सोनाली मिश्रा। योगगुरु बाबा रामदेव द्वारा खेद प्रकट करने के साथ ही अंतत: हालिया विवाद शांत हो गया। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री हर्षवर्धन ने भी उनकी प्रशंसा यह कहते हुए की कि यह पत्र उनकी परिपक्वता का प्रदर्शन करता है। एवं अब इस मामले को यहीं समाप्त किया जाए। दरअसल मामला था क्या! शनिवार को योग गुरु बाबा रामदेव का एक वीडियो सामने आया।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
जिसमें वह कथित रूप से कह रहे थे “एल्लोपैथी एक ऐसी स्टुपिड और दिवालिया साइंस है।” और जैसे ही यह वीडियो सामने आया वैसे ही आईएमए ने दावा किया कि उन्होंने यह दावा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री की उपस्थिति में अपनी चमत्कारी दवाई की लॉन्चिंग पर किया है। जैसे ही यह वीडियो सामने आया वैसे ही एक बार फिर से बाबा रामदेव के बहाने योग एवं भारतीय आयुर्वेद पर निशाना साधने वाली लॉबी सक्रिय हो गयी, एवं जातिगत प्रहार भी बाबा रामदेव पर होने लगे।
हालांकि पतंजलि की ओर से यह दावा किया गया था कि बाबा रामदेव किसी का फॉरवर्ड किया गया मेसेज पढ़ रहे थे। यह भी कहा गया था कि बाबा रामदेव का यह मानना है कि एलॉपथी एक प्रगतिशील विज्ञान है और एलॉपथी, आयुर्वेद, एवं योग तीनों के साथ मिलकर ही कोविड -19 का सामना किया जा सकता है तथा आधुनिक चिकित्सा के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है।
फिर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी बाबा रामदेव से बयान वापस लेने की मांग की एवं कहा कि उनके इस वक्तव्य से लाखों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पत्र के उत्तर में योगगुरु बाबा रामदेव ने खेद व्यक्त करते हुए लिखा कि उनका जो वक्तव्य कोट किया गया है, वह एक कार्यकर्ता बैठक का वक्तव्य है, जिसमें उन्होंने आए हुए व्हाट्सएप मेसेज को पढ़कर सुनाया था, उससे यदि किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो उन्हें खेद है।
परन्तु उन्होंने बाद में यह भी कहा कि कुछ एलॉपथिक डॉक्टर्स द्वारा भारतीय चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद एवं योग को स्यूडो-साइंस कहकर उसका भी निरादर नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे भी करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। इसके बाद इस पत्र में लिखा हुआ है कि योग आयुर्वेद एवं नेचुरोपैथी आदि भारतीय चिकित्सा पद्धति से बीपी, शुगर, थायरोइड, अर्थराइटिस, फैटी लिवर, अस्थमा आदि जैसे जटिल एवं वंशानुगत रोगों का नियंत्रण एवं स्थाई समाधान दिया है।
हालांकि इस पत्र के बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री द्वारा इस मामले का पटाक्षेप हाल फिलहाल हो गया है, परन्तु न ही यह स्थाई समाधान है और न ही ऐसा होने की संभावना है कि अब यह विवाद आगे नहीं होगा। दरअसल इस विवाद का कारण शायद 30 मार्च 2021 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख जॉनरोज़ ऑस्टिन जयालल का कट्टर ईसाई पत्रिका christianitytoday को दिया गया साक्षात्कार है। christianitytoday भारत में ईसाई रिलिजन के प्रचार प्रसार पर नजर रखती है एवं जिसका उद्देश्य 1956 से ही एक विश्वसनीय माध्यम बनने का है जो यह दिखा सके कि कैसे ईसाई अपना धार्मिक जीवन चर्च और समाज को मजबूत करते हुए जी सकते हैं।
और इसका उद्देश्य है खूबसूरत कट्टरपंथ को बढ़ावा देना। इनका कहना है कि इस समय की नकारात्मकता ने दुनिया को सत्य की खोज की तरफ धकेला है, और क्रिश्चिनियटीटुडे आज इस कार्य की जिम्मेदारी लेती है कि वह सच्चे, अच्छे और सुन्दर गोस्पेल (ईसाईरिलिजन संदेशों) को जनता तक पहुंचाए। इसी क्रिश्चिनियटीटुडे ने 30 मार्च को 2021 को एक साक्षात्कार प्रकाशित किया “एक भारतीय ईसाई डॉक्टर, जो कोविड 19 में आशा की लहर देख रहा है” (An Indian Christian Doctor Sees COVID-19’s Silver Linings)
