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India Speaks Daily > Blog > Blog > सरकारी प्रयास > मोदी सरकार के चार साल: काशी को हर गली और चौक चौराहे पर लटक रहे तारों से मिली मुक्ति!
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मोदी सरकार के चार साल: काशी को हर गली और चौक चौराहे पर लटक रहे तारों से मिली मुक्ति!

ISD News Network
Last updated: 2018/05/23 at 8:11 AM
By ISD News Network 265 Views 20 Min Read
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20 Min Read
Trasformed Kashi (File Photo)
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बनारस इतिहास से भी ज्यादा पुराना है, अपनी परंपराओं से भी पुराना है और यहां तक कि अपनी ख्याति से भी ज्यादा पुराना है, लेकिन दिखता तीनों की उम्र का दोगुना है। बनारस पर यह टिप्पणी कोई और नहीं बल्कि मार्क ट्वैन के नाम से प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक सेमुएल लैंगहॉर्न ने की थी। उनकी यह टिप्पणी बनारस की दुर्दशा पर एक व्यंग्य थी। और यह टिप्पणी बनारस में बिजली पहुंचने से दशकों पहले की थी। आप सोच सकते हैं कि बनारस में लटकते बिजली के तारों को देखकर उनका बयान क्या होता? शायद अपने मुख्य बयान से ‘पुराना’ शब्द को ही बाहर फेंक देते। क्योंकि लतकते बिजली के तारों ने बनारस की दुर्दशा और बिगाड रखी थी।

मुख्य बिंदु

* बनारस में आईपीडीएस परियोजना संपन्न होने से पहले ही हरिद्वार में भी हुई शुरुआत
* कई दुश्वारियों को सह कर पुरानी काशी में तार के जालो को हटाकर भूमिगत तार डाले

अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के शुरुआती दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐसी ही एक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि लगता है बनारस में जितने लोगों के पास बिजली के कनेक्शन नहीं हैं उससे कहीं अधिक तार लटक रहे हैं। उसी समय उन्होंने अधिकारियों से कहा कि इसका कुछ करें ताकि गलियों और लोगों के घरों में कम से कम सूर्य की रोशनी तो पहुंचे अगर बिजली नहीं पहुंच रही है।

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Kashi with wire (File Photo)

पुरानी काशी में एक तो बिजली की दशा दयनीय थी। हर समय बिजली चोरी का आरोप, मूलभूत ढांचों का खस्ताहाल, बिजली आपूर्ति में घाटा, लगातार बिजली कट की समस्या रहती थी। ऊपर से गलियों में ऐसे तार लटकते रहते थे कि हमेशा किसी अनहोनी की अंदेशा लगा रहता था। इन लटकते तारों से अनहोनी भी खूब होती थी। इसे देखकर लगता है मोदी अपने मन में ठान चुके थे कि इस हालात को बदलना है।

तभी तो उन्होंने एनडीए सरकार के पहले बजट में ही समेकित बिजली विकास योजना (आईपीडीएस) की घोषणा की और उसकी शुरुआत भी 28 जून 2015 को बनारस से की। हालांकि इसका प्राथमिक लक्ष्य सभी के घरों को चौबीस घंटे बिजली पहुंचाना था। बिजली आपूर्ति के संपूर्ण संभाग को दुरुस्त करने के लिए मोदी सरकार ने 572 करोड़ का बजट दिया। बचट देने के साथ ही मोदी के मन में था कि इस शहर में लटक रहे बिजली के तारों को भूमिगत करना भी था। मोदी के यही विचार की वजह से आज पुरानी काशी आज पूरी तरह से तार रहित हो गई है। अब काशी पुरानी नहीं रह गयी. बल्कि बीते समय से भी ज्यादा जवान और खूबसूरत हो गई है।

