विपुल रेगे। सन 1982 में महात्मा गाँधी के जीवन पर बनी ‘गाँधी’ और भारतीय निर्देशक शुजीत सिरकार द्वारा निर्देशित ‘सरदार उधम’ में हम एक समानता खोज पाए हैं। इन दोनों फिल्मों में ही जलियांवाला बाग़ हत्याकांड वैसा ही दिखाया गया, जितना कि घृणित वह था। दोनों ही फिल्मों में इस दृश्य को बहुत गहनता के साथ फिल्माया गया था। दोनों ही फिल्मों में गुलाम भारत की ब्रिटिश शासन के प्रति घृणा प्रकट होती थी। तो फिर गाँधी को ढेरों पुरस्कार और सरदार उधम को एकेडमी अवार्ड्स ने ठेंगा क्यों दिखा दिया। क्या अब भी पश्चिमी समाज भारत को लेकर अपनी पुरातन सोच से उभर नहीं सका है या उसे सरदार उधम में दिखाई गई तीखी सच्चाई सहन नहीं हुई।
भारत में धूम मचा रही विकी कौशल की ‘सरदार उधम’ को ऑस्कर में आधिकारिक प्रविष्टि देने से मना कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि ये एंट्री भारत सरकार की ओर से भेजी गई थी। एकेडमी अवॉर्ड्स में एंट्री के लिए फ़िल्मों का चुनाव करने वाली समिति को लगता है कि सरदार उधम में ब्रिटिश के ख़िलाफ़ कुछ ज़्यादा ही नफ़रत दिखा दी गयी है, इसलिए इसे ऑस्कर अवॉर्ड्स की रेस में नहीं भेजा जाना चाहिए।
यदि चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, गाँधी और उधम सिंह पर फिल्म बनाई जाएगी तो क्या घृणा को परे रखा जा सकेगा ? एकेडमी अवार्ड्स में तो फिल्मों को चुने जाने का मापदंड ही यही है कि उनमे वास्तविकता का एसेंस होना चाहिए। क्या अब भी पश्चिमी समाज में रंगभेद का वातावरण यथावत है। जब भी भारतीय फिल्मों को ऑस्कर भेजा जाता है तो यही कथा दोहराई जाती है। हमें याद है जब निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की सर्वकालिक श्रेष्ठ फिल्म ‘लगान’ को भी बाहर कर दिया गया था।
सन 2010 में मराठी फिल्म निर्देशक परेश मोकाशी की मास्टरपीस ‘हरिश्चंद्राची फैक्टरी’ ऑस्कर के कठिन राउंड पार नहीं कर सकी थी। इसलिए नहीं कि उस फिल्म में योग्यता नहीं थी, बल्कि इसलिए कि भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के की जिजीविषा और परिश्रम के बारे में विश्व जान जाता। शायद ये ऑस्कर की निर्णय समिति को स्वीकार नहीं था।
जब ऑस्कर के निर्णायकों को एक ब्रिटिश मूल के फिल्म निर्देशक रिचर्ड एटनबरो की बनाई ‘गाँधी’ में ब्रिटिशों के लिए घृणा स्वीकार हो जाती है तो शुजीत सिरकार की ‘सरदार उधम’ में स्वीकार क्यों नहीं होती ? कदाचित वे इस बात को पचा नहीं पा रहे कि सरदार उधम सिनेमाई दृष्टिकोण से रिचर्ड एटनबरो की ‘गाँधी’ के बराबर ठहरती है।
ऑस्कर को ये स्वीकार करने में दिक्कत है कि एक भारतीय फ़िल्मकार ब्रिटिश शासन की क्रूरता और दोगलेपन को बिना लाग-लपेट वास्तविकता से प्रस्तुत कर सकता है। सिनेमैटोग्राफी, सुंदर कैमरा वर्क, एडिटिंग, साउंड डिज़ाइन और उस कालखंड के पुनर्निर्माण के मापदंड पर विकी कौशल की फिल्म न केवल ऑस्कर में दौड़ने योग्य है, अपितु पुरस्कार पाने की भी अधिकारी है। किसी निर्देशक की एक कालजयी कृति को बेदम तर्कों के साथ ख़ारिज किया जा रहा है।
विश्व सिनेमा हमेशा ही हमारी उत्कृष्ट फिल्मों के साथ अन्याय करता आया है और ‘सरदार उधम’ के साथ भी यही हुआ है। कथा अनवरत जारी है। वे सन 2008 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ को ऑस्कर पुरस्कार देते हैं क्योंकि उसमे भारत की गरीबी क्लासिक अंदाज में दिखाई गई थी। वे उधम सिंह, लगान और हरिश्चंद्राची फैक्टरी को ठुकरा देते हैं क्योंकि उनमे भारत की विजय गाथाएं होती हैं। पश्चिमी समाज अपने दोगलेपन के साथ जब चाहे जब नग्न हो जाता है।
Main reason for rejection –
Movie made by an Indian
“Gandhi” and “Slumdog millionaire” were made by non-Indians; a big plus for selection.
It’s mentality of “we know what is good, fair, and just for you”.