।। एक अज्ञात यात्रा ।। जम्मू की धरती बहुत पुण्य शालिनी है वहां मां चंद्रभागा अपने पूर्ण वेग से प्रभावित होते हुए मानो अपने बच्चों को स्नेह से भिगोती जा रही ही थी। चंद्रभागा जिसे आजकल चिनाब के नाम से जानते हैं मुझे रहस्यमई ढंग से आकर्षित करती हैं। मुझे अखनूर में कुछ दिन हो गए थे यहां के कस्बे नुमा वातावरण और आसपास की शांति ने मानो मुझे भी शांत बना दिया था। आसपास के पेड़ों से सजी सड़क अब मेरी परिचिता बन गई थी इस पर गाड़ी दौडाते मानो हम एक दूसरे को अभिनंदन करते थे।

यह सड़क एक खास स्थान पर दो भागों में बांट जाती थी बायी तरफ सेना का बनाया लोहे का पुल था। कुछ लोग खड़े इंतजार कर रहे थे उस पार जाने के लिए। यह देखकर बचपन की कहानी याद आ गई नदी पर एक पेड़ गिरा था और दो बकरियां आमने सामने आ गई थी बीचोबीच एक ने बैठ कर दूसरे को रास्ता दे दिया और दोनों ही पार हो गई। सच में सामाजिक सामंजस्य हमेशा सुव्यवस्था ही लाता है पुल पार करते पवित्र चंद्रभागा नदी के दर्शन करते मुझे श्री आदि गुरु शंकराचार्य पर हमारे संदीप जी का व्याख्यान अनायास ही याद आ गया उनके इस पार से उस पार जाना ही होगा द्वैत से अद्वैत की यात्रा, अज्ञान से ज्ञान की यात्रा नीचे मां चंद्रभागा का जल संसार का प्रतीक बना बहता जा रहा था यह पुल सेना के पराक्रम से बना था हर दृश्य में कुछ ना कुछ सत्य उद्घाटित हो रहा था।
मानव को भी तो इस पार से ईश्वर तक जाने के लिए गुरु का साधन चाहिए होता है और यात्रा करने में कितनी बाधाएं पार करनी होती है उसकी हर पग पर हमें शौर्य धैर्य लग्न की आवश्यकता होती है। बरहाल हम पहुंचे तो छोटी-छोटी सड़कों की भूलभुलैया हमारी प्रतीक्षा कर रही थी बिना भीड़भाड़ वाली ऊंची नीची सड़कों को पार करते हम जल्दी ही अपने गंतव्य पर पहुंच गए।
एक मोड़ पर दाएं मुड़ना था और रोड के बाएं तरफ एक घाट पर एक पवित्र चिता जल रही थी और कुछ ही कदम पर नदी बह रही थी। वहां आसपास घर थे सब कुछ कितना ही स्वीकार्य था फिर से व्याख्यान की पंक्तियां साक्षात हो गई की शिव मंदिर भी है शमशान भी कोई भेदभाव नहीं। भोलेनाथ तो अपने भक्तों के प्रेम में इतने डूबते हैं कि उनकी भस्म भी अपने शरीर पर मल लेते हैं। भक्त और आराध्य किस अनोखेरंग में एक दूसरे को रंगते हैं हैं यह हमारी सनातन संस्कृति के अलावा मैंने तो कहीं नहीं देखा।
और साथ में मां की तरह गोद में लेने चंद्रभागा नदी बह रही थी हम अनुभूति करें तो जीवन के हर पल हाथ थामे प्रभु हमें जीवन यात्रा कराते मिलेंगे। इन्हीं विचारों में डूबते उतरातें मैं गाड़ी से उतरकर धीरे धीरे चलते मंदिर के नीचे बने घाट तक आ गई। अथाह जलऔर बहती लहरें उस तरफ जाने को बार-बार विवश कर रही थी और मंद मंद बहती हवा वहीं रुकने को बोल रही थी।बायी और सीढ़ियों से ऊपर जाकर एक महादेव का स्वयंभू पवित्र शिवलिंग था और नीचे नंदी महाराज विराजे थे यह मंदिर का घाट वाला द्वार था।