यह कोई छोटा टास्क नहीं था, लेकिन उन्होंने पूरा किया

समेकित बिजली विकास परियोजना (आईपीडीएस) के आधिकारिक प्रमुख सुधाकर गुप्ता का कहना है कि काशी की दुर्दशा को सुधारना कोई आसान काम नहीं था। उनका कहना है कि काशी हजारों साल पुराना है, लेकिन इसकी आधुनिक आधारभूत संरचना और भी प्राचीन दिखती है। किसी भी नगर निकाय ने सालो साल हुए शहर के विकास का कोई भी दस्तावेज नहीं रखा है। यहां पर जितने सीवर और पानी की पाइपलाइन हैं उनसे संबंधित बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) या डीएसकॉम (आपूर्ति कंपनी) के केबल के भी कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। ऐसे में इस सब गड़बड़ियों को ठीक करन की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है। लेकिन तीन साल से भी अधिक समय तक लगातार काम करने के बाद यह परियोजना अब अपने समापन पर है। गुप्ता ने कहा है कि इसी महीने के अंत तक सारे कार्य पूरे कर लिए जाएंगे। 8 मई को परियोजना प्रमुख गुप्ता ने ये बात कही थी।

संयोग की बात है कि गुप्ता की पारिवारिक जड़ बनारस से जुड़ी हैं अन्यथा वे न तो कभी काशी में रहे हैं और न ही यहां काम किया है। वे लगातार दिल्ली में रहे हैं और वहीं काम भी किया है। लेकिन यह परियोजना मुझे अपने पूर्वज के शहर में ले आई। उन्होंने कहा कि शायद किस्मत को यहीं मंजूर था तभी तो उसने मुझे इस शहर में सेवा करने का अवसर दिया।

700 से अधिक लोग, 150 इंजीनियर और 25 सलाहकारों की महीनों की मेहनत से 16 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली पुरानी काशी में 1,500 किमी तक भूमिगत बिजली के तार बिछाने में सफलता मिली है। इसके साथ ही 50,700 ग्राहकों को भूमिगत बिजली के तार से कनेक्शन दिए गए हैं। इस प्रकार पुरानी काशी को हर गली और चौक चौराहे पर लटक रहे तारों से मुक्ति दिलानें में अहम योगदान दिया है।

700 से अधिक लोग, 150 इंजीनियर और 25 सलाहकारों की महीनों की मेहनत से 16 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली पुरानी काशी में 1,500 किमी तक भूमिगत बिजली के तार बिछाने में सफलता मिली है। इसके साथ ही 50,700 ग्राहकों को भूमिगत बिजली के तार से कनेक्शन दिए गए हैं। इस प्रकार पुरानी काशी को हर गली और चौक चौराहे पर लटक रहे तारों से मुक्ति दिलानें में अहम योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के दौरान हमारे पास हमेशा व्हाट्सएप के अलग-अलग 40-50 ग्रुप रहते थे। जब भी कोई मुद्दा या समस्या सामने आती थी तत्काल उसका समाधान उपलब्ध हो जाता था बिना कोई देर किए। क्योंकि उन्होंने ऐसे बेहतर संचार व्यवस्था स्थापित कर लिया था।

बिल्कुल तार रहित हो गए कबीर नगर जैसे इलाके

प्रभावशाली संख्या के अलावा सौंदर्य की दृष्टि से भी इस परियोजना का पूरी काशी में सुखद असर पड़ा है। जहां पुरानी काशी में बिजली चोरी के कारण डिस्कॉम को हर साल सैकड़ों करोड़ का चूना लग जाता था उसमें अद्भुत गिरावट आई है। तकनीकी कारणों से होने वाले नुकसान में भी कमी आई है यह अब 45 प्रतिशत से गिरकर 10 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इस इलाके में अब वैध तरीके से कनेक्शन लेने वालों की संख्या भी बढ़ी है, ग्राहकों की शिकायतो में भी कमी आई है। ग्राहकों की शिकयात प्रतिशत 8.7 प्रतिशत से गिरकर महज 0.99 प्रतिशत पर आ टिकी है। बिजली की कटौती नहीं हो रही है, लोग आंधी आए या तूफान या फिर बारिश हर मौसम में बिजली को लेकर अब निश्चिंत रहते हैं। क्योंकि पहले बिजली विभाग को ऐसे मौसम में किसी अनहोनी को टालने के लिए बिजली की सप्लाई ही काटना पड़ता था।

