महेन्द्र पाल आर्य। यह शांति के अर्थ सही में यह शांति है अथवा गलत इसका, जीता जागता प्रमाण आज सम्पूर्ण धरती वालों के सामने है । सही में इस्लाम का अर्थ शांति नहीं है, समर्पण है अल्लाह के सामने अपने आप को समर्पित कर देना इसे इस्लाम कहते हैं ।
इस्लाम चाहता क्या है ? सम्पूर्ण धरती को इस्लामिक बनादेना यह मान्यता इस्लाम अपने जन्म काल से इसे ही अंजाम देने में प्रयास रत हैं । आज अफ़गानिस्तान में पहले जो हुआ लादेन और मुल्ला उमर के समय आज भी वही हो रहा है उसे चरितार्थ करने में लगे हैं ।
आप सभी को यह भी याद रखना चाहिए की जब से इस्लाम धरती पर आया उस समय भी ठीक इसी प्रकार ही इस्लाम को दुनिया में फ़ैलाने के लिए ऐसा ही मार काट शुरू किया गया था । इस्लाम के प्रवर्तक अपने जीवन काल में इन्हीं इस्लाम को फ़ैलाने के लिए 27 लडाईयाँ लड़ी थीं एक लड़ाई में अपने 4 दांत भी तुडवाये थे ।
क्या इसे कोई मना कर सकता हैं जो सत्य है ? आज भी यही प्रयास है इन्ही तालिबानियों का । रही बात लोगों की हत्या करने की यह बातें भी उन्ही दिनों से चलती चली आ रही है । इस्लाम के प्रचारक अपने चाचा अबु जहल को भी मारा और जितने भी चाचा थे एक ने भी इस्लाम कुबूल नहीं किया था ।
एक चाचा अबुतालिब जो सबसे ज्यादा करीब थे उनके हर काम में उनका साथ देते थे जिन्हों ने इस्लाम कुबूल नहीं किया । उनके मौत के समय हुजुर गये उनके पास और उन्हें कलमा पढने को कहा उन्हों ने मना कर दिया । इसपर अल्लाह ने कहा मैंने इन्हें इस्लाम स्वीकार न करने की मुहर लगा दी,यह इस्लाम स्वीकार नहीं करेंगे ।
इससे यह अंदाजा लगा लेना चाहिए मानव कहलाने वालों को की इस्लाम के मानने वाले जो कुछ भी कर रहे हैं या करते आये हैं उसे अल्लाह का हुकुम समझकर ही करते हैं, कुल मिलकर यह है इस्लाम और इस्लाम की मान्यता ।
मुझे अफ़सोस इस बात से हैं जो लोग भारत में रहकर यह कह रहे हैं मौलाना सज्जाद नुमानी जैसे की वहाँ सब चैन और अमन है और अमन की स्थापना की गई वहां कोई नहीं मारा जा रहा है और न कोई किसी को मार रहा है उन तालिबानियों के समर्थन में जो कुछ भी बोला गया दूरदर्शन में दिखाया या जा रहा है सुनाया जा रहा है वह कहाँ तक सही है ? और भी कई लोग उनके समर्थन में बोलते हुए दिखाया जा रहा है न्यूज़ चेनलों में ।
भारत ने उसी अफ़गानिस्तान को उन्नत मय बनाने के लिए जितना जो कुछ भी किया है भारत के लोगों के अन्न के ग्रास काट कर ही किया है इसपर आज तक एक भी मुसलमान कहलाने वालों ने उसकी तारीफ नहीं की मौलाना नोय्मानी तो बहुत ऊँची हस्ती है । साधारण मुसलमान ने भी नहीं कहा यह सोचने और समझने वाली बात है । की भारत में रह कर भारत के खिलाफ बोलने को क्या दर्शाता है ?