ओम राउत ने सिनेमा के आकाश में बड़ी उड़ान भरी है। वे सुपरस्टार प्रभास के साथ एक थ्रीडी पौराणिक फिल्म आदिपुरुष लेकर आ रहे हैं। कुकुरमुत्तों की भांति उग आए टीवी चैनलों में जब मैं किसी औसत अभिनेता को राम या शिव बने देखता हूँ तो बड़ी कोफ़्त होती है। हर चौथा चैनल एक पौराणिक सीरियल ले आता है और उनमे दिखाए जाने वाले मनगढ़ंत प्रसंगों से मन मलिन हो जाता है। सीरियल निर्माताओं के लिए शिव, राम और कृष्ण एक विषय से अधिक कुछ नहीं है।
इन धारावाहिकों को बनाने वाले निर्देशक कभी इन महान चरित्रों की गहराई में नहीं जाते। फलस्वरूप हमें उथली, तर्कहीन पौराणिक गाथाएं देखनी पड़ती है और लोगों के बीच भ्रम की स्थिति बनती है, सो अलग। ऐसे चरित्रों पर एस.राजामौली और ओम राउत बहुत अच्छा काम कर सकते हैं।
पिछले तीन साल में बाहुबली इफेक्ट के चलते बॉलीवुड के कई निर्माताओं ने महाभारत पर फिल्म बनाने की घोषणा की लेकिन आगे काम नहीं हुआ। आमिर खान ने इस प्रोजेक्ट में रूचि दिखाई थी लेकिन अंततः वे भी पीछे हट गए।
छिछोरे के निर्देशक नितेश तिवारी अवश्य रामायण के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं लेकिन उनका एटीट्यूड वैसा नहीं है, जैसा इस किस्म की फिल्मों के लिए चाहिए। हम उनकी फिल्म ‘दंगल’ में देख चुके हैं कि वे अपनी फिल्म के दृश्यों में हिंदू परंपराओं का ध्यान नहीं रखते।
जैसे दंगल फिल्म में दिखाए अखाड़ों में बजरंगबली की मूर्ति ही नहीं दिखाई जाती, जबकि भारत के अखाड़ों का ये अविभाज्य अंग हुआ करता है। सो नितेश रामायण बनाते भी हैं तो उसमे पर्याप्त शोध और गहराई मिलेगी, इसमें मुझे संदेह है। नितेश तिवारी की इस ट्रायोलजी के लिए मीडिया ने ऋत्विक रोशन और दीपिका पादुकोण को केंद्रीय भूमिका में लिए जाने की अफवाहें बहुत चलाई है।
रामायण और महाभारत पर फिल्म बनाने के लिए बहुत सी पूंजी और धैर्य की आवश्यकता होती है। इसके लिए आपको एक टीम तैयार करनी होती है, जो केवल इन ग्रंथों पर शोध कर एक त्रुटि रहित स्क्रिप्ट बनाने में सहायता करे। ये काम हॉलीवुड में बहुत अच्छे ढंग से किया जाता है।
यदि वे हरक्यूलिस की कहानी पर फिल्म बनाते हैं तो उस कालखंड का बहुत गहन शोध करते हैं और यही कारण है कि उनकी पीरियड फिल्मों में वास्तविकता झलकती है। हिन्दी फिल्मों के निर्माता इतना धैर्य नहीं धर सकते। उनको छह माह में फिल्म तैयार करनी होती है। तो ये छह माह वाली सोच आप रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों पर अप्लाई नहीं कर सकते। आमिर खान का इस प्रोजेक्ट से हटने का कारण उनके प्रति देश की बदली हुई सोच है और अब भी वे ऐसे कार्य कर रहे हैं कि देश की बदली सोच और पुख्ता होती जा रही है।
ओम राउत ने आदिपुरुष के लिए प्रभास को साइन किया है यानी वे सही ट्रेक पर जा रहे हैं। वे जानते हैं कि बाहुबली की शक्तिशाली सिनेमेटिक इमेज उनकी फिल्म के लिए लाभदायक रहेगी। इसके अलावा दर्शक वर्ग उन्हें इस चरित्र में स्वीकार कर लेगा क्योंकि उनके मन में अमरेंद्र बाहुबली की छवि स्थायी रूप से बस गई है।
