
दोस्तों, महामारी का कोहराम अभी थमा नहीं है। हमें उतना ही पता चलता है जितना बताया जा रहा है। इस महामारी से बचने का एक ही उपाय है- “मज़बूत इम्यूनिटी”। कोई भी दवा, थिरैपी और वैक्सीन तभी काम करेगी जब आपकी इम्यूनिटी मज़बूत होगी। क्या आपने कभी सोचा की अस्पतालों में सभी संसाधन होते हुये भी घरों के मुक़ाबले अधिक मृत्यु क्यों हो रही है? इसका मुख्य कारण है कि दवा, इंजेक्शन और वैक्सीन सभी इम्यूनिटी को कमजोर करते हैं। जैसे-जैसे इम्यूनिटी कमजोर पड़ती है, इलाज बेअसर होने लगता है और अंततः बीमार की मृत्यु हो जाती है।
इसके अलावा अस्पताल हर तरह के इनफ़ेक्शन का सबसे बड़ा केन्द्र है। यदि महामारी से नेगेटिव हो भी गये तो कुछ अन्य विषाणु अथवा जीवाणु आप पर हावी हो जायेगा जो मौत तक पहुँचायेगा। क्या हज़ारों डॉक्टरों की मौत पर्याप्त नहीं हैं यह बताने के लिये कि अस्पतालों में इलाज नहीं है?
सवाल उठता है कि आख़िर इम्यूनिटी क्या है और मॉडर्न मेडिसिन का इतना बड़ा इन्फ़्रास्ट्रक्चर होते हुये भी इम्यूनिटी क्यों पीछे छूट गई? मॉडर्न मेडिसिन का शुरुआत से ही मेन फ़ोकस सिर्फ़ लक्षणों पर था क्योंकि उन्हें यह समझ आ गया था कि किसी भी बीमार की परेशानी लक्षण हैं ना कि बीमारी। मॉडर्न साइंस ने शरीर के सभी सिस्टम पर बहुत काम किया क्योंकि व्यावसायिक रूप से अधिक आमदनी थी परन्तु इम्यूनिटी पर इसलिये काम नहीं किया क्योंकि यह विषय कठिन है और इसका इलाज प्रकृति में उपलब्ध है इसलिये सस्ता है।

पूर्व प्रचलित स्वास्थ्य प्रणालियों में बीमारियों का इलाज होता था, जिसमें लक्षण दबने में समय लगता था, परन्तु बदलते हुये सामाजिक परिवेश एवं वातावरण में समय की कमी होने के कारण, तात्कालिक लक्षण कंट्रोल करने वाला सिस्टम सुविधाजनक तथा सहूलियत पूर्ण लगा और सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे सिस्टम ने चमत्कार दिखाकर और बाहरी आडंबर से लोगों को सम्मोहित कर लिया, फलस्वरूप लोग मानसिक रूप से गिरफ़्त में आ गये।
पिछली कई शताब्दियों में मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम ने स्वयं को शीर्ष पर बनाये रखने के लिये विज्ञान का प्रयोग तो किया ही पर पुराने अन्य सभी स्वास्थ्य सिस्टम का दमन भी किया जिससे लोगों में अविश्वास फैल गया। इस प्रकार सिस्टम कमजोर पड़ने के साथ-साथ पिछड़ भी गया।
पिछले कुछ समय से लोगों में उपचार प्रणाली को लेकर जागरूकता बढ़ी है। लोगों ने मॉडर्न मेडिसिन की दवाओं के साइड इफ़ेक्ट को समझना शुरू किया और पुन: उन स्वास्थ्य प्रणाली की ओर जाना शुरू किया जहाँ पहले उपचार होता था।
मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम स्वयं को साइंटिफिकली प्रूवेन बताता है और बाक़ी अन्य सभी को सूडो साइन्स। सवाल उठता है कि साइंस और साइंटिफिकली प्रूवेन क्या है? प्रकृति ही साइंस है और जो भी प्रकृति के नियमों का पालन करे वह साइंटिफिकली प्रूवेन कहलाने योग्य है। आज जिसे साइंस कहते हैं वह पहले से प्रकृति में मौजूद था और जो भी प्रकृति का हिस्सा नहीं है वह साइंस नहीं है।

