सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ ने बॉक्स पर 300 करोड़ के आंकड़े को छू लिया है। कंगना रनौत की ‘मणिकर्णिका : द क़्वीन ऑफ़ झांसी’ ने 115 करोड़ का कलेक्शन कर लिया है। ‘उरी’ रिलीज हुई तो वामी मीडिया ने इसे उग्र राष्ट्रवाद से प्रेरित बताया। कुछ ऐसा ही ‘मणिकर्णिका’ के लिए भी कहा गया। देशभक्ति से सराबोर एक स्वस्थ फिल्म को सुनियोजित ढंग से बॉक्स ऑफिस पर गिराने की साजिश हुई। मीडिया का एक बड़ा धड़ा अब ये मानने लगा है कि अचानक देशभक्ति और राष्ट्रवाद पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शित होना केंद्र सरकार या भाजपा को लाभ पहुंचा रहा है।
एक हास्यापद तर्क को लेकर देश का जिम्मेदार मीडिया फिर हाज़िर है। अब तो ये भी कहा जा रहा है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने फ़िल्मी कलाकारों और निर्देशकों से इसलिए ही मुलाक़ात की थी कि वे ज्यादा से ज्यादा राष्ट्रवाद की फ़िल्में बनाकर आगामी चुनाव में उनको लाभ पहुंचा सके। कुछ नामी पत्रकार तो ये तक कह रहे कि प्रधानमंत्री फिल्मों के जरिये चुनाव जीतने की कोशिश में हैं। ऐसी फिल्मों को ये ‘भगवा फ्लेग’ वाली फ़िल्में कहकर उपहास उड़ाने लगे हैं। जिन फिल्मों पर आक्षेप लग रहा है, उनकी विषय वस्तु में कहीं भी किसी पार्टी विशेष का समर्थन नहीं किया गया है। उरी जैसी फिल्मों पर तो देश के हर वर्ग के दर्शक को गर्व करना चाहिए। आखिरकार वह हमारे सैनिकों की वीर गाथा प्रस्तुत करती है।
इस साल जॉन अब्राहम की ‘रॉ’ और ‘बटाला एनकाउंटर’ प्रदर्शित होने जा रही हैं। आलोचक बताए कि ये फ़िल्में कैसे किसी पार्टी को फायदा पहुंचा सकती हैं। अजय देवगन की ‘तानाजी द अनसंग वॉरियर’, संजय दत्त की ‘पानीपत’ को आलोचक किस श्रेणी में रखेंगे। भारत के बिसराए नायकों पर फिल्म क्यों नहीं बननी चाहिए। एक पत्रकार को इस बात से दिक्कत है कि नरेंद्र मोदी पर बन रहे ‘बॉयोपिक’ में मुख्य भूमिका विवेक ओबेराय क्यों निभा रहे हैं। आपत्ति इस बात पर है कि विवेक के पिता ‘सुरेश ओबेराय’ भाजपा के लिए प्रचार करते आ रहे हैं। ये कैसा तर्क है। विवेक को इसलिए लिए गया क्योंकि उनका व्यक्तित्व, कद-काठी मोदी जी से मेल खाता है।
आलोचकों को जॉन अब्राहम की ‘परमाणु: द स्टोरी ऑफ़ पोखरण’ से परेशानी थी क्योंकि वह परमाणु परीक्षण उनके आकाओं के प्रधानमंत्री काल में नहीं हुआ था। पोखरण किसी पार्टी विशेष की नहीं बल्कि भारत की उपलब्धि थी। ऐसे ही ‘उरी’ फिल्म देश की अहम् जीत को रेखांकित करती है। इस वर्ष 1983 की विश्वकप जीत पर एक फिल्म ’83’ प्रदर्शित होने जा रही है। क्या आलोचक इसे भी केंद्र सरकार को फायदा पहुंचाने वाली फिल्म बताएंगे। बता भी सकते हैं क्योकि ’83’ देश की जीत की बात करती है। जैसे ‘उरी’ देश की जीत की बात करती है।
हर देशभक्ति पर बनी फिल्म, देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े सेनानियों पर बनी फिल्म की तो प्रशंसा होनी चाहिए। सनी लिओनी के ज़माने में देशभक्ति की फिल्म बनाने वाले के साहस की प्रशंसा होनी चाहिए। लेकिन ऐसे प्रयासों को ‘उग्र राष्ट्रवाद’ कहकर नकारा जा रहा है। मीडिया के लिए भारत-पाकिस्तान की दोस्ती की बात करने वाली ‘टाइगर ज़िंदा है’ प्रेरक फिल्म हो सकती है लेकिन ‘उरी’ जैसी सच्ची घटना पर आधारित प्रेरक फिल्म इनके लिए ‘उग्र राष्ट्रवाद’ और ‘पार्टी एजेंडा’ है। देशभक्ति यदि एजेंडा है तो इसे सभी पार्टियों को सहज अपनाना चाहिए क्योकि देशभक्ति देश के करोड़ों लोगों का ‘मुख्य एजेंडा’ है।
URL: movie makers have decided to take the nationalistic route
Keywords: Uri: the surgical strike, Manikarnika: the queen of jhansi, movies, nationalism