विपुल रेगे। सुनील शेट्टी पिछले कुछ समय से लगातार चर्चाओं में रहे हैं। योगी आदित्यनाथ से ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ पर रोक लगाने की मांग और हाल ही में उनकी बेटी की एक भारतीय क्रिकेटर से शादी के बाद वे ख़बरों में बने रहे हैं। 26 जनवरी को सुनील शेट्टी की एक फिल्म ‘ऑपरेशन फ्रायडे’ ओटीटी पर रिलीज हुई लेकिन ये न ख़बरों में आ सकी और न चर्चाओं में इसने कोई जगह बनाई। मुंबई में बनने वाली, मुंबई को ही दिखाई जाने वाली, मुंबई की ही कहानी दिखाती इस फिल्म को शायद मुंबईकरों ने भी देखने की इच्छा नहीं जताई होगी।
हाल ही में सुनील शेट्टी ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि उन्होंने फ़िल्में करनी इसलिए बंद कर दी क्योंकि लोग अब कचरे पर पैसा खर्च करना नहीं चाहते हैं। शेट्टी सही कहते हैं। दर्शक उनकी नई फिल्म ‘ऑपरेशन फ्रायडे’ पर पैसे खर्च करना नहीं चाहेंगे क्योंकि ये फिल्म बेसिकली कचरा ही है। पुलिस को इन्फर्मेशन देने वाला एक मुखबिर ग़ुलाम अपने भाई की हत्या के बाद अंडरवर्ल्ड का रास्ता पकड़ लेता है।
ग़ुलाम एक निष्ठावान पुलिस अधिकारी सदा नायर का ख़बरी रहता है और बाद में उसके विरुद्ध हो जाता है। ग़ुलाम एक प्रोफेशनल किलर बन जाता है। कहानी में आतंक का एंगल भी डाला गया है। एक गैंगस्टर मुंबई में बम धमाके करने की साजिश रच रहा है। फिल्म अंडरवर्ल्ड से शुरु होकर आतंकवाद से लड़ने पर समाप्त होती है। निदेशक विश्राम सावंत की ‘ऑपरेशन फ्रायडे’ एक बेअसर बोरिंग फिल्म है।
सेकुलरिज़्म से भी आगे जाते हुए निर्देशक ने एक दृश्य में हिन्दू पूजा-प्रार्थनाओं से घृणा का दृश्य डाला है। गुलाम सो रहा है और उसका साथ गणपति की पूजा कर रहा है। साथी आरती लेकर गुलाम के पास जाता है। गुलाम का रिएक्शन ऐसा है, जैसे उसे बहुत गुस्सा आ रहा हो। दृश्य में दिखाया गया कि गुलाम अपने साथी की पूजा-प्रार्थना को पसंद नहीं करता।
इसके स्क्रीनप्ले में वह क्षमता ही नहीं थी, जिस पर एक अच्छी फिल्म बनाई जा सके। निर्देशक ने अस्सी से नब्बे के दशक वाला ट्रीटमेंट दिया है, जिसके कारण फिल्म रेलेवेंट नहीं हो सकी है। आज के अंडरवर्ल्ड को ये किसी भी तरह रिप्रेजेंट नहीं करती। शुरुआती आधे घंटे में ही दर्शक को समझ आ जाता है कि इस फिल्म से तो टाइम पास भी नहीं किया जा सकता।
जब आप कहते हैं कि लोग कचरे पर पैसे खर्च करना नहीं चाहते, तो ठीक ही कहते हैं। एक ‘पठान’ ब्लॉकबस्टर होने से बाकी फिल्मों के लिए मार्ग नहीं खुल सकता। अब दर्शक फिल्मों को स्टार्स के कारण देखना बंद कर चुका है। फिल्म में कंटेंट होगा, तो ही उसे टिकट खिड़की पर प्रसाद मिलेगा।’ऑपरेशन फ्रायडे’ देखना समय की बर्बादी करने जैसा है। फिल्म में नग्न दृश्यों की भरमार है।
हालाँकि इन दृश्यों की कोई सिचुएशन निर्देशक ने नहीं डाली। बिना सिचुएशन डाली गई नग्नता विद्रूपता को पैदा करती है। सुनील शेट्टी इतना भी प्रभाव नहीं छोड़ सके हैं कि उनके नाम पर कुछ दर्शक इसे देख लें। रणदीप हुडा एक अच्छे अभिनेता हैं लेकिन गुलाम के किरदार में बेअसर रहे हैं। उनको ऐसी फ़िल्में करने से बचना चाहिए। यदि दर्शक ज़ी5 पर आ रही फिल्मों पर गौर करें तो पाएंगे इस ओटीटी मंच ने एक ‘फ्लॉप शो’ खोल रखा है। इस पर आने वाली नब्बे प्रतिशत से अधिक फ़िल्में फ्लॉप ही रही है।