देश के प्रधानमंत्री मोदी यदि कहते हैं कि हम दुश्मनों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना जानते हैं तो वह बिल्कुल सही कह रहे होते हैं, कम से कम पाकिस्तान के संदर्भ में तो उनका यह बयान सौ फीसदी सही साबित हो रहा है। जब पाकिस्तान ने हथियार के दम पर आतंकवादी गतिविधियों के तहत देश में खुराफात मचाया था तो उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक कर करारा जवाब दिया था कि पाकिस्तान की पनाह में सोए आतंकियों की नींद गायब हो गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन्म से ही नहीं बल्कि प्रकृति से भी गुजराती हैं, वे अपने दुश्मनों को आर्थिक रूप से कमजोर करना जानते हैं ताकि सामरिक शक्ति स्वत: ही खत्म हो जाए। इसलिए पीएम मोदी कश्मीर स्थित किशनगंगा पनबिजली परियोजना का उद्घाटन करने वाले है ताकि पाकिस्तान जाने वाला सिन्धु नदी का पानी रोका जा सके।
मुख्य बिंदु
* अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हुई पाकिस्तान की जबरदस्त हार
* भारत को अपने हित में जलधारा को मोड़ने की मिली है अनुमति
इस परियोजना के शुरू होते ही पाकिस्तान को सिंधु नदी का जल मिलना बंद हो जाएगा। यह कदम पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ पर करारा चोट होगी। इस चोट से पाकिस्तान शायद ही संभल पाए। जैसे ही पाकिस्थान की आर्थिक स्थित कमजोर हुई सामरिक स्थिति स्वत: ही खत्म हो जाएगी। शायद इसलिए तो पाकिस्तान पनबिजली परियोजना पर आपत्ति जताकर इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ले गया था।
वैसे अभी तक मोदी की कश्मीर यात्रा की आधिकारिक घोषणा भी नहीं हुई है लेकिन हां अगर जाना हुआ तो वह 19 मई को कश्मीर जाएंगे, जहां एक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में साथ लेने के साथ ही वह किशनगंगा पनबिजली परियोजना का उद्घाटन करेंगे। यह वही परियोजना हैं जिस पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी। लेकिन जब मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक पहुंचा तो वहां भी भारत की ही जीत हुई। किशनगंगा प्रोजेक्ट उत्तर कश्मीर के बांदीपुर में है। इस परियोजना को शुरू करने के लिए किशनगंगा नदी की धारा को मोड़ कर 23.25 किमी लम्बी सुरंग से होते हुए पावर हाउस तक पहुँचाया गया है। इससे प्रत्येक साल 171.3 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन होगा।
वैसे तो किशनगंगा परियोजना साल 2007 में ही शुरू की गई थी लेकिन साल 2010 में पाकिस्तान ने इस मामले को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले गया। वहां भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने भारत के पक्ष में फैसला सुनाते हुए साल 2013 में कहा था कि भारत को सिंधु जल समझौते के तहत किसी भी जलधारा को मोड़ने का पूरा अधिकार है।
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