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India Speaks Daily > Blog > धर्म > उपदेश एवं उपदेशक > आंखों का कोई संस्कारित रूप नहीं होता,यह शुद्ध प्रकृति हैं ! ओशो
उपदेश एवं उपदेशक

आंखों का कोई संस्कारित रूप नहीं होता,यह शुद्ध प्रकृति हैं ! ओशो

ISD News Network
Last updated: 2016/11/12 at 6:12 PM
By ISD News Network 467 Views 4 Min Read
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4 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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OSHO । आंखों का कोई संस्कारित रूप नहीं होता,आंखें शुद्ध प्रकृति हैं। आंखों पर मुखौटा नहीं है। और दूसरी बात याद रखने की यह है कि तुम संसार में करीब- करीब सिर्फ आंख के द्वारा गति करते हो। कहते हैं कि तुम्हारी अस्सी प्रतिशत जीवन-यात्रा आंख के सहारे होती है। तुम्हारा अस्सी प्रतिशत जीवन आंख से चलता है। तुम्हारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा तुम्हारी आंखों से बाहर जाती है। तुम संसार में आंखों के द्वारा गति करते हो। इसलिए जब तुम थकते हो तो सबसे पहले आंखें थकती हैं और फिर शरीर के दूसरे अंग थकते हैं। सबसे पहले तुम्हारी आंखें ही ऊर्जा से रिक्त होती हैं। अगर तुम अपनी आंखों को फिर तरोताजा कर लो तो तुम्हारा पूरा शरीर तरोताजा हो जाएगा,क्योंकि आंखें तुम्हारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा हैं।तुम्हारी अस्सी प्रतिशत ऊर्जा आंखों से होकर बहती है। तुम्हें इसका पूरा – पूरा बोध होना चाहिए और तुम्हें आंखों की गति, उनकी ऊर्जा, उनकी संभावना के संबंध में जागरूक होना चाहिए।

भारत में हम अंधे व्यक्तियों को प्रज्ञाचक्षु कहते हैं; उसका विशेष कारण है।उसके पास अस्सी प्रतिशत ऊर्जा का भंडार पड़ा है,और जो ऊर्जा सामान्यत: बहिर्यात्रा में लगती है वही ऊर्जा अंतर्यात्रा में लग सकती है। अगर वह उसे अंतर्यात्रा में संलग्न करना जान ले तो वह प्रज्ञाचक्षु हो जाएगा,विवेकवान हो जाएगा। तो अंधा होने से ही कोई प्रज्ञाचक्षु नहीं हो जाता, लेकिन वह हो सकता है। उसके पास सामान्य आंखें तो नहीं हैं, लेकिन उसे प्रज्ञा की आंखें मिल सकती हैं। इसकी संभावना है। हमने उसे प्रज्ञाचक्षु नाम यह बोध देने के इरादे से दिया कि वह इसके लिए दुख न माने कि उसे आंखें नहीं हैं। वह अंतर्चक्षु निर्मित कर सकता है। उसके पास अस्सी प्रतिशत ऊर्जा का भंडार अछूता पड़ा है जो आंख वालों के पास नहीं है। वह उसका उपयोग कर सकता है। वह अंतर्यात्रा कर सकता है।तुम यही अपनी आंखों के साथ कर सकते हो। तुम्हारी बाहर जाने वाली ऊर्जा को वापस लाने,तुम्हारे हृदय केंद्र पर उतारने से,तंत्र विधि द्वारा।

अगर वह ऊर्जा तुम्‍हारे ह्रदय में उत्‍तर जाए तो तुम बहुत हलके हो जोओगे। तुम्‍हें ऐसा लगेगा कि सारा शरीर एक पंख बन गया है, कि तुम पर अब गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव न रहा।और तुम तब तुरंत अपने अस्तित्व के गहनतम स्रोत से जुड़ जाते हो, और वह तुम्हें पुनरुज्जीवित कर देता है।तंत्र के अनुसार,गाढ़ी नींद के बाद तुम्हें जो नवजीवन मिलता है,जो ताजगी मिलती है,उसका कारण नींद नहीं है,उसका कारण है कि जो ऊर्जा बाहर जा रही थी वही ऊर्जा भीतर आ जाती है।

अगर तुम यह राज जान लो तो जो नींद सामान्य व्यक्ति छह या आठ घंटों में पूरी करता है, तुम कुछ मिनटों में पूरी कर सकते हो। छह या आठ घंटे की नींद में तुम खुद कुछ नहीं करते हो, प्रकृति ही कुछ करती है, और इसका तुम्हें बोध नहीं है कि वह क्या करती है। तुम्हारी नींद में एक रहस्यपूर्ण प्रक्रिया घटती है। उसकी एक बुनियादी बात यह है कि तुम्हारी ऊर्जा बाहर नहीं जाती, वह तुम्हारे हृदय पर बरसती रहती है।और वही चीज तुम्हें नया
जीवन देती है, तुम अपनी ही ऊर्जा में गहन स्नान कर लेते हो।

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