1987 में ओशो फाउंडेशन की कुल संपत्ति 6 एकड़ थी। ये अब 28 एकड़ तक पहुंच चुकी है। यानि 35 सालों के दौरान साढ़े चार गुणा की बढ़ोतरी। लेकिन कुल संपत्ति के 1.5 फीसदी की बिकवाली को लेकर विवाद इस कदर खड़ा हो गया है कि मामला बांबे हाईकोर्ट से लेकर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी तक पहुंच गया है।
पुणे का ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट फिर से विवादों में है। मुंबई के ज्वाईंट चेरिटी कमिश्नर ने कोरेगांव की संपत्ति की बिकवाली के लिए नए सिरे से बिड निकाली तो आश्रम के अनुयायियों का समूह बांबे हाईकोर्ट तक पहुंच गया। योगेश ठक्कर नाम के शख्स का कहना है कि उनकी पहली अपील का कमिश्नर ने निपटारा किया नहीं और फिर से बिड निकाल दी। ये गलत है।
ओशो मेडिटेशन सेंटर एक ट्रस्ट है, जिसका मालिकाना हक नियो सन्यास और ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के बीच बंटा है। आश्रम को 1998 में ट्रस्ट का दर्जा मिला था। तब इसका नाम रजनीश फाउंडेशन से नियो सन्यास फाउंडेशन किया गया था। हालांकि इसकी स्थापना 1969 में जीवन जागृति केंद्र ने की थी। विवाद तब शुरू हुआ जब 2020 में ओशो इंटरनेशनल पाउंडेशन ने एडिशन चेरिटी कमिश्नर के पास आवेदन देकर कहा कि कोविड और विदेशी भक्तों की आमद पर रोक के चलते वो दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं। लिहाजा उन्हें कुछ संपत्ति बेचने की अनुमति प्रदान की जाए।
फाउंडेशन 1.5 एकड़ के दो प्लाट बेचने का इच्छुक था। नीलामी में सबसे ज्यादा बोली राहुल कुमार बजाज और ऋषभ फैमिली ट्रस्ट ने दी। ये रकम 107 करोड़ रुपये थी। ट्रस्ट ने 30 नवंबर 2020 को एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें MOU को मंजूरी दी गई।
हालांकि ओशो फाउंडेशन पर विवाद 2013 से चला आ रहा था। योगेश ठक्कर ने पुणे पुलिस को शिकायत देकर कहा कि भगवान रजनीश की वसीयत फर्जी है। उनका आरोप था कि फाउंडेशन भारी रकम को यहां से वहां कर रही है। 2016 में वो बांबे हाईकोर्ट पहुंच गए और पुलिस पर आरोप लगाया कि वो उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं ले रही है। हाईकोर्ट ने जांच पुणे की इकोनॉमिक आफेंस विंग के सुपुर्द कर दी। 2018 में पुलिस को हाईकोर्ट ने धीमी जांच के लिए फटकार भी लगाई।
बजाज से दो प्लाटों की डील के बाद फाउंडेशन फिर से विवादों के घेरे में आ गया। मार्च 2021 में चेरिटी कमिश्नर के पास जांच के लिए दरखास्त गई तो जुलाई में योगेश ठक्कर और उनके साथ के कुछ लोग राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास चले गए। राज्यपाल को दिए अपने जवाब में फाउंडेशन ने कहा कि वो आश्रम की केवल 1.5 फीसदी संपत्ति ही बेचना चाहते हैं। विवाद अभी अनसुलझा है।