संदीप देव। सोशल मीडिया से बाबागिरी के रूप में चमकने वालों में एक आचार्य प्रशांत भी हैं, जो ओशो की ‘पाइरेटेड कॉपी’ हैं। सनातन धर्म के मूल ग्रंथों की जगह ओशो को पढ़ कर सीधे बाबागिरी करने वालों में जग्गी वासुदेव, आचार्य प्रशांत आदि अनेक लोग हैं।
ओशो ने उपनिषद, बुद्ध, महावीर, अन्य संत, गीता पर जो प्रवचन दिए थे, आप प्रशांत जैसों का दायरा वहीं तक देखेंग। जहां-जहां ओशो ने गलत आख्यान या उदाहरण दिए हैं, प्रशांत और जग्गी आदि भी वहीं-वहीं पर गलत आख्यान और गलत उदाहरण देते नजर आएंगे!
वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों पर ओशो का अध्ययन बेहद कम था, इसलिए यहां की बातों को वह अंधविश्वास कह कर आलोचना करते थे या निर्गुण और छायावादी तरीके से बता कर निकल जाते थे।
आज प्रशांत भी वही कर रहे हैं। कुंभ पर उनके वीडियो देखिए, ज्ञान का अभाव साफ नजर आएगा। वह इधर-उधर के फिलर से उसे भरते नजर आएंगे। यही कारण है कि उनके समर्थक कुंभ में ‘कुंभ अंधविश्वास का मेला’ पोस्टर और स्टॉल लगाकर प्रचार कर रहे हैं। नागा साधुओं ने उनके पोस्टर को फाड़ दिया, परंतु उनके साथ कोई मारपीट नहीं की है। प्रशांत के समर्थकों को यदि उकसाने का अधिकार है तो उनके पोस्टर को फाड़ कर जलाने का अधिकार भी हमारे साधु-संतों को है!
इन ‘यूट्यूब आचार्यों’ से विनती है कि ओशो के अलावा मूल शास्त्रों का भी अध्ययन कीजिए तो गहराई आएगी, सनातन के समुद्र में फिर उतर पाएंगे, अन्यथा इस जन्म में ताल-तलैया से अधिक की यात्रा संभव नहीं हो पाएगी! भीड़ देखकर ज्ञानी होने का अहंकार मत पालिए, भीड़ तो हर तमाशे पर इकट्ठी हो जाती है!


ज्ञानी कहलाने का अहंकार, धन के अहंकार से भी बड़ा है! अतः ज्ञानी की जगह ध्यानी बनिए और मूल शास्त्रों में डुबकी लगाइए, फिर स्वयं के अंदर भी डुबकी लग जाएगी।
आचार्य प्रशांत यदि आप ओशो की जगह स्वयं में उतरे होते तो अपने समर्थकों के प्रश्नों का उत्तर देते समय आप स्थिर और शांत रहते, न कि तनाव से आपका पैर और आपका पूरा शरीर हिलता-डुलता रहता। शरीर को शांत किए बिना मन शांत नहीं हो सकता, और जिसका मन शांत नहीं है वह ‘कुंभ’ की गहराई को क्या समझेगा?
Abe chutiya tu media hai tere ko ye bhi nahi pata ki vastav me sachai kya hai jake twitter pe mohan singh ka tweet dekh tab samajh me ayega
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