यह साक्षात्कार अत्यंत विस्फोटक है! इसलिए नहीं कि यह आधुनिक चिकित्सा की तरफदारी करता है या फिर और कुछ, बल्कि आईएमए के अध्यक्ष के रूप में डॉ। जॉनरोज़ ऑस्टिन किस प्रकार आधुनिक चिकित्सा का प्रयोग ईसाइयत को बढ़ावा देने के लिए कर रहे हैं, यह इस घातक रणनीति पर प्रकाश डालता है और किस प्रकार वह हिन्दुओं के प्रति अपनी घृणा के लिए आधुनिक चिकित्सा को ढाल बना रहे हैं।
इसमें लिखा है “Johnrose Austin Jayalal, president of the Indian Medical Association, says the pandemic stirred the church to action। अर्थात जॉनरोज़ ऑस्टिन जयालल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि कैसे महामारी ने चर्च को एक्शन में ला दिया है।
इस साक्षात्कार में आईएमए प्रमुख ने कई मुद्दों पर बात की है जैसे कि आयुर्वेद को लेकर उन्हें क्या समस्या है, भारत की सरकार से उन्हें क्या समस्या है और कैसे उनके फेथ (धार्मिक विश्वास) ने देश में स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं की सबसे बड़ी पेशेवर परिषद में उनके नेतृत्व को प्रभावित किया है। इसमें उन्होंने खुलकर कहा है कि जब लॉकडाउन में चर्च बंद थे तो चर्च के नेतृत्व ने उन परिवारों की पहचान की जिन्हें आर्थिक सहायता चाहिए थी और फिर उन्हें वित्तीय सहायता दी और चर्च के उन सदस्यों को काउंसलिंग भी दी जो गरीबी रेखा के नीचे थे।
फिर वह एक और रिपोर्ट के प्रश्न के उत्तर में, जिसमें यह कहा गया था कि The Pandemic Lockdown Is a Godsend for the Indian Church अर्थात महामारी भारतीय चर्चों के लिए वरदान बनकर आई हैं, कहा कि यह सच है। और उन्होंने यह भी कहा कि इस महामारी ने सांसदों एवं विधायकों को भी नहीं छोड़ा है इसलिए लोगों को यह यकीन हुआ कि केवल “ग्रेस ऑफ गॉड ऑलमाइटी” ही उन्हें बचा सकता है।
अब यहाँ एक प्रश्न है कि जब वह और अन्य आधुनिक डॉक्टर आयुर्वेद को झाड़ फूंक कहते हैं तो ग्रेस ऑफ गॉड ऑलमाइटी क्या है? जब उनके अनुसार गॉड को ही सब कुछ करना है, तो फिर आधुनिक चिकित्सा की आवश्यकता क्या है? फिर आगे एक बहुत ही रोचक प्रश्न है कि कोविड 19 की गंभीरता के बारे में भारत और पश्चिम के बीच यह जो अंतर है उसके विषय में उनके क्या विचार हैं?
उस पर आईएमए प्रमुख का कहना था कि चूंकि भारत अमेरिका और यूके जैसा विकसित देश नहीं है, फिर भी यहाँ पर लोग कम संक्रमित हो रहे हैं क्योंकि वह लोग कई बैक्टीरिया के संपर्क में आते रहते हैं तो उनकी इम्युनिटी विकसित हो गयी है। और साथ ही यहाँ की जो चिकित्सा व्यवस्था है कि आप कहीं से भी दवाई ले सकते हैं, और आपको किसी सुपरस्पेशिलियटिस्ट के पास जाना है तो आप जा सकते हैं। मतलब आप पर कोई रोक नहीं है।
और तीसरा कारण उन्होंने BCD के टीके को बताया, जिसके कारण भारतीयों में संक्रमण कम फैला। उन्होंने कहा कि जैसे ही बच्चा पैदा होता है वैसे ही हर बच्चे को BCD का टीका लगता है और इन्हीं टीकाकरण ने भारत के नागरिकों को संक्रमण से बचा रखा है।
क्या यही कारण है कि भारत के दुश्मनों ने भारतीयों को कोरोना के टीकाकरण के बारे में भ्रमित किया? जिससे वह आगे वाले किसी संक्रमण का मुकाबला न कर पाएं? उसके बाद जो कहते हैं, उसे सभी को पढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि “मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि (गौर से पढ़िए, व्यक्तिगत तौर पर) कि अब प्रभु अमेरिका से अपना ध्यान हटाकर भारत पर केन्द्रित करेंगे और वह भारत में हम पर कृपा करने जा रहे हैं। (हँसते हैं)
और फिर उनका कहना था कि हम इस महामारी में यह दिखा सकते हैं कि कैसे चर्च काम करते हैं। उसके बाद उनसे एक प्रश्न पूछा गया कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख के रूप में अपने कार्य के विषय में बताएं। उसके उत्तर को आपको गौर से पढना चाहिए!
