श्वेता पुरोहित:-अरुणाचल प्रदेश तीर्थक्षेत्र में ५ परशुराम कुंड हैं। यहाँ तेजस्वी वीरवर परशुराम ने सम्पूर्ण क्षत्रियकुल का वेगपूर्वक संहार करके पाँच कुण्ड स्थापित किये थे। उन कुण्डों को उन्होंने रक्त से भर दिया था, ऐसा सुना जाता है। उसी रक्त से परशुरामजी ने अपने पितरों और प्रपितामहों का तर्पण किया।
तब वे पितर अत्यन्त प्रसन्न हो परशुरामजी से इस प्रकार बोले – महाभाग राम ! परशुराम ! भृगुनन्दन ! विभो ! हम तुम्हारी इस पितृभक्ति से और तुम्हारे पराक्रम से भी बहुत प्रसन्न हुए हैं। महाद्युते! तुम्हारा कल्याण हो। तुम कोई वर माँगो । बोलो, क्या चाहते ।
उनके ऐसा कहने पर योद्धाओं में श्रेष्ठ परशुराम ने हाथ जोड़कर आकाश में खड़े हुए उन पितरों से कहा-‘पितृगण ! यदि आपलोग मुझ पर प्रसन्न हैं और यदि मैं आपका अनुग्रहपात्र होऊँ तो मैं आपका कृपा-प्रसाद चाहता हूँ। पुनः मेरी तपस्या पूरी हो जाय।
‘मैंने जो रोष के वशीभूत होकर सारे क्षत्रियकुल का संहार कर दिया है, आपके प्रभाव से मैं उस पाप से मुक्त हो जाऊँ तथा मेरे ये कुण्ड भूमण्डल में विख्यात तीर्थस्वरूप हो जायँ ।
परशुरामजी का यह शुभ वचन सुनकर उनके पितर बड़े प्रसन्न हुए और हर्ष में भरकर बोले- ‘वत्स! तुम्हारी तपस्या इस विशेष पितृभक्ति से पुनः बढ़ जाय।’
‘तुमने जो रोष में भरकर क्षत्रियकुल का संहार किया है, उस पाप से तुम मुक्त हो गये। वे क्षत्रिय अपने ही कर्म से मरे हैं ।’
‘तुम्हारे बनाये हुए ये कुण्ड तीर्थस्वरूप होंगे, इसमें संशय नहीं है। जो इन कुण्डों में नहाकर पितरों का तर्पण करेंगे, उन्हें तृप्त हुए पितर ऐसा वर देंगे, जो इस भूतल पर दुर्लभ है। वे उसके लिये मनोवाञ्छित कामना और सनातन स्वर्ग लोक सुलभ कर देंगे’।
इस प्रकार वर देकर परशुरामजी के पितर प्रसन्नता पूर्वक उनसे अनुमति ले वहीं अन्तर्धान हो गये। इस प्रकार भृगुनन्दन महात्मा परशुराम के वे कुण्ड बड़े पुण्यमय माने गये हैं। जो उत्तम व्रत एवं ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए परशुरामजी के उन कुण्डों के जल में स्नान करके उनकी पूजा करता है, उसे प्रचुर सुवर्णराशि की प्राप्ति होती है।
तदनन्तर तीर्थसेवी मनुष्य वंशमूलकतीर्थ में जाय। वंश- मूलक में स्नान करके मनुष्य अपने कुल का उद्धार कर देता है।
कायशोधन तीर्थ में जाकर स्नान करनेसे शरीरकी शुद्धि होती है, इसमें संशय नहीं। शरीर शुद्ध होनेपर मनुष्य परम उत्तम कल्याणमय लोकोंमें जाता है ।
।। जय श्री हरि ।।