ओम राउत इस थ्रीडी प्रोजेक्ट को हिन्दी और तमिल में बनाएँगे। इसके बाद इसे तमिल, मलयालम, कन्नड़, और दूसरी विदेशी भाषाओं में डब किया जाएगा। साफ़ है कि ओम राउत आदिपुरुष को ग्लोबल बनाना चाहते हैं। उनका टारगेट विश्व के संपूर्ण देशों में बसे हिंदू हैं। एक महंगी फिल्म की सफलता सुनिश्चित करने के लिए उन्हें इतना तो करना ही होगा।
ओम राउत की असीमित प्रतिभा हमने तानाजी में देखी थी। हम इतना जान गए कि वे एक बेहतरीन स्टोरी टेलर हैं। एक्शन सेट्स और वीएफएक्स का सही काम लेने में उन्हे प्रवीणता प्राप्त है। वे अपनी फिल्मों के लिए व्यापक शोध करते हैं। वे समय की परवाह नहीं करते और न प्रोड्यूसर की धमकियाँ सुनते हैं।
तानाजी के लिए उन्होंने लंबे समय तक शोध किया था। हम अनुमान लगा सकते हैं कि ओम प्रभास को आदिपुरुष की ही भूमिका देंगे। प्रभास की इमेज एक भले मनुष्य की है। वे विनम्र हैं। आदिपुरुष की भूमिका के लिए अभिनेता का वास्तविक चरित्र देखा जाना आवश्यक है। तभी उसका रिफ्लेक्शन आदिपुरुष कैरेक्टर में झलकने लगेगा।
आदिपुरुष का पोस्टर बड़ा ही अर्थपूर्ण है। इसमें आपको रामकथा के दर्शन होंगे। ये सम्पूर्ण रामकथा नहीं होगी। होती तो इस महाकाव्य पर तीन फ़िल्में बनाने की आवश्यकता है। ऐसा लगता है वे रामकथा का क्लाइमैक्स प्रस्तुत करने जा रहे हैं। यदि आप प्रोमो देखेंगे तो इसके संगीत पर ध्यान दीजिये।
वही पर ओम राउत ने एक क्लू छोड़ा है। इस कर्णप्रिय धुन की शुरुआत शंखनाद से होती है। संगीत ऐसा अहसास देता है मानो आप युद्ध में खड़े हैं। प्रभास ने इस प्रोमो को अपने इंस्टा अकाउंट पर रिलीज किया है। आदिपुरुष के अन्य चरित्रों के लिए कॉस्टिंग का काम शुरू हो चुका है। दिल थामकर बैठिये। बॉलीवुड का नया उभरता निर्देशक अपने कॅरियर की माइलस्टोन देने जा रहा है और निश्चित ही इस फिल्म के बाद श्रीराम के प्रति उन लोगों का नज़रिया बदलेगा, जो अब भी उत्तरप्रदेश में बैठकर श्रीराम को काल्पनिक चरित्र बता रहे हैं।
निश्चय ही आदिपुरुष भारतीय फिल्मों का एक और अद्भुत सागा बनेगी बाहुबली की ही तरह से और प्रभास फिर से एकबार भारतीय संस्कृति का सांस्कृतिक और धार्मिक परचम फिर से सारी दुनिया में लहरायेंगे।अब हम मुगलिया बॉलीवुड को खत्म करके इन तीनों देशद्रोही खानों के गंदे कॅरियर को खत्म करके केवल उसी सिनेमा को देखेंगे जो केवल भारत की बात करेगा।फिर चाहे दशकों में ऐसी एक ही फ़िल्म क्यों न बने।एकबात मैं अपने हिंदू भाइयों बहनों से भी कहूँगा कि यदि कोई एजेंडवादी,देशविरोधी, सनातन विरोधी खान गैंग वाला प्रोड्यूसर डायरेक्टर हमारे धार्मिक ग्रंथों पर कोई भी फ़िल्म बनाता है तो हम उस फिल्म का केवल विरोध ही करेंगे और उसको आजीवन कभी भी नहीं देखेंगे।ये हमारा दृणनिश्चय है।