संदीप देव। ‘महाकुंभ’ और ‘144 साल बाद महाकुंभ’ की मार्केटिंग में फंस कर हिंदू भगदड़ का शिकार हो कर अपनी जान गंवा रहे हैं, वह असल में तिथि के अनुसार एक सफेद झूठ है, जिसे सरकारी तंत्र और मीडिया ने मिलकर रचा है!
2025 के इस कुंभ को 144 बाद आया महाकुंभ बता कर प्रचार किया जा रहा है। इसके हिसाब से 144 साल पहले 1881 में महाकुंभ होना चाहिए था, लेकिन सच तो यह है कि 1881 में किसी महाकुंभ का आयोजन हुआ ही नहीं था। यहां तक कि 1881 में कोई कुंभ भी नहीं लगा था।
अभी इंटरनेट सर्च में AI आदि के जरिए की-वर्ड क्रियेट करके हिंदुओं को मूर्ख बनाने का खेल भले चल रहा हो, लेकिन ज्योतिषीय गणना से 1881 में किसी कुंभ का जिक्र इतिहास में नहीं है।
मैं आपको कुमार निर्मलेंदु द्वारा लिखित ‘प्रयागराज और कुंभ’ पुस्तक से 1820 से लगातार लगते कुंभ की सूची नीचे दे रहा हूं। देख लीजिए इसमें 1820 से सूची संलग्न है। इसमें 1881 में किसी कुंभ के लगने का कोई साक्ष्य नहीं है। बता दूं कि कुमार निर्मलेंदु इतिहास से परास्नातक एक नौकरशाह रहे हैं और शहरों के इतिहास पर उनकी काफी पुस्तकें हैं।

पुस्तक के लिए लिंक –https://kapot.in/product/prayagraj-aur-kumbh-sanskritik-vaibhav-ki-abhinav-gatha/
अतः हे सनातनी हिंदुओं जान न गंवाओ। मार्केटिंग के गिमिक में फंसने की जगह अपनी बुद्धि का प्रयोग करो जो परमात्मा ने दिया है। कल पौराणिक आख्यानों से भी समझाऊंगा कि यह 2025 वाला कुंभ कोई महाकुंभ नहीं है, जिसके लिए ‘मास-हिस्टीरिया’ क्रियेट कर दिया गया है!
इस सूची के अनुसार निकट समय में महाकुंभ 2013 में प्रयागराज में लगा था। और 1989 का पूर्ण कुंभ 150 साल बाद निर्विवाद रूप से सबसे शुभ नक्षत्र में पड़ा था।
क्रमशः…