
‘ऑपरेशन बस्तर : प्रेम और जंग’/ पुस्तक समीक्षा– डॉ प्रियंका–बेहतरीन कृति
ऑपरेशन बस्तर प्रेम और जंग मनोरमा बुक द्वारा वर्ष 2020 की सबसे बेहतरीन पुस्तक , बुक आफ ईयर के आभूषण से नवाजा गया बेस्टसेलर उपन्यास है
कमलेश कमल जी ने बस्तर के गांव,घर और हर परिस्थिति को शब्दों में ऐसा बुना है मालूम होता है आप बस्तर के गांवों जंगलों में घूम रहे हों
दिल्ली में बैठे, दिल्ली से 1500 कि मी दूर छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले के जनजातीय जीवन, नक्सली जीवन ,और सुरक्षा बलों की जीवन का त्रिकोण इस पुस्तक में देखने को मिलता है
बस्तर का नाम सुनते ही हमारे जेहन में जो चित्र उभरता है वह है नक्सली हमलों का, उस मुठभेड़ में शहीद हुए हमारे वीर जवानों का
माओवाद के तर्ज पर ही तैयार नक्सलवाद ,माओवाद का देशी रूप है, जैसा लेखक ने लिखा है यह माओवाद नहीं. कमाओवाद है अवसरवाद है
सहानुभूति और घृणा के आधार पर तैयार किया हुआ नक्सलवाद स्वयं के क्षेत्र के लिए कैंसर रोग है,,,आटो इम्यून डिजीज है जो सिर्फ और सिर्फ अपने क्षेत्रीय लोगों का ही जीवन दूभर कर रहे हैं
कहानी में टीम कमांडर सौवीर सिंह की सूझबूझ और उनके टीम की कर्त्तव्यपरायणता के संयोजन से नक्सलियों का खात्मा सुरक्षा बलों की परेशानियों को पूरी तरह से कागज पर उतारने में सफल हुए हैं लेखक जी रात में जंगलों में टार्च जलाकर चल नहीं सकते,वरना नक्सलियों को आपकी पोजीशन पता चल सकती है अंधेरे में कब्रिस्तान में ही रात गुजारना
जंगल में रहते हुए मच्छरों की वजह से मलेरिया होना हो,,और इक्कीसवीं सदी में मलेरिया का इलाज कराने बड़ी मुश्किलों से दूर शहर तक खतरों से खेलकर पहुंचना
बस्तर के जंगलों में ताड़ के पेड़ से निकलने वाले रस ताड़ी या स्थानीय भाषा में ‘सल्फी’ का नाम ही हल्का नशा लिए हुए है,,जिसका उपयोग वहां के लोग करते हुए मिलते हैं
लाल चींटी की चटनी का जिक्र करना भी कमलेश जी नहीं भूले जिसे वहां के लोग खाते हैं
सौवीर का अपने टीम के लिए समर्पण बखूबी झलकता है जो रात में गोली चलाकर नक्सलियों को मारते हैं,वही सुबह होते ही मीडिया, नेताओं और बड़े सितारे वाले अधिकारियों की आड़ में छिप जाते हैं पर सौवीर अपने टीम के हर सदस्य की इच्छाओं का मान रखते हैं, उनके बिना मीडिया को फोटो नहीं देते
सुरेखा जोकि महिला नक्सली कमांडर है, उसकी परिस्थितियां जो उसे नक्सलवाद में ढकेलती है, और अंत में उसका त्याग सुरेखा को काली साड़ी में श्वेत चरित्र वान बनाती है
सौवीर और इला का प्रेम पूरब और पश्चिम के मिलने जैसा है इला के चरित्र की सौम्यता और दृढ़ता को बखूबी लिखा है लेखक जी ने वैसे तो हमारे देश के किसी भी हिस्से में लड़के और लड़की के प्रेम को स्वीकार ही नहीं किया जाता कहीं खाप पंचायत उसे तोड़ते हैं,
कहीं युगल आनर किलिंग का शिकार होते हैं फिर नक्सली गांव की लड़की और सुरक्षा बल के अधिकारी का मेल तो बिल्कुल भी आसान नहीं हो सकता पर उनके रोमांस की गर्माहट कमलेश जी के कलम से आप तक पहुंचती है
उपन्यास का क्लाइमेक्स बहुत ही कलात्मक, सुखद और रोमांचित करने वाला है
कहीं लगता है इलियट, विक्रम, साजिद, इंदर ,सुकम की कहानी है कहीं लगता है सौवीर और इला की कहानी है कहीं लगता है तीन सहेलियों हेमा, सुरेखा और इला की कहानी है
अच्छा उपन्यास वही है जहां हर पात्र प्रमुख हो लेखक कमलेश कमल जी ने हर पात्र के साथ पूरा न्याय किया है
बस्तर का जीवन , मुर्गे की लड़ाई,और देहाती हाट आप भी देखना चाहते हैं अपनी नजरों से तो यह पुस्तक जरूर पढ़ें
अपने शब्दों के प्रवाह को यहीं विराम देना चाहूंगी और लेखक श्री कमलेश कमल जी जो स्वयं आई टी बी पी में डिप्टी कमांडेंट हैं उन्हें साधुवाद देना चाहुंगी,, जिन्होंने बस्तर के पृष्ठभूमि पर इतनी अच्छी पुस्तक सृजन की आपको सहृदय साधुवाद 👏👏
डॉ प्रियंका एम तिवारी
नई दिल्ली
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