१) पहला प्रश्न:
भगवान, अनुकंपा करें और गहराई से समझाएं, प्रतिरोध न करें। मैं एक व्यापारी हूं और विश्व का समाजसेवी सदस्य हूं। अगर आप मुझे कोई युक्ति दें तो मैं बहुत अनुगृहीत होऊंगा। मैंने आपकी ‘बुक ऑफ दि सीक्रेट्स’ के पांचवे भाग का एक शब्द पढ़ा है: ‘स्वीकार भाव’
२) दूसरा प्रश्न: भगवान, हरिद्वार से दो साधु कल आश्रम देखने आये थे। हमने उनसे पूछा कि आपकी साधना क्या है? उनमें से एक स्वामी श्री रामानंद परमहंसपुरी ने बताया कि ‘हम श्वास-श्वास में नाम जपते हैं, अजपा जाप करते हैं।’
और आपका दर्शन करना चाहते थे, यह कहते हुए कि “संत समागम हरिकथा, तुलसी दुर्लभ दोय।” और कहा कि जैसे भगवान श्री कृष्ण से अर्जुन ने पूछा था, ऐसे मैं भी भगवान श्री से पूछता हूं, ‘मेरा मन चंचल है, एकाग्र कैसे हो ?’
ज्यूं मछली बिन नीर-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-08*
प्रतिरोध न करें!
सुनिए इन प्रश्न के उत्तर में भगवान श्री रजनीश ने क्या कहा?