
अब कोई हिंदू-मुस्लिम भेदभाव नहीं होगा, केंद्रीय सूची में सभी धर्मों के OBCs के लिए समानता चाहता है रोहिणी पैनल
कई राज्यों में दर्ज़ी, धुनिया और जुलाहों जैसे व्यावसायिक समुदायों को आरक्षण दिए जाने में हिंदू-मुस्लिम विसंगति की समस्या का सरकार द्वारा गठित एक आयोग समाधान करने की कोशिश कर सकता है, जिसे ओबीसीज़ (अन्य पिछड़े वर्गों) के उप-वर्गीकरण की जांच करने के लिए बनाया गया है.
फिलहाल, ऐसे समूहों से संबंध रखने वाले मुसलमानों- मसलन उत्तर प्रदेश (यूपी) में जुलाहे, बिहार में धुनिया और दर्ज़ी आदि को ओबीसी की केंद्रीय सूची में आरक्षण मिलता है, लेकिन इन्हीं समूहों के हिंदुओं को छोड़ दिया गया है.
दिप्रिंट को पता चला है कि जस्टिस रोहिणी कमीशन ने इन धार्मिक रूप से प्रतिबंधित प्रविष्टियों के आंकड़े जमा किए हैं और उसकी ओर से ओबीसी की केंद्रीय सूची से इस विसंगति को हटाने की सिफारिश किए जाने की संभावना है, जिससे सुनिश्चित हो सके कि पिछड़े वर्ग का दर्जा धर्म से मुक्त हो सके.
आरक्षण लाभ का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए, ओबीसीज़ के उप-वर्गीकरण की जांच करने की ख़ातिर, अक्टूबर 2017 में गठित किए गए जस्टिस रोहिणी कमीशन के जुलाई 2022 में अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले, अपनी रिपोर्ट पेश करने की संभावना है. 2017 के बाद से इसका कार्यकाल 12 बार बढ़ाया गया है.
1980 में जब दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग ने- जिसे आमतौर से मंडल कमीशन के नाम से जाना जाता है- अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में, ओबीसी वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी, जब कहीं जाकर केंद्र सरकार ने ओबीसी वर्गों की पहली केंद्रीय सूची जारी की. उसके बाद से इस सूची में कई बार संशोधन किया जा चुका है.
रोहिणी कमीशन को मूल रूप से केंद्रीय स्तर पर आरक्षण लाभ के वितरण को देखने के लिए कहा गया था. कुछ वर्ग एक लंबे समय से ओबीसी के उप-वर्गीकरण की मांग करते आ रहे, जिनमें सैकड़ों समुदाय और जातियां आती हैं, ताकि आरक्षण फायदों का बेहतर वितरण सुनिश्चित हो सके.
बाद में कमीशन के कार्यक्षेत्र को बढ़ाकर, उसमें केंद्रीय सूची में किसी भी दोहराव, अस्पष्टताओं, विसंगतियों, और वर्तनी की अशुद्धियों की जांच करने और उन्हें दुरुस्त करने की सिफारिश का काम शामिल कर दिया गया.
चार-सदस्यीय आयोग की अध्यक्ष दिल्ली उच्च न्यायालय की जज जस्टिस जी रोहिणी (रिटा.) हैं, जबकि अन्य सदस्य हैं- सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ के निदेशक डॉ जेके बजाज, कोलकाता स्थित भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण की निदेशक गौरी बासु (पदेन सदस्य), और रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (पदेन सदस्य) विवेक जोशी.
OBC दर्जे को धर्म-निष्पक्ष करने की मांग
सरकार में उच्च-पदस्थ सूत्रों के अनुसार, जस्टिस रोहिणी कमीशन को केंद्रीय सूची में धार्मिक रूप से प्रतिबंधित क़रीब 200 प्रविष्टियां मिलीं, जहां विशिष्ट व्यावसायिक समुदायों के हिंदुओं को, उनके मुस्लिम समकक्षियों की तरह ओबीसी दर्जा नहीं दिया गया है.
उन्होंने आगे कहा कि इसके परिणामस्वरूप, इन विशिष्ट व्यावसायिक समुदायों से आने वाले सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हिंदू, केंद्रीय नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं उठा पाते.
सूत्रों ने आगे कहा कि कमीशन इस मुद्दे का समाधान कर रहा है, ताकि सुनिश्चित हो सके कि केंद्रीय सूची की किसी भी ओबीसी प्रविष्टि में, समुदाय के सभी सदस्य धर्म की परवाह किए बिना आरक्षण फायदों के हक़दार होंगे.
एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘जहां इस तरह का धर्म विशेष प्रतिबंध है, वहां कमीशन ने उसे सभी धार्मिक समुदायों के लिए ज़्यादा न्यायसंगत बनाने की कोशिश की है, जिससे कि सभी समुदाय के लोगों को उसमें शामिल किया जा सके’.