अंदर जाकर दुर्गा मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर , हनुमान मंदिर और धर्म राज धर्मराज मंदिर बने थे। यहां की विशेषता रामसेतु पर तैरने वाले पत्थर भी है हालांकि मुख्य द्वार सड़क पर बना था पर जैसे ईश्वर को पाने के मार्ग अनेक है उन तक पहुंचने के भी अनेक मार्ग है। हम भी दूसरे मार्ग से ही दर्शन करने आ गए थे, वहां कोई बुजुर्ग सज्जन बैठे थे पूछने पर पता चला वह पुजारी नहीं थे और बेंगलुरु के थे सनातन मानने वाले भाषा ,क्षेत्र ,जाति को पार करके अपने आराध्य से मिलने आ ही जाते हैं।
उनके अनुसार यह क्षेत्र महाभारत काल का विराटनगर था। कुछ देर में मुख्य पुजारी जी आए और बातचीत करने पर पता चला कि वे उड़ीसा से हैं सुनकर बहुत हर्ष हुआ शायद जगन्नाथ जी ने उन्हें महादेव की सेवा के लिए भेजा था उन्होंने बताया कि यह स्थान विशेष महत्व रखता है यहां कश्मीरी ब्राह्मण व जम्मू के डोगरा जाति के लोग श्राद्ध व पिंडदान के लिए आते हैं। और यह मंदिर” जिया पोता घाट दुर्गा मंदिर स्वर्गाश्रम “के नाम से प्रचलित है।
इसी मार्ग पर पहले गुरुद्वारा, मध्य में यह मंदिर और इसके बाद एक हरि मंदिर आता है तीनों ही प्राचीन है स्थान हम सभी लोगों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है यहां 1990 जिन कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ था उनका भी सम्मिलित रूप से कुछ दूर चलने पर बाई तरफ एक पुराने बोर्ड पर नजर पड़ी “अखनूर किला” पुरातत्व विभाग का था और ऊपर की ओर कुछ भग्न होते अवशेष थे। कुछ आगे जाने की सोचते कि सामने से 4- 5 फीट के नागराज रास्ते से निकले और झाड़ियों में लुप्त हो गए। संकेत मिल गया और ऊपर जाने का विचार त्याग दिया हम आगे बढ़ गए और कुछ दूर चलने पर सामने सीढ़ियां थी जहां लिखा था
“पांडव गुफा”।असीम शांति ,लहरों को छूकर आती हवा ,हरियाली तट और तट पड़े पत्थरों को लहरें बार-बार भिगो रही थी। धूप की किरणें पानी पर पडकर और भी प्रकाशमान हो रही थी। एक गहरी सांस लेकर मैं सब सौंदर्य समा लेना चाहती थी, फिर हृदय में अतिरेक उत्साह लेकर हम एक-एक कदम ऊपर भर रहे थे मानो हम सच में पांडवों के दर्शन करने जा रहे हो मुख्य द्वार पर हालांकि नए बने स्थान दिख रहे पर पूरे वातावरण में प्राचीनता अपनी दिव्यता के साथ विद्यमान थी। सौभाग्य से गुफा का मंदिर खुला था साथ में ही देखभाल करने वाले पुजारी जी का स्थान था उन्होंने हमें अंदर जाने को बोला फिर नवीन द्वार से हम
प्राचीन काल में प्रवेश कर गए, गुफा की दीवारें उस समय की थी अंदर की ठंडक हमें रोमांचित कर गई। पहले धर्मराज व चित्रगुप्त के दर्शन हुए आरंभ में ही बहुत लघु स्थान पर उनकी मूर्तियां उनके सच में वहां होने का प्रमाण दे रही थी वहां ऊर्जा मानो उसी काल का अनुभव करा रही तभी एक पवित्र शिला पर नजर पड़ी दो नन्हे नन्हे पाओं के निशान थे पता चला यह श्री कृष्ण के पदचिन्ह थे। जब पांडव अज्ञातवास के लिए वहां आए थे तो श्री कृष्ण बाल रूप में उन्हें दर्शन देने आए थे भक्तों की भक्ति प्रभु को कहां नहीं बुलाती उनके लिए कुछ भी अज्ञात नहीं है सोचते हुए हम अंदर की ओर बढ़े गुफा के बीचो-बीच हम और ईश्वर थे और कोई नहीं।
पांडवों द्वारा स्थापित लगभग 5000 साल के पुराने शिवलिंग महाभारत काल का प्रमाण दे रहे थे स्वयं गुफा की प्राचीनता ही प्रमाण थी एक तरफ शिव पार्वती जी की प्रतिमा तो एक तरफ शक्ति मां अपने द्वारपाल सिंहो के साथ विराजित थी। और एक बजरंगबली जी का भी मंदिर अंदर ही था कहां जाता है यह भी भीम के द्वारा स्थापित मंदिर था भीम शक्ति के लिए बजरंगबली जी की आराधना करते थे।
