देव-भूमि उत्तराखंड में चहुँ और बिखरी नैसर्गिक सुंदरता आपको अपने मोहपाश में बांध लेगी। अनायास ही आपके मुँह से निकल पड़ेगा वाह! जन्नत है यहाँ! केवल लिखने की बात नही, मैं दावे से कह सकता हूँ एक बार जाएंगे तो मन वहीं छोड़ आएंगे। वो बात अलग है कि घुमावदार सड़कों पर कई बार आपका पेट उमड़-घुमड़ कर आपके द्वारा खाया पिया बाहर निकाल दे और आप स्वयं को कोसें कि कहाँ आ गए? लेकिन टनकपुर से 150 किलोमीटर की पिथौरागढ़ की पहाड़ी यात्रा में कई बार ऐसे क्षण आएंगे की आपके चेहरे पर केवल हर्ष की लकीरें ही होंगी। सूखी डांग से कुछ पहले से नीचे टनकपुर का विस्तारित रूप और टनकपुर को अपने नीले पानी से चीरते हुए शारदा नहर का चौड़ा पाट आपको आपकी पुतलियां फैलाने के बाध्य कर देगा! शारदा का इससे विस्तारित रूप आपको और कहीं नही दिखेगा।
सुखी डांग को पार करते हुए आप यदि पहाड़ी यात्रा पहली बार कर रहे हो तो संभव हो कि आप कई बार ‘कै’ कर चुके होंगे और आप भूख भी महसूस कर रहे होंगे। ‘चल्थी’ से उठती हुई हवाओं में मिश्रित खाने की महक आपकी भूख को दौगुना करने के लिए काफी है। सड़क से लगी सात आठ दुकानों में बन रहा विशुद्ध गरमा-गरम पहाड़ी खाना देखने में साधारण लेकिन स्वाद ऐसा कि पेट भर जाए लेकिन मन नही! खाने के साथ दी जाने वाली चटनी प्याज और मूली के साथ मिलकर आपके जायके को और ओर बड़ा देगी तथा आपकी यात्रा की खुमारी को घटा!
यह यात्रा का पहला पड़ाव है क्योंकि आगे स्थिति और गंभीर होने वाली है। हर दस मीटर पर तीव्र मोड़ आपको आपकी सीट पर कभी भी स्थिर नही होने देगा और आपकी आंखें आपके साथ चल रही प्राकृतिक सौंदर्य के किसी भी दृश्य को अपनी समेटने के लिए पलकें झपकाना! चल्थी से आगे बढ़ते हुए आपको चार-पांच घर सुदूर तलहटियों में बिखरे-बिखरे दिखाई देंगे। लेकिन जो बड़ा पड़ाव आगे आने वाला है, उसका नाम है चंपावत। चंपावत गर्मियों के मौसम में अंग्रजों का आरामगाह रहा है। चंपावत का समृद्ध इतिहास पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। पौराणिक मान्यताओं से लेकर चंद वंश, गोरखा राज्य से लेकर अंग्रेजों के स्थापत्य तक का सुनहरा इतिहास रहा है चंपावत का।

खैर जैसे-जैसे लेख में आगे बढ़ते रहेंगे आपको संक्षिप्त जानकारी देता रहूंगा। चंपावत से कुछ पाँच किलोमीटर पहले से ही चंपावत की सुंदरता और ठंड का एहसाह होना शुरू हो जाता है। सीढीदार खेतों में हल जोतते हुए लोग अपने अथक परिश्रम की कहानी लिखते हुए दिखेंगे। एक बात इन खेतो की गौर करने वाली है कि इनकी मेडों पर पेड़ जरूर दिखेंगे शायद मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए! जाड़े के मौसम में यहां ड्राइव करना बहुत मुश्किल हो जाता है! यहां का तापमान रात को शून्य से भी नीचे चला जाता है और पाला इतना कि प्रतीत होता है जैसे खेतो में चांदी उग आई हो। संतरे माल्टा और बड़े नींबू के स्वर्णिम रंग से लदे पेड़ इस चांदी में चार चांद जड़ देते हैं। आप इस छठा को अपने कैमरे में कैद करने से नहीं रोक पाएंगे।
ज्यादातर पाला सड़क के घुमावदार जगहों अमूनम कई कई दिनों तक भास्कर की रश्मियों के दर्शन न होने के कारण जमा ही रहता है! दैनिक वाहनों की आवजाही से सड़क पर टायर एक लकीर खींचते हुए सड़क की उपस्थिति को दर्शाते हैं। चौड़े मोड पर आपको सड़क अवरोध होने की दशा में उनको साफ करने वाले यंत्र पहाड़ी भाषा में लोग उनको ‘कोपरिया’कहते हैं दिख जाएंगे और एक चीज जो आपको सड़कों के किनारे बहुतायत दिखेंगी, वह है सावधानी हटी दुर्घटना घटी, कृपया मोड़ो पर हार्न दें, चढ़ाई में चढ़ने वाले वाहनो को प्राथमिकता दें, कृपया धीरे चलें और प्रकृति का आनंद लें जैसे दिशा निर्देश। यदि आप अपने वाहन से जा रहे हैं तो इन दिशा निर्देशों का अवश्य पालन करें। #BRO यानी सीमा सड़क ऑर्गेनाइजेशन के जवान सड़क पर आ रहे व्यवधान जैसे मलबा गिरने या चट्टानो के रोड़ पर आ जाने की दशा में हर समय व्यवधान हटाने को तत्पर मिलेंगे कई जगह आपको उनके अस्थाई कैम्प दिख जाएंगे।
