यायाधीश को जाना चाहिए था लेकिन उन्होने सुप्रीम कोर्ट के नंबर 2 जस्टिस एके सीकरी को भेजा। सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्टिंग के लंबे समय तक करने के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि चुकी वर्मा वाले मामले फैसला जस्टिस गोगई के बैंच ने दिया इसलिए उन्होने पैनल में खुद शामिल न होना मुनासीब समझा। उनके शामिल होने से यह संदेश जाता कि वे वर्मा मामले को पर पहले ही फैसला दे चुके हैं तो उनके फैसले तो पहले से तय थे। न्याय की गरिमा और भरोसे को बनाए रखने के लिए उन्होने फैसला लिया होगा कि वे पैनल में नहीं शामिल होंगे। इसके बदले में वरिष्ठता की सूचि में नंबर दो जस्टिस सीकरी थे लिहाजा उन्हे ही पैनल में शामलि होने के लिए भेजा गाया। अब उस पैनल में वोटिंग में निर्णायक वोट जस्टिस सीकरी था क्योंकि वर्मा पर कांग्रेस के इशारे पर काम करने का आरोप था तो तय सी बात है कि प्रधानमंत्री का वोट उनके खिलाफ गया और खड़गे का उनके पक्ष में। लेकिन जब जस्टिस सीकरी ने उनके खिलाफ वोटिंग की तो वर्मा पद से हटा दिए गए। यह फैसला उस पूरे गिरोह को नागवार गुजरा जो वर्मा का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ करना चाहते थे। इसके लिए वे सीबीआई निदेशक पर कोई भी फैसला उस कमेटी से चाहते थे जिसे सीबीआई निदेशक नियुक्त करने का अधिकार था। अब उस कमेटी ने जब अपना फैसला जारी कर दिया तो जस्टिस सीकरी को ही सवालों के घेरे में ले लिया गया।
दिलचस्प यह है कि पहले सीबीआई निदेशक की नियुक्ति सीधे भारत सरकार करती थी। लेकिन लगातार सीबीआई जैसी देश की सबसे काबिल जांच एंजेसी की साख पर दाग लगने के बाद सीबीआई निदेशक कि नियुक्ति के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई गई। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश व नेता प्रतिपक्ष को शामिल किया गया। नियुक्ति के लिए कम से कम दो लोगों की सहमति जरुरी थी। खास बात यह कि जब वर्मा को नियुक्त किया गया तब भी प्रधानमंत्री मोदी और उस समय के मुख्यन्यायाधीश की सहमती थी और खड़गे साहब की असहमती। अब उसी वर्मा को हटाए जाने पर भी दोनो की सहमति थी लेकिन खड़गे की असहमती।
इस मामले जस्टिस सीकरी का वोट काफी महत्वपूर्ण था। इस समिति में प्रधानमंत्री, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा को हटाने के मुद्दे पर एक दूसरे के आमने सामने थे।
सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को हटाने के राजनीति रूप से संवेदनशील मामले पर निर्णय लेने के लिए इस समिति को अधिकृत किया था। जस्टिस सीकरी ने जो अपना वोट दिया उसे मत सरकार को सरकार के पक्ष में साबित किया गया।
अब खबर के एक और फरेब और नासमझी को समझिए। कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल 53 देशों के बीच किसी भी विवाद का निपटारा करने वाली न्यायिक संस्था है। इसमें अध्यक्ष समेत आठ सदस्य होते हैं। इनका चुनाव सदस्य देशों की सरकारें करती हैं। इसमें ऐसे लोगों का चुनाव किया जाता है उच्च न्यायिक पदों पर रह चुके हों। सुप्रीम कोर्ट से तत्काल रिटायर्ड जजों को इसके लिए चयनित किया जाता है। जस्टिस सीकरी का चयन उसी आधार पर एक महिने पहले हुआ। तब यह अनुमान लगाना तय सी बात है कि असंभव रहा होगा कि वर्मा पर फैसला क्या आयेगा और उसमें जस्टिस सीकरी की भूमिका क्या होगी। खबर और सुप्रीम कोर्ट की मरियाद की थोड़ी समझ रखने वाला कोई खबरी ऐसी खबर नहीं तैयार कर सकता लेकिन यह बुनियाद तब जब खबर का मानदंड पत्रकारिता हो।