गुप्ता और उनकी टीम ने अपनी कार्यप्रणाली से करदाताओं के पैसे बचाने की भी व्यवस्था की है। गुप्ता ने कहा कि यह परियोजना इस मामले में भी अनूठी रही है कि हमलोगों ने अनुमानित लागत से कम लागत में ही कार्य को पूरा किया है। गुप्ता ने कहा कि हमे इस परियोजना को पूरा करने के लिए 432 करोड़ रुपये की मंजूरी मिली थी, लेकिन हमलोगों ने 370 करोड़ रुपये में इसे अंजाम तक पहुंचा दिया। उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत लागत सरकार ने वहन किया है जबकि शेष फंड की व्यवस्था स्थानीय डिस्कॉम विभाग ने की है।

गुप्ता और उनकी टीम ने न सिर्फ पैसे बचाए हैं बल्कि उन्होंने निर्धारित समय से पहले ही इस परियोजना को पूरा कर सराहनीय काम किया है। इसके लिए उन्होंने अपनी टीम को स्थानीय लोगों से मिले सहयोग के लिए उनकी प्रशंसा की है। लोगों के सहयोग को लेकर गुप्ता का कहना है “बनारस के लिए काफी सहनशील हैं, एक-आध घटना को छोड़ दें तो हमें हमेशा लोगों का सहयोग मिला है। कई दिनों तक जंक्शन बॉक्स खाली में ही वैसे ही पड़े रहे, लेकिन किसी ने उसे जगह से हिलाया तक नहीं ।”

जबकि जिस प्रकार से नगर निकाय के अधिकारियों ने बॉक्स के साथ व्यवहार किया है उससे गुप्ता जरूर थोड़े परेशान हुए। उन्होंने कहा कि हमारा काम तो उसे लगाना था लेकिन उसकी देखभाल करना तो निगम का काम था। लेकिन कई जगहों पर उनमें मवेशियों को खाना खाते देखा। कई जगहों पर तो बॉक्स के नीचे या उसके आसपास कचड़ा का जमाव देखा गया। निगम के कार्य करने के तरीके से जरूर परेशानी हुई।

पुरानी काशी के लोगों ने तार रहित होने के आइडिया को कैसे लिया ?

आईपीडीएस की टीम ने पुरानी काशी को 16 जोन में बांट दिया। और फिर कबीर नगर, जैसी जगहों से जो अपेक्षाकृत कम संकरी थी, से अपना काम शुरू किया। असल में हुआ कि जैसे ही साल 2016 के नंवबर में इस परियोजना की शुरुआत हुई, एक महीने बाद ही यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बनारस दौरे के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कबीरनगर आने का प्रोग्राम बन गया। दरअसल वे अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना का प्रोग्रेस जांचना चाहते थे। जब वे आए तो कार्य की प्रगति को देखकर उतने ही खुश हुए जितने वहां के निवासी खुश थे।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर देवेश चंद पंत का कहना था कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी यहां आते, तारों का उलझन गायब था और लोग 24 घंटे बिजली आपूर्ति का मजा ले रहे थे। 60 वर्षीय पंत का कहना है कि इसका प्रभाव शानदार पड़ा। कबीर नगर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थि दशाश्वमेध घाट के दुकानदारों में इसको लेकर कोई उत्साह नहीं था। उसके पीछे कारण भी थे। कई दुकानदारों का कहना था कि कई गलियों को खोद तो दिया गया लेकिन उसे फिर भड़ने के लिए कोई नहीं आया। कई दुकानदार इसलिए परेशान थे कि जंक्शन बॉक्स लग जाने से उनकी दुकान ब्लॉक हो गई है। इससे उनका नुकसान ही हुआ है। कुछ शिकायतें मिलने के बावजूद वहां सौ प्रतिशत लोगों ने कनेक्शन ले रखा है।

