बूढ़े – तोते पाल रखे हैं , तोता – रटंत ही आता है ;
इसी वजह से कतर सरीखा , भुनगा आंख दिखाता है ।
दोस्त मेरा अब्बास है , मैं अब्बासी – हिंदू हूं ;
पूरी भरी गुलामी मन में , ऐसा जिम्मी – हिंदू हूं ।
तथाकथित हिंदू – नेता हूं , बहुत बड़ा अभिनेता हूं ;
हिंदू-मंदिर को लूट-लूट कर , अभी भी जजिया देता हूं ।
मुझे चाहिये नोबेल – प्राइज , देश भले ही लुट जाये ;
विश्व का नेता बन के रहूंगा , चाहे हिंदू मर जाये ।
हिंदू की परवाह नहीं है , कल मरता हो आज मरे ;
मैं केवल अपनी ही सोचूँ , कोई जिये या कोई मरे ।
बदनसीब इतना है हिंदू , उसके नेता ही दुश्मन निकले ;
भोग-वासना , काम-वासना , सब इसके कीड़े निकले ।
अब तो अपनी दम पर जीना , नेता तो मरवायेंगे ;
जागरूक हर – हिंदू होगा , शस्त्र – शास्त्र अपनायेंगे ।
अस्त्र-शस्त्र संचालन सीखो , धर्म-सनातन अपनाओ ;
अपने भीतर का शौर्य जगाकर,देश को हिंदूराष्ट्र बनाओ ।
हर- हिंदू को मंदिर जाना , आपस में पहचान बढ़ाना ;
जब भी कोई संकट आये, मिल करके सब उसे मिटाना ।
मुट्ठी बंधी है लाख की , खुल जाये तो खाक की ;
अपरिहार्य है हिंदू- एकता , निश्चित विजय है आपकी ।
“सत्यमेव-जयते” ही सच है, अब करके यही दिखाना है ;
अब्बासी – नेता की छुट्टी , योगी – हेमंता लाना है ।
परमसाहसी – चरित्रवान , नेता ही राष्ट्र बचायेगा ;
धर्म बचेगा – राष्ट्र बचेगा , हिंदू – राष्ट्र बनायेगा ।
जितनी जल्दी इसे करोगे,राष्ट्र की क्षति उतनी कम होगी ;
इंतजार दो-साल न करना , वरना खून की होली होगी ।
लोहा पूरी तरह गर्म है , राष्ट्रवाद की चोट करो ;
गली – गली से रैली निकले , नोटा की भी चोट करो ।
जब्त-जमानत सबकी होवे , जितने भी अब्बासी- हिंदू ;
हिंदू – राष्ट्र बनाने वाले , केवल जीतें कट्टर – हिंदू ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”