इस परिभाषा के अनुरूप आयुर्वेद का सबकुछ साइंस और साइंटिफिकली प्रूवेन हैं, परन्तु एलोपैथी में ड्रग, स्टेरॉयेड, इम्यूनोसप्रेसैन्ट, कीमोथिरापी, रेडियेशन थिरैपी, ऑर्गन ट्रॉन्सप्लान्ट इत्यादि प्रकृति के विरुद्ध हैं अत: एलोपैथी साइंटिफिकली प्रूवेन नहीं कही जा सकती और इस तरह वास्तविक रूप में एलोपैथी को सूडो साइंस कहा जाना चाहिये।
वैसे तो आयुर्वेद सबसे अधिक विकसित स्वास्थ्य विज्ञान था परन्तु वातावरण के अनुरूप बदलती हुई बीमारियों हेतु नई रिसर्च ना होने से मौजूदा बीमारियों में आयुर्वेद लोगों की पराकाष्ठा पर सही नहीं उतरता और इसी कारण आयुर्वेदिक सिस्टम में कॉन्फिडेंस की कमी है।
आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर ज़ायरोपैथी ने इस पिछड़ेपन को दूर कर पारंपरिक आयुर्वेद को एक नया आयाम दिया है। आज ज़ायरोपैथी सिर से पाँव और कैंसर से कोरोना तक हर प्रकार की बीमारी को जड़ से समाप्त करता है। फ़िलहाल अभी ज़ायरोपैथी में लक्षण कंट्रोल का प्रावधान नहीं है अत: लक्षण कंट्रोल में सबसे अधिक कारगर मॉडर्न मेडिसिन के प्रयोग की सलाह दी जाती है।
किसी भी स्वास्थ्य संबंधित समस्या के दो पहलू होते हैं- बीमारी और लक्षण। किसी भी बीमारी के लक्षण बीमारी शुरू होने के कुछ समय बाद ही दिखाई देते हैं जब बीमारी एक थ्रेशहोल्ड लेवल के ऊपर निकल जाती है। इसी प्रकार जब आप ज़ायरोपैथी में उपचार करवाते हैं तो लक्षण कंट्रोल तभी मिल पाता है जब बीमारी थ्रेशहोल्ड लेवल के नीचे पहुँचती है।

वर्तमान महामारी में सुरक्षित रहने के लिये ज़ायरोपैथी के तीन प्रोटोकॉल हैं तथा एक प्रोटोकॉल क्योर के लिये है (1) प्रीवेन्शन प्रोटोकॉल 1- बच्चों के लिये (2) प्रीवेन्शन प्रोटोकॉल 2- बड़ों के लिये जो घरों में ही रह रहे हैं (3) प्रीवेन्शन प्रोटोकॉल 3- कामकाजी लोगों के लिये जो घरों से बाहर जाते हैं (4) क्योर प्रोटोकॉल- उन लोगों के लिये हैं जिन्हें इनफ़ेक्शन हो गया है भले ही पॉज़िटिव हों या नेगेटिव परन्तु लक्षण हैं।
आज की तारीख़ में ज़ायरोपैथी के उपरोक्त प्रोटोकॉल विश्व के 17 देशों में हज़ारों लोग प्रयोग कर लाभ उठा रहें हैं। आप भी ज़ायरोपैथी (मॉडर्न आयुर्वेद) को अपनाकर अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों को सुरक्षित करें। ज़ायरोपैथी के सभी प्रोडक्ट डिपार्टमेंट ऑफ आयुष एवं एफ एस एस आई द्वारा प्रमाणित, पूरी तरह सुरक्षित और 100% साइड इफ़ेक्ट रहित हैं।
पिछले डेढ़ सालों में यह प्रमाणित हो चुका है कि कोरोना वाइरस का परमानेन्ट सल्यूशन- मास्क, 2 गज दूरी, दवा, थिरैपी और वैक्सीन से सम्भव नहीं है। कोरोना का परमानेन्ट इलाज व्यक्तिगत इम्यूनिटी बढ़ाकर हर्ड इमयूनिटी हासिल करने में ही है। चूँकि हमारे देश की जनसंख्या बहुत असीम है अत: इस प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिये देशव्यापी अभियान चलाना होगा और हर नागरिक को अपनी इम्यूनिटी को प्रशस्त करने के उपायों का पालन करना होगा।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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