एक ईसाई के रूप में, मैं मेडिकल एसोसिएशन में एक मौके को सम्मिलित करने में सफल हो सका हूँ और वह है फैमिली मेडिसिन की अवधारणा। यह भारत से धीरे धीरे गायब हो रही है और भारत अब एक स्पेशिलीयटी आधारित स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की ओर मुड़ रहा है। हम फैमिली मेडिसिन कांसेप्ट को दोबारा से लाने की कोशिश में हैं और हम एसोसिएशन के लिए विस्तृत, समुदाय आधारित देखभाल ही मुख्य विषय बनाएंगे।
मुझे लगता है कि यह अच्छा मौका है कि हम देश को ईसाइयत के उदाहरण के साथ संचालित करें जिसमें “सर्वेंट नेतृत्व” के सिद्धांतों के अधीन हम काम करें। हालांकि भारत में केवल ढाई से तीन प्रतिशत ही ईसाई हैं, फिर भी मुझे इतने बड़े संस्थान का प्रमुख बनने का मौका मिला है तो मैं गॉड ऑलमाइटी से प्रार्थना करूंगा कि मैं इस देश का नेतृत्व मेडिकल प्रोफेशन में कर सकूं।”
अर्थात भारत की चिकित्सा व्यवस्था ही नहीं भारत को भी ईसाई मानसिकता से चलाने की कामना आईएमए के प्रमुख कर रहे हैं। इसके बाद जो उनसे पूछा गया, शनिवार से उत्पन्न हुए विवाद की जड़ें इसी प्रश्न में हैं। उनसे पूछा गया कि आपको अक्सर इस विषय में चिंता करते हुए देखा जा सकता है कि इस सरकार के विचार आधुनिक चिकित्सा के विषय में कैसे हैं? इससे आपका क्या मतलब है?
आईएमए के ईसाई प्रमुख का उत्तर हर पाठक को पढना चाहिए। वह कहते हैं कि आधुनिक दवाइयां वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित हैं। भारत सरकार अपने सांस्कृतिक एवं परम्परागत मूल्य प्रणाली, जिसे आयुर्वेद कहते हैं पर विश्वास करती है। यह चिकित्सा की प्राकृतिक व्यवस्था है, जिसका पालन काफी लम्बे समय से किया जा रहा है। अब नई शिक्षा नीति में आपको आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा, होम्योपैथी,योग और नैचुरोपैथी सबेहे को पढना होगा। सरकार इसे एक देश और एक चिकित्सा व्यवस्था के रूप में बनाना चाहती है। हालांकि हम किसे व्यवस्था के विरोधी नहीं हैं, पर हम मिक्स नहीं करना चाहते हैं।
हमने भारत सरकार के पास अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है और हमने कई धरने और प्रदर्शन किये हैं। भूख हड़ताल की है और अधिकतर आधुनिक मेडिकल डॉक्टर्स ने हमारे साथ इसमें भाग लिया है। मैं “गॉड ऑलमाइटी” से भी ज्ञान और दिशानिर्देश चाहूँगा कि मैं इस कठिन समय में क्या कर सकता हूँ। फिर उनसे पूछा गया कि आखिर उनका विरोध आयुर्वेद से केवल इसलिए है कि यह देश में एकमात्र चिकित्सा व्यवस्था बन जाएगा?
