शंकर शरण। किसी घटना की सूचना देती एक पोस्ट: ” और कायर हिन्दुओं की बात ही क्या करें, वो तो बस कुंभकरण जैसी गहरी नींद में सदियों से बस सो रहे हैं ।”
इस पर प्रतिवाद – “अंतिम पंक्ति अनुचित अपमानजनक है। हिन्दू जगे हुए हैं। उन के नेता सो रहे हैं, बल्कि सोने का बहाना बना रहे हैं। (यह बात दशकों का अनुभव रखने वाले एक बुजुर्ग संघ-स्वयंसेवक ने भी कही है; चाहें तो मैं उन का नंबर दे सकता हूँ)
वैसे भी सब जानते हैं: मामूली दुकान, कंपनी, कॉलेज, या होटल चलाने वाला व्यक्ति भी, कि यदि मालिक, प्रिंसिपल या मैनेजर आलसी, कामचोर, या भ्रष्ट हो तो उस के कर्मचारी या ग्राहक उस दुकान या कंपनी को नहीं सुधार सकते। वे बेबस उसे झेल सकते हैं, या बस चले तो चुपचाप उस से किनारा कर सकते हैं।
भारत में सरकारों की स्थिति किसी कंपनी मैनेजर या कॉलेज प्रिंसिपल से हजार गुनी शक्तिशाली है।
हमारे जीवन के पल-पल में सरकारी शक्ति का दखल है। एक मामूली कांस्टेबल किसी करोड़पति तक को किसी भी सही झूठ बात पर सिरदर्द दे सकता है – यदि करोड़पति महोदय ऊपर कनेक्शन वाले हों, तब भी। ऐसी ताकतवर सरकार पर बरसों, दशकों से कब्जा कर बैठे नेता, संगठन, आदि यदि हिन्दू समाज पर अतिक्रमण, प्रहार देखते रहते हैं – बल्कि हिन्दुओं को सेकेंड-ग्रेड नागरिक बनाने के कानून बनाते और बनाए रखते हैं; खुद केवल पार्टीबंदी करने, दूसरी पार्टी को नीचा दिखाने में ९०% समय, बुद्धि, संसाधन खर्च करते हैं – तो आप किन हिन्दुओं को कुंभकर्ण बताकर निंदित कर रहे हैं? अपने को ही न!
तब दिहाड़ी मजदूर से लेकर अडानी तक, यही हिन्दू बचते हैं दोष देने, कोसने के लिए। क्योंकि उक्त पोस्ट की आत्मग्लानि में मोदी जी, शिवराज जी, नड्डा जी, भागवत जी, इन्द्रेश जी, यानी ‘दुनिया के सबसे बड़े संगठन’ भाजपा और संघ की पूरी संपन्न संरचना तो परिभाषा से ही मुक्त मान ली जाती है! जो वैसे तो दुनिया भर की बातों पर भाषण, बयान, कामनाएं, लफ्फाजियाँ करते, पोस्टर लगाते, सम्मेलन, आयोजन करते, चित्र विचित्र अनर्गल प्रस्ताव पास करते रहते हैं। पर हिन्दुओं को शिक्षा और मंदिर संचालन से बेदखल कर यहाँ मुस्लिमों, क्रिश्चियनों की तुलना में हीन नागरिक बनाए रखने; अथवा ज्ञानवापी, मथुरा, भोजशाला या फिर उक्त पोस्ट में बताये किसी ‘एकंबरेश्वर मंदिर पर पूरा कब्जा करके मस्जिद में परिवर्तन’ पर मौन बैठे रहते हैं।
प्रश्न है: १. क्या हिन्दुओं की ऐसी वंचनाओं, उन के मंदिरों पर अतिक्रमणों से संपूर्ण राज्यतंत्र अपने हाथ में लिए हिन्दू नेताओं को कुछ फर्क नहीं पड़ता!? या फिर, २. यह सब उन की प्रतिष्ठा से नीचे का तुच्छ विषय है? जिस पर केवल ह्वाट्सएप ग्रुप में सामान्य हिन्दुओं को ही रोना धोना है?”
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