ब्रजेश सिंह सेंगर :
गुरु से जो भी ज्ञान मिला है , वो समाज को देना है ;
देने से जो बढ़ता जाता , ऐसा ज्ञान ही होना है ।
ज्ञान को देना नहीं बेचना , वरना निष्फल हो जाता है ;
पैसे लेकर कथा सुनाता , वो नरक-मार्ग को पाता है ।
हरहिं शिष्य – धन , शोक न हरहीं ;
सो गुरु घोर – नरक मा परहीं ।
तुलसीदास के सत्य-वचन हैं , राम चरित मानस में हैं ;
शास्त्र का अध्ययन जो न करते , अज्ञान-भॅंवर में मानव हैं ।
सारा-ज्ञान भरा शास्त्रों में , शास्त्रों का अध्ययन करना है ;
रामायण, गीता, महाभारत , हर-हिंदू को निश्चित पढ़ना है ।
ज्ञान की चर्मावस्था क्या है ? जो सच्चे-गुरु से मिलता है ;
ये परमगोपनीय राजविद्या है,श्रीकृष्ण के मुख से निकलता है
अर्जुन जैसा परम्-शिष्य हो , परम्-गुरु हो कृष्ण के जैसा ;
श्रवण,मनन,निदिध्यासन करके, पुरुषार्थ करो अर्जुन जैसा ।
सार्वजनिक-वक्तव्य नहीं है , हर जगह मनाही इसकी है ;
केवल सुपात्र अधिकारी इसके,चिन्मय-बुद्धि ही जिनकी है ।
सबको गुरु नहीं मिल सकता , अंतिम-जन्म में पाता है ;
क्योंकि फिर कोई जन्म न होता , आवागमन नसाता है ।
तेरे हाथों में सुकृत्य हैं केवल , लगातार करते जाओ ;
अपना कोई लोभ न लालच , निष्काम-कर्म करते जाओ ।
कई-सैकड़ा जन्मो में करके , उसके फल को पाओगे ;
जागृत होगी शुभ-इच्छा मन में व सच्चे-गुरु को पाओगे ।
केवल ये ही ईश-कृपा है , और नहीं है कृपा दूसरी ;
ईश-कृपा से सच्चा-गुरु मिलता, और नहीं सौगात दूसरी ।
माया-मोह में फंसा जो मानव, ईश-कृपा को कभी न पाता ;
जन्मों-जन्मों सदा भटकता , परमानंद कभी न पाता ।
अंत में माया-मोह में दुख है , केवल सुखाभास होता है ;
महामूर्ख मानव फंस जाता , जीवन व्यर्थ गंवाता है ।
न उसको संसार में सुख है , सूक्ष्म-जगत में भी दुख भोगे ;
नब्बे-प्रतिशत बाबा पाखंडी , धन-दौलत के पीछे भागे ।
तीनों ऐषणायें भरी हुयीं हैं,शिष्यों को गलत दिशा दिखलाते ;
नरक-मार्ग की ओर बढ़ रहे , जो इनसे दीक्षा लेते ।
वर्तमान में हिंदू की दुर्दशा , उसके ये ही उत्तरदायी ;
सही-मार्ग न कभी बताया , म्लेच्छों की तो बन आयी ।
हिंदू-जनता मार खा रही , जगह-जगह इस भारत में ;
केवल धर्मशास्त्र आलम्बन , विजयी होगे महाभारत में ।