जैसे जैसे हम चंपावत के समीप पहुंचते है सड़क के ऊपर दिशा-निर्देश बताने वाले बोर्ड दिखने लगते हैं कि कौन सी रोड कहां जाने के लिए अलग हो रही है? एक जगह बोर्ड पर लिखा था कर्नतेश्वर। कर्नतेश्वर के बारे मे कथा प्रचलित है कि भगवान विष्णु ने यहां स्थित कर्नतेश्वर पर्वत पर कूर्म यानी कछुए का अवतार लिया था संभव है इस कूर्म के नाम पर उत्तराखंड का यह अंचल कुर्मांचल के नाम से ख्यात हुआ, काली कुमाऊं का नाम भी यहां मान्यताओ में है।
पौराणिक मान्यताओं की माने तो रामायण काल से शुरू करता हूँ। आपको पता ही है कुंभकरण से राम का घनघोर युद्ध हुआ था और भगवान राम ने कुंभकरण के शरीर के हर हिस्से को उसके शरीर से अलग कर दिया था। ऐसा माना जाता है कि कुम्भकरण का सिर अलग हो कर यही गिरा था। थोड़ा आगे बड़े तो बालेश्वर मंदिर की दिशा को निर्देशित करने वाल बोर्ड दिखा। बानेश्वर मंदिर की कहानी भी कम ऐतिहासिक नही है और इस कहानी की पुष्टि करता है गढ़वाल स्थित जोशीमठ में रखी गुरूपादिका ग्रंथ! चंपावत के बारे में जो विवरण इस ग्रंथ में है उसके अनुसार “नागों की बहन चम्पावती ने बालेश्वर मंदिर में चंपावत की प्रतिष्ठा की थी।” वायु पुराण में भी चंपावत का विवरण मिलता है!
आगे बढ़ते बढ़ते एक दो नाम कई बार आपकी नजरों के सामने से निकलेंगे घटकू मंदिर और वाणासुर महल। घटकू मंदिर का इतिहास पांडवों की उपस्थिति को चंपावत के साथ जोड़ता है। ऐसा माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां आए थे और यहां मौजूद घटकू मंदिर जो कि भीम के पुत्र घटोत्कच के नाम पर है इस कथन की पुष्टि करता है। वाणासुर के बारे मे जो कहानी है वह है कि भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का अपहरण करने वाले वाणासुर का वध श्रीकृष्ण ने यही किया था। वाणासुर के महल के अवशेष यहाँ आज भी वाणासुर महल के रूप में मौजूद हैं।

चंपावत पहले पिथौरागढ़ के अंदर ही आता था किंतु अब यह नया जिला बन चूका है। चंपावत में आपको हर चीज मिल जाएगी एक भरा पूरा बाजार है यहां! उत्तराखंड की बाल मिठाई और चॉकलेट का आप यहां स्वाद ले सकते हैं। गाड़ियां यहां जलपान करने के लिए रूकती है बाजार में चहल-पहल अच्छी मिलेगी आपको।
चंपावत से थोड़ा आगे बढ़ते ही सिखों के पवित्र स्थल मीठा रीठा साहिब के लिए रास्ता निकलता है कहा जाता है कि गुरुगोविंद सिंह यहां आए थे और कड़वे रीठे के पेड़ के नीचे आराम किया था जिससे रीठा मीठा हो गया। सिखों के पवित्र निशान अपनी बाइक में लगाये श्रद्धालुओं कई जत्थे आपको दिख जायें तो आश्चर्य न करियेगा चंपावत से 70 किलोमीटर की यात्रा अभी बांकी है इन श्रद्धालुओं के लिए।
इसके साथ आगे ही कुछ छोटी सड़कें फुलगड़ी और एक्ट माउंट तथा चाय बागान के चिन्ह को दर्शाती आपके सामने से गुजरेंगी जो अंग्रेजों की पुराने समय की रिहायश की तरफ इशारा कर रही थी। अंग्रेजो के स्थापत्य के साथ ही यहां ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया! इंग्लैंड से आई महिला ऐनी न्यूटन ने 1891 में यहां मेथोडिस्क नाम का पहला चर्च एक झोपड़ी में स्थपित किया। चंपावत के आस पास दस-पंदह किलोमीटर की रेंज में आज भी अंग्रेजो द्वारा बनाये गए बंगले और चाय बागान है। वह अलग बात है कि आपको यह पिथौरागड़ वाले मार्ग पर नही मिलेंगे। चाहे तो आप यहां यहाँ घूमने के लिए विश्राम कर सकते है। सरकारी आवास के अलावा यहां होटलों की व्यवस्था है।
चंपावत पिथौरागढ़ और टनकपुर का सटीक आधा रास्ता है। यहां से 14 किलोमीटर पर लोहाघाट है। लोहाघाट से घाट का सफर सबसे कठिन है। लोहाघाट से पिथौरागढ़ का सफर अगली पोस्ट में क्रमशः…
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URL: Pithoragarh| Decorated with nature its own hands
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