कोरोना के वैश्विक प्रकोप के इस दौर में इंटरनेट पर वायरस आपदा वाली फिल्मों को खूब सर्च किया जा रहा है। वायरस जनित महामारी पर अब तक बीसियों फ़िल्में बन चुकी हैं। लेखकों और फिल्म निर्देशकों की रचनात्मकता में अवश्य अतीन्द्रिय शक्तियों का प्रभाव रहता है, जो उनकी रचनाएं कुछ समय बाद वास्तविक घटनाओं का रूप धर लेती हैं। सन 2011 में प्रदर्शित हुई ‘Contagion’ को इस समय विशेष रुप से देखा जा रहा है क्योंकि कोरोना जनित महामारी से इसकी कहानी मेल खाती है। कंटेजन का शाब्दिक अर्थ ‘छूत’ होता है और इस समय सम्पूर्ण विश्व इसके दुष्प्रभाव देख पा रहा है।
कंटेजन के ओपनिंग सीन में कफ़ वाली खांसी से भरा नारी स्वर सुनाई देता है। यह अस्वस्थता का वैश्विक स्वर है। बलगम से भरा ये चिपचिपा भारी स्वर बेथ एमहॉफ का है। बेथ एक ऐसी महामारी की ‘पेशेंट ज़ीरो’ है, जिसने मात्र एक माह में विश्व के छब्बीस लाख लोगों की जान ले ली है। फिल्म में कल्पित वायरस ‘MEV-‘1 जुकाम और ‘NIPAH’ वायरस का हाइब्रिड है। ‘NIPAH’ वायरस सन 1990 में उभरकर आया था। इस वास्तविक वायरस के नाम का उल्लेख फिल्म में किया गया है। आश्चर्यजनक तथ्य है कि ‘कंटेजन’ शब्द बीते एक माह में लाखों बार सर्च किया गया है। सिर्फ फिल्म के कारण नहीं बल्कि ये जानने के लिए कि कौन-कौनसे वायरस छूने से फैलते हैं। समूचे विश्व में स्वास्थ्य आपातकाल को लेकर गजब की जागरूकता देखी जा रही है।
निर्देशक Steven Soderbergh की ‘कंटेजन’ की मुख्य पात्र हांगकांग के लौटते हुए अपने पूर्व प्रेमी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के बाद घर लौटती है। लौटने के बाद उसका परिवार एक अज्ञात बीमारी की चपेट में आ जाता है। लाखों लोगों की मौत के बाद लैब में परीक्षण के बाद पता चलता है कि ये वायरस चमगादड़ और सूअर से जन्मे वायरस बंधुओं का आनुवंशिक मेल है। इस फिल्म की प्रेरणा सन 2009 में उभरा जानलेवा वायरस ‘स्वाइन फ्लू’ था, जिसने विश्व के लाखों लोगों का जीवन लील लिया था। यदि हम इस फिल्म और जानलेवा कोरोना में समानताएं खोजेंगे तो आश्चर्यजनक तथ्य हाथ आएँगे।
फिल्म में दिखाया गया ‘MEV-‘1 वायरस एक Zoonotic (पशुजन्य) वायरस है। कोरोना भी एक ज़ूनोटिक वायरस है जो जानवरों से पनप कर मनुष्यों पर आक्रमण करता है। कोरोना वायरस भी चमगादड़ से फैला, जो वुहान के मांस बाज़ार में बिकने के लिए आया और जिसने भी इसे खाया, वह कोरोना का प्रथम ‘ह्यूमन कैरियर’ बना। एक तरह से हम कोरोना को स्वाइन फ्लू की दूसरी कड़ी मान सकते हैं। ‘कंटेजन’ भले ही पूरी तरह कोरोना वायरस की त्रासदी से मेल न खाती हो लेकिन इसे देखकर लोग उस भय से एकाकार हो रहे हैं, जो वास्तविकता और सेल्युलाइड स्क्रीन पर एक समान तीव्रता से मानव जाति में व्याप्त है।
इक्कीसवी शताब्दी शुरू होने के साथ ही डिक्शनरी में एक और शब्द को मान्यता दी गई। ये शब्द था ‘Anthropocene’। सरल शब्दों में समझना हो तो यूँ समझे कि जब भाप के इंजन की ईंधन की खपत के लिए पहला वृक्ष काटा गया था, उस दिन से पृथ्वी पर एन्थ्रोपोसिन युग प्रारम्भ हो गया। ये वह युग है, जब मानवीय गतिविधियां ऋतुओं और पर्यावरण को प्रभावित करने लगी। ‘कंटेजन’ फिल्म में वायरस पनपने का एक काल्पनिक दृश्य दिखाया गया है।
एक बुलडोजर विश्व के किसी वर्षावन में एक वृक्ष को उखाड़ फेंकता है। इससे कुछ चमगादड़ों का आवास नष्ट हो जाता है। एक चमगादड़ मुंह में केले का टुकड़ा लिए एक सूअरों के बाड़े के ऊपर से गुज़रता है। उसके मुंह से वह टुकड़ा छूटकर बाड़े में जा गिरता है। चमगादड़ की लार में भीगा वह टुकड़ा एक सूअर द्वारा खा लिया गया है। सूअर को बाज़ार में बेच दिया जाता है। सूअर को पकाने वाला रसोइया मकाऊ के कैसिनो में बेथ एमहॉफ से मिलता है और हाथ मिलाता है। इस तरह बेथ सूअर और चमगादड़ के मेल से बने वायरस का पहला ह्यूमन कैरियर बनती है। जैसे कनिका कपूर लखनऊ में कोरोना की ह्यूमन कैरियर बन गई है।
ये काल्पनिक दृश्य सत्यता के बहुत समीप दिखाई देता है। प्रकृति से छेड़छाड़ और चमगादड़ जैसे जीवों को आहार बनाने की कुत्सित परंपरा आज हमें कहाँ ले आई है। पृथ्वी रुग्णावस्था में चीत्कार रही है और इसका समाधान खोज रही है। पृथ्वी ने स्वाइन फ्लू को पराजित किया है तो कोरोना को भी पराजित करेगी ही लेकिन स्वाइन फ्लू के बाद कोरोना की उत्पत्ति मानव जाति को साफ़ शब्दों में चेतावनी भी दे रही है कि अब भी समय है, सम्भल जाओ। सह-अस्तित्व की भावना ही मानव का अस्तित्व बचा सकेगी।