विपुल रेगे। अपराधियों का संसार विचित्र होता है। कुछ अपराधी अपने पेशे को कला और स्वयं को कलाकार के रुप में देखते हैं। अपराध करना और पुलिस को चकमा देना उनके लिए बहुत से सांसारिक सुखों से बढ़कर आनंद देने वाला काम होता है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक अपराधी हुए हैं। इनमे नटवरलाल, चार्ल्स शोभराज के बाद एक और अपराधी का नाम लिया जा सकता है और उसका नाम है सुकुमार कुरुप। नटवरलाल जीवन के अंतिम प्रहर में जो फरार हुआ, तो उसकी मृत्यु तक पुलिस उसे खोज नहीं सकी थी। ऐसे ही कुरुप को तो पुलिस कभी छू भी नहीं सकी थी। तेलुगु फिल्मों के निर्देशक श्रीनाथ राजेंद्रन ने इस चतुर अपराधी पर ‘कुरुप’ नामक अत्यंत मनोरंजक फिल्म का निर्माण किया है।
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अंग्रेज़ी के एक शब्द ‘फ्यूजिटिव’ के कई अर्थ होते हैं। जैसे भगोड़ा, पलायक आदि। अपितु जब हम नटवरलाल, शोभराज और कुरुप के अपराधी जीवन को देखते हैं तो ये अर्थ व्यापक नहीं लगते। आख़िरकार पुलिस हिरासत से भाग निकलना एक कला ही तो है, भले ही वह बुरी हो। फ्यूजिटिव शब्द के सही अर्थ को जानना हो तो इन अपराधियों का जीवन पढ़ने की आवश्यकता होगी।
सुकुमार बचपन से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था। उसके पिता ने उसे इस आशा में भारतीय वायु सेना में भेजा कि सैनिकों की संगत में उसका चरित्र सुधर जाएगा। अपितु सुकुमार जन्मजात अपराधी था। एक बार वह सेना से छुट्टी लेकर घर गया और लौटकर ही नहीं आया। उसने अपनी आत्महत्या की झूठी खबर फैलाई और अपनी प्रेमिका को लेकर पर्शिया चला गया।
वहां से कुरुप पुनः भारत लौटा और एक बार फिर आठ लाख के बीमे की रकम के लिए खुद को मृत सिद्ध किया। उसने किसी और व्यक्ति को मरवाकर ये सिद्ध कर दिया कि मरने वाला कुरुप है। उसके साथी की कुछ गलतियों से एक पुलिस अधिकारी उसके पीछे लग जाता है लेकिन उसे कभी पकड़ नहीं पाता। चालाक कुरुप हमेशा उससे एक कदम आगे ही रहता है।
इस सत्य कथा पर अभिनेता दुलकर सलमान को लेकर निर्देशक श्रीनाथ राजेंद्रन ने एक ऐसी फिल्म बनाई है, जिसकी ग्रिप में दर्शक जकड़ा जाता है। दस्तावेजों के आधार पर मनोरंजक कथा बनाना इतना आसान नहीं होता। स्क्रिप्ट बहुत कैची बनानी पड़ती है। इस फिल्म में निर्देशक कथा को कुरुप की सत्य कथा के अनुसार ही चलाता है। फिल्म का ओपनिंग सीन पुलिस अधिकारी कृष्णदास पर खुलता है।
कृष्णदास सेवानिवृत्त होने जा रहा है। उसकी आलमारी की सफाई करते समय एक पुलिस अधिकारी को वह डायरी मिलती है, जिसमे कुरुप की पूरी कहानी लिखी है। यही से कहानी फ्लैशबेक में जाती है। ये फ्लैशबैक बिना ब्रेक का होता है। वर्तमान फिल्मों में फ्लैशबैक को टुकड़ों में बाँट दिया जाता है, जिससे कई बार दर्शक को झुंझलाहट होती है। इस फिल्म में कमियां खोजने पर नहीं मिलेगी।
इसके कलाकारों ने दर्शनीय अभिनय किया है। दुलकर सलमान कुरुप के किरदार के प्रति दर्शकों की रुचि जगाते हैं। ऐसा अचूक अभिनय हिन्दी पट्टी के अभिनेताओं में बहुत ही कम देखने को मिलता है। ऐसा अभिनय करने के लिए समर्पण की आवश्यकता होती है। पुलिस अधिकारी कृष्णदास का किरदार करने वाले इन्द्रजीथ सुकुमारन बराबरी से दुलेकार को टक्कर देते हैं।
शाइन टॉम चाको इन सब कलाकारों में अलग ही स्थान रखते हैं। भासी पिल्लई के चरित्र को वे अनूठे ढंग से प्रस्तुत करते हैं। शोभिता धुलिपाला ने कुरुप की प्रेमिका के रुप में अनूठा अभिनय किया है। ये फिल्म कई कारणों से देखे जाने योग्य है। निर्देशक ने कुरुप का सही चरित्र प्रस्तुत किया है। उस अपराधी की कुत्सित मानसिकता, पुलिस से आँख-मिचौनी खेलने का उसका ढंग, विपरीत परिस्थितयों में भाग निकलने का हुनर बहुत ही बारीक़ी से प्रस्तुत किया गया है।
पटकथा लेखक के.एस.अरविन्द ने पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों और पुलिस दस्तावेजों के आधार पर कुरुप के जीवन की कल्पना की है, जो कि एक प्रशंसनीय कार्य है । इस सुंदर फिल्म में उनका योगदान बहुत बड़ा है। नेटफ्लिक्स पर ये फिल्म तेलुगु के साथ हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध है।
यदि आप सत्य कथाओं पर आधारित आपराधिक कथाओं को पसंद करते हैं और बहुत ही सुंदर अभिनय देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आपको तुरंत देखनी चाहिए। बच्चों के लिए इस फिल्म में कुछ भी नहीं है। फिल्म मेकिंग के विद्यार्थियों को तो ये फिल्म ज़रुर देखनी चाहिए। कुरुप अब भी जीवित है और इस समय उसकी आयु लगभग 86 वर्ष की हो चुकी है। जब नटवरलाल की मृत्यु हुई तो सन 2009 में उसके परिवार का स्पष्टीकरण आया था कि अब वह जीवित नहीं है। सुकुमार कुरुप को लेकर अब तक ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है।