सबसे भिन्न थी वह थी स्वयं पराक्रमी पांडवों की मूर्तियां दीवारों पर छोटी-छोटी मूर्तियां एक बहुत ही विचित्र अनुभव दे रही थी देवी द्रौपदी महाराज युधिष्ठिर गांडीवधारी अर्जुन की मूर्तियां आलो मे थी। दूसरी ओर भीम, नकुल व सहदेव थे। हम लोग चकित से चारों ओर देख रहे थे मानो पांडवों से साक्षात्कार हो रहा हो
वहां भी पवित्र दिव्य ऊर्जा स्वयं प्रमाण थी अंधेरे में बस एक बिजली की लाइट ही रोशनी का माध्यम थी ईश्वर का पूजन कर मैंने पांडवों को प्रणाम किया। दाएं ओर से गुफा का रास्ता दूसरी ओर निकलता था वहां आदि गुरु शंकराचार्य जी की भी मूर्ति थी।
वहां गुफा पर श्री कृष्ण व अर्जुन जी बी विराजित थे गुफा के दूसरे छोर पर शनिदेव विराजित थे वहां से बाहर जाने का रास्ता था। प्रारंभ में उसी विधा की गणेश जी की की मूर्ति व निकलते हुए श्री कृष्ण की मूर्ति विद्यमान थी। एक रहस्यमय रास्ता था जो बंद कर दिया गया था वह अमरनाथ को जाता था। गुफा की दीवारें बिल्कुल प्राकृतिक थी रही थी क्या यह प्रमाण काफी है।
पुराने शिवलिंग महाभारत काल का प्रमाण दे रहे थे स्वयं गुफा की प्राचीनता ही प्रमाण थी एक तरफ शिव पार्वती जी की प्रतिमा तो एक तरफ शक्ति मां अपने द्वारपाल सिंहो के साथ विराजित थी। और एक बजरंगबली जी का भी मंदिर अंदर ही था कहां जाता है यह भी भीम के द्वारा स्थापित मंदिर था भीम शक्ति के लिए बजरंगबली जी की आराधना करते थे।
कहा जाता है कि यही कभी पांडव श्री कृष्ण के साथ मंत्रणा करते थे यह गुफा संभवतः यह संदेश दे रही थी जब कुछ अज्ञात होता है उसके गर्भ में धर्म युद्ध आकार ले रहा होता है इस क्षेत्र में कश्मीरी पंडितों का श्राद्ध हुआ था यह तथ्य कितनों को ज्ञात था इस काल में किस धर्म युग का संकेत मिल रहा है यही बिंदु जोड़ते प्रभु की लीला समझने का प्रयास करते मैं सीढ़ियों से उतरते -उतरते चंद्रभागा के समीप आ गई बाहर आकर पुनः मां चंद्रभागा को पूरे दैवीय दृप के साथ बहते देखा,लगा द्वापर काल से इस काल तक निरंतर बहते रहने का उनको गर्व हो रहा था कुछ शब्दातीत गहरी व ऊंची अनुभूति हो रही थी, लगा अनंत जल राशि में उनकी केश राशि लहरा रही है
उनके तेजोमय नेत्र में गर्व से उठी भौहै मुझे हंसते हुए देख रही थी उस विशाल विराट रूप को देखकर आभास हुआ कि प्रभु की लीला को समझ पाना भी असंभव है उनके समक्ष हम अपनी सीमाएं क्यों भूल जाते हैं? उनके नेत्र मानो मुझसे यह पूछ रहे थे” क्या अब भी प्रमाण? चंद्रभागा स्वयं जीवंत प्रमाण है। उनकी विशालता की थाह पाने का एक ही मार्ग है स्वयं उनमें मिल जाने का, मैंने समर्पण करते हुए घुटने टेक दिए अंजलि भर प्रणाम कर पुनः जल अर्पित किया मेरे हाथों की बूंदे उनके जल में मिलकर मानो विराट बन गई।
अपना अहम मिटाकर इसी सनातन धारा में मिलकर हम स्वयं अनश्वर बन जाए क्या यही बताना चाहती हो मां मैंने मां की तरफ देख कर मन ही मन पूछा? मैंने पुनः और जल राशि को देखा लगा गर्व से पलक झपका के उन्होंने मुख आगे को कर लिया मेरी अर्पित की हुई बूंदे विराट रूप लेती शोर मचाती बढ़ती जा रही थी।
।। इति ।।