Wireless kashi (File Photo)

संभागीय आईपीडीएस अधिकारी स्वप्निल सोनी का कहना है कि असल में बिलों के भुगतान नहीं करने की दुकानदारों की आदत सी पड़ गई थी, ऐसे में बिलों का भुगतान करना उन्हें भा नहीं रहा। जहां तक खुदी गली नहीं भड़े जाने की बात है तो वह नगर निकाय का काम है, और वह आईपीडीएस के अधिकारक्षेत्र में नहीं आता है। काल भैरव मंदिर जाने वाली संकरी गली की हालत आज भी वैसी है, जबकि स्थानीय निवासी का कहना है यहां तार के लटकने से सबसे ज्यादा खतरा है।

दशाश्वमेध घाट से काशी विश्वनाथ मंदिर और काल भैवर मंदिर तथा मणिकार्णिका तथा हरिश्चंद्र घाट जाने वाली गलियों में भी भूमिगत केबल नहीं बिछाई जा सकी है। जबकि यहां लटकते तार बहुत गंदे दिखते हैं। मणिकर्णिका घाट के पास के रहने वाले स्थानीय निवासी संजय पांडेय का कहना है कि मेरे घर समेत कई ऐसे घर हैं जिन्हें नए कनेक्शन नहीं मिल पाए हैं। 25 प्रतिशत से अधिक तारों के जाल को नहीं साफ किया सका है। उनकी इस शिकायत पर आईपीडीएस के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि कुछ ऐसी गलियां हैं जहां सौ प्रतिशत भूमिगत तार नहीं बिछाए गए हैं। उन्होंने कहा कि 15 से 20 गलियां छूट गई हैं क्योंकि वहां भूमिगत तार बिछाना असंभव सा है। गुप्ता ने कहा कि इन गलियों में आप जो झूलते तार देख रहे हैं इनमें से सारे तार बिजली के ही नहीं हैं, बल्कि अधिकांश तार तो टेलीफोन और केबल के हैं।

हमेशा हलचल रहती इन गलियों में एक बार घूमने से ही आपको इसकी जटिलताओं के बारे में पता चल जाएगा। घुमावदार गलियां इतनी संकरी हैं कि चार पहिया वाले वाहन भी नहीं घुस सकते। मणिकर्णिका घाट, जहां अधिकांश हिंदू मोक्ष प्राप्ति की आश में अपना अंतिम संस्कार कराना चाहते हैं, जाने वाली कचौड़ी गली की हालत तो और भी खराब है। यह गली इतनी व्यस्त रहती है कि कोई भी पैदल यात्री गाय और अर्थी को रास्ता देने के लिए बिना झुके या रुके सीधे आधा मिनट तक नहीं चल सकते। आप ही बताइये ऐसे में बिना किसी रुकावट या फिर शोकाकुल परिवार को बाधा पहुंचाए आप यहां पर जमीन कैसे खोद सकते हैं?

इन गलियों में भूमिगत तार बिछाने के लिए कम से कम चार-से पांच घंटे लगेंगे। तब जाकर हम काम शुरू कर उसे फिर पहले की स्थिति में ला सकते हैं। लेकिन ये गलिया इतनी व्यस्त रहती हैं कि चार-पांच घंटे का समय मिलना भी मुश्किल है। यहां चौबीस घंटे त्योहार जैसा माहौल होता है इसलिए भीड़ कम होने का सवाल ही नहीं उठता। ऊपर से यहां अक्सर वीआईपी का भी आना जारी रहता है। गुप्ता ने कहा कि य0हां पर कई बार अनपेक्षित बाधाएं भी आती रहती है। 2016 में चार महीने और 2017 में तीन महीने गंगा नदी में बाढ़ आने तथा तेज बारिश होने के कारण खराब हो गए। आप जानते हैं कि यह इलाका गंगा नदी के तट पर ही स्थित है।

