एक तरफ पाकिस्तान के जवान रूह काँपा देने वाली दरिंदगी का पैगाम दे रहा था दूसरी तरफ भारत अपने चरित्र के मुताबिक खेल भावना की मिसाल पेश कर रहा था। एक तरफ जम्मू के पास अंतर्राष्ट्रीय बार्डर पर पाकिस्तान के जवान हमारे बीएसएफ के जवान को करंट लगा तड़पा रहे थे, फिर पैर काटकर, गला रेत कर, आंख निकाल रहे थे। पाकिस्तान के बैट के दरिंदगी के जवाब में यूएई में खेल के मैदान में भारतीय नवयुवक हरफरमौला युजवेंद्र चहल पाकिस्तानी बल्लेबाज उस्मान खान के जूते के फीते बांध रहे थे। उस पाकिस्तान के साथ जिसके कभी कप्तान रहे इमरान खां ने अस्सी के दशक के आखिर में कहा था कि कश्मीर का फैसला भारत-पाकिस्तान को क्रिकेट के मैदान में कर लेना चाहिए।
आज वही इमरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मंत्री हैं। जिसने खेल भावना को खेल के मैदान में नहीं माना उससे फौजी सरपरस्ती में अमन की बात कैसे की जा सकती है? ऐसे में वो रुह कपां देने वाली हरकतों को अंजाम दे और हम मानवीयता का पैगाम देते रहें! ये कब तक चलेगा! हीद की पहचान बीएसएफ की 176 बटालियन के हेड कांस्टेबल नरेंद्र कुमार(50) निवासी थाना कला, जिला सोनीपत, (हरियाणा) के रूप में हुई है। इस हमले के पीछे पाकिस्तान की बॉर्डर एक्शन टीम (बैट) का हाथ माना जा रहा है। पाकिस्तान की बैट टीम में पाकिस्तानी रेंजर्स के साथ आतंकी भी रहते हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा से बहुप्रतिक्षित होता है। इस बार भी लंबे इंतजार के बाद भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीम आमने-सामने थी। दुनिया भर में तिरस्कृत आतंकिस्तान बन चुके पाकिस्तान में न तो दुनिया की कोई टीम खेलने आती है न उसे अपने घर बुलाती है। आतंकवाद का पोशाक पाकिस्तान आज दुनिया में हर मोर्चे उपेक्षित है। पाकिस्तान से भारत ने कूटनीतिक संबध को ठंढे बस्ते में डाल रखा है। क्रिकेट में भारत के तिरस्कार का ही कारण है कि पाकिस्तान के खेल का स्तर लगातार गिरता चला गया। बुधबार को पाकिस्तान पर भारत की जीत अब तक की सबसे बड़ी जीत मानी जाती है जिसे भारतीय खिलाड़ियों ने 32 ओवर पहले ही जीत लिया।
ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान हर मोर्चे पर हारा हुआ है उसे खेल के मैदान में उसके साथ खड़ा होकर भारत ने उसे एक जीवनदान दिया है। भारत मानवीयता का परिचय देता रहे और पाकिस्तान दरिंदगी का खेल खेल खेलता रहे ये कब तक चलेगा! जिस मुल्क की बुनियाद ही नफरत के धरातल पर पैदा हो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। खेल के मैदान में किसी उस्मान खां को किसी भारतीय युजवेंद्र चलह द्वारा खेल भावना का परियच देने से उसके उस मिजाज को नहीं बदल सकता जो खेल के मैदान को भी युद्ध के मैदान की तरह लेता है।
वही खिलाड़ी आज देश का मुखिया है जो कभी खेल के मैदान को ही जंग का मैदान बनाना चाहता था। अब उस खिलाड़ी की पाकिस्तानी सेना की ये दरिंदगी भारतीय जवानों में खौफ पैदा करने के लिए। हम अपने मानवीय व्यवहार के दरिंदों को इंसान नहीं बना सकते। खेल के मैदान को जंग का मैदान समझने वालों को मानवीयता की सीख नहीं दी जा सकती। दरिंदो बस उसी की भाषा में जवाब दिया जा सकता है। पता नहीं कब तक हम दरिंदो की दरिंदगी का जवाब इंसानियत का नए पैगाम से देते रहेंगे।
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