एक दूसरे सूत्र ने बताया कि कमीशन सुनिश्चित करना चाहता है, कि ओबीसी दर्जा सामान्य रूप से धर्म से मुक्त हो जाए. दूसरे शब्दों में, ये एक धर्म-तटस्थ वर्ग बने रहना चाहिए.
कमीशन ने क्या पाया
ऊपर हवाला दिए गए एक सूत्र ने कहा कि मसलन बिहार में, जस्टिस रोहिणी कमीशन को ऐसी 23 प्रविष्टियां मिली हैं, जहां धुनिया, दर्ज़ी, डफली (ढोल बजाने वाले, सिक्लीगर (छुरियां तेज़ करने वाले), नालबंद (घोड़ों की नाल लगाने वाले), मीरशिकार (शिकारी) जैसे व्यावसायिक समुदायों के मुसलमान केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किए गए हैं, लेकिन उनके हिंदू समकक्षी उसमें नहीं हैं.
23 प्रविष्टियों में आयोग को केवल 2-3 प्रविष्टियां ऐसी मिली हैं, जहां एक विशेष व्यवसायिक वर्ग के हिंदुओं को, केंद्रीय ओबीसी सूची में जगह देने की बजाय, अनुसूचित जाति (एससी) माना गया है.
सूत्र ने कहा, ‘मसलन, जहां एक मुसलमान धोबी को ओबीसी लिस्ट में शामिल किया गया है, वहीं एक हिंदू धोबी को एससी लिस्ट में रखा गया है. लेकिन ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिले हैं’.
इसी तरह, यूपी में जहां मुसलमान जुलाहों और राज मिस्त्रियों को केंद्रीय ओबीसी सूची में रखा गया है, वहीं इन्हीं व्यावसायिक समुदायों के हिंदुओं को इससे बाहर रखा गया है.
यूपी में आयोग को केंद्रीय सूची में ऐसी चार प्रविष्टियां मिली हैं, जो एक धर्म विशेष तक सीमित हैं.
सूत्र ने कहा, ‘यूपी के ग़ैर-मुस्लिम जुलाहे ओबीसी या एससी सूची में आने की कोशिश कर रहे हैं, जो राज्य में एक सियासी मुद्दा बन गया है.’
सूत्र ने आगे कहा, ‘मसलन, मिस्त्रियों के मामले में प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) से अनुरोध किया था, कि मुस्लिम और ग़ैर-मुस्लिम दोनों वर्गों को केंद्रीय सूची में शामिल किया जाए’.
मुस्लिम समुदाय के मिस्त्रियों को एनसीबीसी की सिफारिश के आधार पर, 1999 में केंद्रीय सूची में शामिल कर लिया गया था, लेकिन एनसीबीसी के ये कहने के बाद कि हिंदू मिस्त्रियों ने एससी दर्जे के लिए भी आवेदन किया है, उन्हें शामिल किए जाने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया.
आयोग ने पाया है कि धर्म के आधार पर केंद्रीय सूची में विसंगतियां, सभी राज्यों में अलग अलग हैं.
मसलन, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की केंद्रीय सूची में ऐसे मुसलमानों की एक अलग श्रेणी है, जो अपने व्यवसायिक वर्ग की वजह से ओबीसी लिस्ट में आने के हक़दार हैं, लेकिन उनके हिंदू समकक्षियों को ओबीसी में नहीं रखा गया है.
सूत्र ने कहा, ‘एमपी में, कुछ पिछड़े वर्ग के हिंदुओं को उप-शीर्षक ‘हिंदू’ के अंतर्गत अलग से ओबीसी सूची में जोड़ा गया है. इस तरह की चीज़ बिहार जैसे दूसरे सूबों में नहीं है’.
लेकिन, आयोग को ऐसी सबसे अधिक विसंगतियां पश्चिम बंगाल में मिली. सूत्र ने बताया, ‘पश्चिम बंगाल की केंद्रीय ओबीसी सूची में ऐसी 39 प्रविष्टियां हैं, जो केवल मुसलमानों तक सीमित हैं. कमीशन ने ऐसी तमाम प्रविष्टियों पर ग़ौर किया है, जो किसी धर्म विशेष तक सीमित हैं, और ये सुनिश्चित करने की कोशिश की है सभी धर्मों के ओबीसी वर्गों को एक न्यायसंगत जगह मिले’.
सूत्र ने आगे कहा कि ये दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों के अनुरूप है, जिनके अनुसार केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल किसी भी व्यावसायिक समुदाय के लिए, सभी धर्मों के सदस्यों को उसमें शामिल माना जाएगा.
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