मंदिर से अर्थ है तुम्हारी देह से! क्योंकि, इसी मंदिर में तो परमात्मा विराजमान है। कहां भागे जाते हो? किसे खोजने निकले हो? अनंत से तो खोज रहे हो, मिला नहीं। जरूर कोई बुनियादी चूक हो रही है। जो भीतर हो, उसे बाहर खोजोगे तो कैसे पाओगे? मंदिर हो तुम! तुम्हारी देह परमात्मा के विपरीत नहीं है। तुम्हारी देह को तो परमात्मा ने अपना आवास बनाया है। तुम्हारी देह मंदिर है, पूजा का स्थल है, काबा है, काशी है! तुम्हारी देह को दबाना मत, सताना मत। तुम्हारी देह को तोड़ने में मत लग जाना।
जिसको यह समझ में आ गई बात, जिसके भीतर यह बात बहुत गहराई में बैठ गई, यह नासमझी कि देह पाप है, वह परमात्मा से कभी भी न मिल सकेगा। क्योंकि देह से डरा-डरा बाहर-बाहर रहेगा और देह के भीतर तो प्रवेश कैसे करेगा? पाप में कहीं प्रवेश किया जाता है! देह उसकी भेंट है, पाप नहीं। देह पुण्य है, पाप नहीं। देह पवित्र है, अपवित्र नहीं। देह का सम्मान करो। देह का सत्कार करो। और तभी तो तुम प्रवेश कर पाओगे। देह से मैत्री बनाओ, यारी साधो! और धीरे-धीरे देह में भीतर सरको।
योग तैयार करता है तुम्हारी देह को, ताकि तुम भीतर सरक सको, तुम्हारी देह के द्वार खोलता है। और ध्यान, तुम्हें देह के भीतर बैठने की कला सिखाता है। और जिसने देह के द्वार खोल लिए योग से और जिसने ध्यान से भीतर बैठने की कला सीख ली, पा लिया उसने परमात्मा को! सदा परमात्मा ऐसे ही पाया गया है। मंदिर दियना बार! आत्म-ज्योति भीतर जलानी है। यह दीया तुम्हारी देह में जलना है। जलाना है, कहना शायद ठीक नहीं–जल ही रहा है, पहचानना है, प्रत्यभिज्ञा करनी है।
यह तुम्हारी देह, यह तुम्हारा दिल धड़कता है जो भीतर, इसी के अंतरतम में परमात्मा विराजमान है। उतरो देह की सीढ़ियों से, पाओगे हृदय को। वह तुम्हारा अंतरगृह है। फिर उतरो हृदय की सीढ़ियों से और तुम पाओगे उस अमृत के स्रोत को, जिसके बिना जीवन उदास है, जिसके बिना जीवन संताप है, जिसके बिना जीवन विषाद है!
साभार: ओशो वाणी , ओशो टॉक,
URL: Osho talk – Yoga, meditation and body
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