हालांकि उनके साक्षात्कार से सबसे जरूरी बात को एडिट कर दिया गया था। फिर भी आर्काइव में उनकी आपत्ति का मूल कारण दिख गया है। उनकी आपत्ति का मूल कारण है कि आयुर्वेद के चलते संस्कृत और संस्कृत के चलते हिन्दू धर्म को आगे आने का अवसर मिलेगा।
चूंकि आयुर्वेद के कारण हिन्दू धर्म और भाषा लोगों के दिमाग में अपना असर जमा लेगी तो समस्या होगी। इसलिए उनका विरोध है। और फिर बार बार उनका कहना है कि वह गॉड ऑलमाइटी के प्रति आशान्वित हैं कि वह सरकार से इस मामले पर लड़ते रहेंगे।
इसके बाद उनसे पूछा जाता है कि हिन्दू राष्ट्रवादियों के साथ ईसाई समुदाय के बीच सम्बन्ध कैसे हैं? तो उनका उत्तर सुनिए और फिर सोचिये कि हिन्दू कितने सहिष्णु हैं और आईएमए के ईसाई प्रमुख कितने सहिष्णु हैं। वह कहते हैं कि अधिकतर लोग उदार हृदय के हैं। सत्ताधीश कुछ लोगों के अलावा कुछ ही लोग कट्टर हैं। लोग समझदार हैं, अधिक सहिष्णु हैं और लोग आपकी बात समझते हैं।
एक और चीज़ हमें याद रखनी होगी कि हिन्दू धर्म बहुदेववाद के कारण शेष सभी धर्मों से अलग है। वह विभिन्न देवों को अपनाते हैं और उन्हें यह अपनाने में भी कोई समस्या नहीं होती है कि जीसस उन्हीं के देवताओं में से एक हैं या फिर इस्लाम के पैगम्बर मोहम्मद भी उन्हीं के देवों में से एक देव हैं। तो अन्य देशों की प्रणालियों की तुलना में धार्मिक प्रतिबंध बहुत कम हैं।
और उसके बाद वह दूसरे प्रश्न के उत्तर में कि वह कैसे अपने धार्मिक विश्वास को काम में प्रयोग कर सकते हैं, कहते हैं कि आम तौर पर मेडिकल के पेशे में हम शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में बात करते हैं, पर ईसाई के रूप में मेरा विश्वास है कि हम केवल शारीरिक इलाज के लिए ही नहीं हैं, बल्कि गॉड ऑलमाइटी ने हमें धार्मिक उपचार के लिए भी भेजा है, जिसमें आध्यात्मिक उपचार, मानसिक उपचार और सामाजिक उपचार भी शामिल हैं।
मेरी मुख्य चिंता यह है कि जब एक ईसाई डॉक्टर के रूप में कार्य करूं तो मैं यह सुनिश्चित करूं कि मेरे पास मानसिक कल्याण के लिए और व्यक्ति के आध्यात्मिक उपचार के लिए समय हो। हमें सेक्युलर संस्थानों, मिशन के संस्थानों और मेडिकल कॉलेज में काम करने के लिए ज्यादा ईसाई डॉक्टर्स की जरूरत है। मैं एक मेडिकल कॉलेज में सर्जरी के प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा हूँ, तो मेरे पास यह मौका है कि मैं ईसाई उपचार के सिद्धांतों को यहाँ आगे बढ़ा सकूं। और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं ग्रेजुएट्स औए इंटरिम को भी मेंटर कर रहा हूँ।
अंतिम प्रश्न जो देश के लिए भी घातक है, उसे पढ़ना और भी अधिक आवश्यक है:
यह एक आम विचार है कि यदि आप सच्चे ईसाई बनना चाहते हैं तो आपको एक पैस्टर या फिर मिनिस्टर या फिर चर्च में काम करने वाला होना चाहिए?