कुछ इलाकों में तो लोगों ने इस भय से इस परियोजना का विरोध किया कि इससे हाई वोल्टेज करेंट गुजरने के कारण खतरा बढ़ जाएगा। लेकिन अंत में उनका डर खत्म हुआ और फिर काम शुरू हो सका। सीवर और पानी लाइन का कोई आधिकारिक नक्शा उपलब्ध नहीं होने के कारण ही इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में अड़चने आई हैं। सहीं नक्शा नहीं होने की वजह से कई बार पावरग्रिड मजदूरों ने सीवर और पानी लाइन की क्षति हो गई। अब संबंधित एजेंसियों को क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के बाद ही दोबारा काम शुरू किया जा सका।

गुप्ता ने कहा कि काशी के बारे में एक कहावत प्रसिद्ध है जो आप काशी निवासी के मुंह से अक्सर सुनते हैं कि यह शहर तीन चीजों मंदिर गलियां और सीढ़ियों से बना है। निश्चित रूप से ये सब चीजें ही इस शहर को पवित्र बनाती है लेकिन यहां के चारों ओर अनिमित विकास ने ही इसे गंदा भी बना दिया है। यहां के कई मामलों में दो दिनों में होने वाले काम पूरा होने में दो महीने तक लग गए हैं।

पुरानी काशी में अभी भी नई बिजली कनेक्टिविटी और सौंदर्य का माप अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग है। लेकिन जहां तक बिजली आपूर्ति की बात है तो वह पूरे शहर में एक जैसा है। किसी भी इलाके को न कम न ही ज्यादा आपूर्त की जा रही है। गोधोलिया के निवासी संजय यादव का कहना है कि पहले तो थोड़ी भी तेज हवा या बारिश आते ही बिजली कट जाती थी। लेकिन अब ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। हम लोगों को इससे काफी राहत मिल गई है।

भेलपुर निवासी शंकर लाल बर्नवाल का कहना है कि अब तो वह जेनरेटर नहीं चलाकर एक तरह से पैसों की भी बचत कर रहे हैं। क्योंकि पहले बिजली नहीं होने के कारण उन्हे जेनरेटर चलाकर काम करना पड़ता था। जो बनारस कभी खुद बिजली के लिए तरस रहा था आज वही बनारस है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश के लिए आईपीडीएस परियोजना शुरू करने के लिए 45 हजार करोड़ का फंड दिया है। पिछले सप्ताह में यह परियोजना हरिद्वार में शुरू की गई हैं। जिन शहरों को तत्काल इसकी जरूरत है उस पर भी ध्यान दिया जाएगा।

गुप्ता ने अंत में कहा कि इसके बारे में मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि यह बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना है और देश में तो यह पहली परियोजना है। क्योंकि इससे पहले कभी देश में ऐसी परियोजना लागू ही नहीं हुई थी। गुप्ता ने देश में इस सबसे पहले और सबसे जटिल आईपीडीएस परियोजना में एक निशान को उजागर कर दिया है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसी तरह के कार्यक्रमों के प्रमुख अन्य अधिकारियों के लिए उनके काम काट दिया गया है।

आईपीडीएस के आधिकारिक प्रमुख सुधाकर गुप्ता ने देश में आईपीडीएस जैसी जटिल परियोजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है। अब तो अन्य अधिकारी भी देश के अलग-अलग हिस्से में इस प्रकार की परियोजनाओं के मुखिया के रूप में विकास की गति को आगे बढ़ाएंगे।

Courtesy: https://swarajyamag.com/ से तथ्य लेकर पाठकों के लिए हिंदी में रुपांतरित किया गया है।

URL: PM modi constituency kashi goes wireless

varanasi, kashi, electricity for all, PM modi constituency, Kashi transformed, wireless kashi, narendra modi, electricity theft, Integrated Power Development Scheme, IPDS, काशी, बनारस, प्रधानमंत्री मोदी, तार रहित काशी

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