अब समझिए फिलहाल इस ट्रिब्यूनल में एक पद खाली है। भारत इस ट्रिब्यूनल का सदस्य है। ट्रिब्यूनल में कई सदस्यों का कार्यकाल अगले कुछ महीनों में समाप्त होने वाला है। भारत को इसके लिए अपने प्रतिनिधि का नाम भेजना था। पारंपरिक रुप से वो उच्च न्यायिक प्रतिनिधि के रुप में सुपीम कोर्ट के रिटायर्ड जज होते हैं। अब समझिए कोई भी फैसला अपने मुताबिक न होने पर पत्रकारिता और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा से खेलने की ये कौन सी परंपरा है।
खबर तैयार करने का वेबसाईट का एक मात्र उद्देश्य यह साबित करने का था कि जस्टिस सीकरी ने व्यक्तिगत साधने के लिए पैनल में रहकर सरकार के मनमुताबिक फैसला किया। अब जस्टिस सीकरी के अतित को दागदार या सरकार हितैषी साबित करना मुस्किल था तो वेबसाइट ने शातिराना अंदाज में यह भी याद दिला दिया कि जस्टिस सीकरी वही जज हैं जिन्होने कर्नाटक में यदुरप्पा सरकार बनाने के राज्यपाल के फैसले को पलट दिया था।
किसी केस को साबित करने के लिए परिस्थिति जन साक्ष्य चाहिए। वैसे ही खबर को पुख्ता करने के सबूत की जरुरत होती है। इस खबर का एकमात्र उद्देश्य जस्टिस सीकरी के न्यायिक फैसले को संदेह के घेरे में लाना था। उसके लिए एक भी साक्ष्य जुटाए बिना, उनके चरित्र को दागदार बना दिया गया। सोचिए यदि कर्नाटक मामले में सीकरी का फैसला राज्यपाल के फैसले के पक्ष में होता या प्रेस कांफ्रेस कर मोदी विरोधियों के प्यारे बने जस्टिस गोगई को दागदार बनाना संभव होता तो यह रिपोर्ट किस तरह से पुख्ता साबित किया जा सकता था। पत्रकारिता के गिरते इसी स्वरुप ने प्रेस की साख को प्रैस्ट्रीट्यूट के स्तर तक गिराया है।
कमाल है न, वर्मा मामले में अपने मनमुताबिक फैसला न आने पर पत्रकारिता का इस स्तर तक गिरना। अब सीबीआई की नियुक्ति कैसे हो! आपके मुताबिक जनता का फैसला न आए तो इवीएम चोर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला न आए तो सुप्रीम कोर्ट भ्रष्ट, अब उस पैनल पर भी भरोसा जिसके प्रतिनिधि सुप्रीम कोर्ट के मुख्यन्यायाधीश होते हैं। सोचिए जस्टिस गोगई का फैसला भी वर्मा के खिलाफ ही था कमोबेस। कानून की थोड़ी समझ रखने वाला सुप्रीम कोर्ट कि सुनवाई और उसकी प्रक्रिया को समझने वाला कोई भी पढा लिखा सक्स समझ सकता है कि उस पैनन में जस्टिस पटनायक गोगई का न शामिल होना न्याय पर भरोसा दिलाने वाला फैसला था क्योंकि एक दिन पहले ही उन्होने वर्मा मामले में फैसला दिया था। इसलिए उन्होने वरिष्ठता में नंबर दो जस्टिस को पैनल में भेजा। समझिए खबर को अपने मुताबिक साबित करने के लिए कैसे सौ झूठ का सहारा लिया जाता है।
6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने वाले हैं जस्टिस सीकरी। मार्च में ही CAST का भारतीय कोटे का पद खाली होने वाला है। अब सीकरी की निष्ठा पर सवाल उठाने के लिए कुछ भी न होने पर यह ऐंगल खबर के संदेह को पुख्ता कर सकता था लिहाजा उसी का सहारा लिया गया।
अब समझिए कि एजेंडा कैसे तैयार किया जाता है…सेलेक्ट कमेटी में सिर्फ मुख्य न्यायधीश शामिल होते हैं। लेकिन उन्होने अंतिम समय में फैसला लिया कि वे पैनल में नहीं जाएंगे। यह उनका नैतिक फैसला था। उसे एजेंडा से कैसे जोड़ा दिया गया !उस फैसले से जो सरकार ने एक माह पहले लिय़ा था।
URL : in alok veram case justice sikiri targeted by agenda journalist team
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