प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दो दिवसीय भूटान दौरे से रविवार शाम दिल्ली वापस आये. यह दौरा कई दृष्टीकोणों से खासा महत्वपूर्ण रहा. जहां इस दौरे ने भारत और भूटान के घनिष्ठ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामरिक और बेहद निजी संबंधों को पुन: रेखांकित किया, वहीं भारत की ‘पडोसी पहले नीति’ और ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति को भी आगे बढ़ाया. 2014 में सारकार बनने की बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पहला विदेशी दौरा भूटान में ही किया था.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत और भूटान ने 10 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये. इसमें गौरतलब यह है कि भारत और भूटान ने आपसी सहयोग के पारम्परिक क्षेत्रों से आगे बडः नवीनतम क्षेत्रों में सहयोग करने का प्रण किया.
हाइड्रो पावर के माध्यम से भूटान में बिजली का उत्पादन और भारत का उसे खरीदना दोनों देशों के बीच सहयोग की एक अहम कड़ी रही है. इस कड़ी को प्रधानमंत्री मोदी ने ज़रूर आगे बढाया. लेकिन इसके अतिरिक्त अंतरिक्ष अनुसंधान, आई टी, एवीएशन , शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी सहयोग की पहल की गयी.
शिक्षा यूं तो भारत और भूटान के संबंधों का कई तरीकों से केंद्र्बिदू रहा है. भारत के विश्विद्यालय भूटानी छात्र छात्राओं में खासा लोकप्रिय रहे हैं. और भारत अधिकतर उनके उच्च शिक्षा हासिल करने की जगह के तौर पर पहली चांइस रहा है.
भारत और भूटान की दार्शनिक विचाधाराओं के तार भी आपस में जुड़े हुए हैं , न सिर्फ बौद्ध धर्म के माध्यम से बल्कि संवेदना के उन अद्ध्त तारों से जो दोनों संस्कृतियों को आपस में जोड़्ते हैं. जहां भारत में ‘ वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘सादा जीवन उच्च विचार’ जैसे सिद्धांतों की मान्यता रही है, वहीं भूटान विश्व का इकलौता ऐसा देश है जो जी डी पी ( ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट ) का प्रयोग लोगों की खुशी को मापने के लिये भी करता है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भूटान दौरे में रांयल यूनिवर्सिटी भूटान के छात्रों को भी संबोधित किया.
इस संबोधन मे प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के युवा वर्ग में वैचारिक आदान प्रदान और दोनों देशों की युवा पीढी को साथ में मिलकर एक ‘ससटेनेबल फ्युचुर’ के लिये नित नये आविष्कारों और प्रयोगों के ज़रिये सतत कार्यरत रहने के लिये प्रोत्साहित किया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भूटान दौरे का सबसे अहम पहलू यह है कि इस दौरे ने पड़ोसी देश चीन को बुरी तरह से विचलित कर दिया. भूटान के मामले में भारत हमेशा चीन की आंख का कांटा रहा है, फिर चाहे वो डोकलाम विवाद हो या अन्य मसले.
2017 में डोकलाम क्षेत्र में भारत और चीन के सेनाओं के बीच हुए ‘स्टेण्डांफ’ के बाद यह प्रधानमंत्री का पहला भूटान दौरा है. भारत ने हमेशा चीन के कूटनीतिक इरादों से भूटान के रक्षा की है. गौरतलब है कि भारत के पड़ोस में भूटान के एकमात्र ऐसा देश है जिसने अभी तक चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड ‘ योजना में सम्मिलित होनें में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
हालांकि आलोचकों का कहना है कि ऐसा भूटान सिर्फ भारत के दबदबे में आकर कर रहा है चूंकि भारत अभी भी उनकी विदेश नीति को नियंत्रित करता है. लेकिन ऐसा कहना गलत होगा क्योंकि भूटान अपनी खुद की नीति के अनुसार आर्थिक क्षेत्र में सहयोग के लिये कुछ कुछ चीन से हाथ मिला रहा है. लेकिन डोकलाम क्षेत्र को लेकर चीन के जो इरादे हैं, उनसे वह भली भांति वाकिफ है, इसीलिये चीन से उचित दूरी बनाये हुए है.
प्रधानमंत्री का भूटान दौरा एक ऐसे समय में हुआ जब चीन जम्मू कश्मीर और लद्दाख मे आर्टिकल 370 हटाये जाने के भारतीय सरकार के फैसले से बुरी तरह विचलित है और अंतराष्ट्रीय समुदाय में इस मसले को लेकर भारत को कटघरे में लाने की पूरी कोशिश में जुटा है. तो इसे लेकर भी चीन खासा सदमे में है.