आप एक ईसाई पुलिस अधिकारी हो सकते हैं या फिर राजस्व विभाग में काम कर सकते हैं। वह स्थान यह निर्धारित नहीं करती कि आप कैसे ईसाई होंगे। यह तो गॉड ऑलमाइटी के साथ आपके सम्बन्ध हैं। जब हमारे सम्बन्ध परमपिता अर्थात फादर से होंगे तो हम जानते हैं कि हम कौन हैं और कौन हमारा मालिक है।
और हर मोर्चे पर वसर शानदार है। हम केवल पास्टर बनकर ही ईसाई रिलिजन की सेवा नहीं कर सकते हैं, मगर यह हर ईसाई की जिम्मेदारी है, जिसका दोबारा जन्म हुआ है और जिसके पास ईसाई रिलिजन के धर्मोपदेश फैलाए।
मैं देख रहा हूँ कि चाहे कितनी भी परेशानियां हों, चाहे कितने भी प्रतिबन्ध हों, चाहे हमें सन्देश फैलाने में कितनी भी समस्या हो, ईसाई रिलिजन हर तरह से बढ़ रहा है।
यह साक्षात्कार अपने आप में यह कहने के लिए पर्याप्त है कि क्यों बार बार आईएमए बाबा रामदेव और आयुर्वेद पर आक्रमण करती है, क्यों बार बार आयुर्वेद को नकली विज्ञान कहा जाता है। जिस देश में और जिस भाषा में आरोग्यता को वरदान के रूप में बार बार मांगा गया है, और जहाँ पर सर्वे भवन्तु सुखिन: की कामना की गयी है, और वह भी बिना धर्म बदले, उस धर्म और विचार के खिलाफ आधुनिक चिकित्सा पेशेवर की सबसे बड़ी संस्था केवल इसलिए खड़ी हो गयी है क्योंकि उनके प्रमुख के रिलीजियस विचार चिकित्सा से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
उन्हें हिंदुत्व नहीं बल्कि जब वह यह कहते हैं कि आयुर्वेद के बहाने संस्कृत और हिन्दू धर्म लोगों के दिमाग में छा जाएगा तो उनकी रिलीजियस कुटिलता और रिलीजियस असुरक्षा को समझा जा सकता है और यही कारण है कि बार बार आयुर्वेद पर हमले हैं, बाबा रामदेव पर हमले हैं और इन सबके बहाने हिन्दुओं पर हमले हैं। वह साफ़ कह रहे हैं कि वह इस देश की चिकित्सा पद्धति को ईसाई धर्म के अनुसार चलाना चाहते हैं, अर्थात इस पूरे देश को ईसाई धर्म के अनुसार चलाना चाहते हैं, और यह विडंबना है कि हिन्दुओं के देश में संस्कृत और आयुर्वेद पर तो प्रश्न उठाए जा सकते हैं, परन्तु आधुनिक चिकित्सा पर नहीं!
सही बताइयेगा क्या वाकई हम स्वतंत्र हैं? या आज भी ईसाईयत के चंगुल में हैं और आने वाले समय में और होंगे क्योंकि जकड़न अबकी बार बहुत तेज है, इस बार वह भेष बदल कर है! सोचिए जो व्यक्ति इस महामारी को ईसाई रिलिजन के प्रचार के लिए प्रयोग कर रहे हैं, वह कैसे इस महामारी का अंत हो या फिर आयुर्वेद, जो रोगों के स्थाई समाधान एवं निरोग होने पर जोर देता है, उसका समर्थन कैसे कर सकता है?
एक व्यक्ति जो ऐसे प्रमुख पद पर है वह अपने रिलिजन को फैलाने के लिए किस प्रकार पूरे सिस्टम का प्रयोग कर रहा है, वह निंदनीय है! पर दुर्भाग्य से सहिष्णु हिन्दू एलॉपथी के लिए तो सहिष्णु है परन्तु अपने आयुर्वेद के लिए असहिष्णु है! और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या अब हमारी पूरी चिकित्सा पद्धति और देश ईसाई रिलिजन के अनुसार चलेगा जैसा आईएमए प्रमुख खुद कह रहे हैं:
या हम सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत। के पथ पर चलेंगे? और एक प्रश्न सरकार से भी है कि क्या धार्मिक व्यक्ति किसी पूरी पद्धति का नेतृत्व कर सकता है, और वह धार्मिक व्यक्ति जो उस देश के मूल धर्म से, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा से और ज्ञान विज्ञान की भाषा से घृणा करता है!
क्या आधिकारिक रूप से हिन्दू अब ईसाई पद्धति के अनुसार जीवन जिएगा? क्या हिन्दुओं के रूप में हमारी धार्मिक स्वतंत्रता चिकित्सा के नाम पर गिरवी रख दी गयी हैं? इस साक्षात्कार के बाद प्रश्न कई हैं, परन्तु उत्तर शायद नहीं!