महिला पत्रकार बरखा दत्ता द्वारा राहुल गांधी के ‘आलिंगन-पोलिटिक्स’ पर लिखे गये लेख का फ्रायडियन मनोविज्ञान के आधार पर विश्लेषण किया गया है। इस लेख को वही लोग समझ सकते हैं, जिन्होंने मेरा कल का लेख- क्या ‘कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स’ जैसी यौन-ग्रंथि के शिकार हैं राहुल गांधी? पढ़ा है। आज फिर से आग्रह है कि जिन लोगों को वामपंथियों की शब्दावली, उनका मनोविज्ञान नहीं पता है और जो नैतिकतावादी हैं वो इस लेख से दूर रहें। इनके मस्तिष्क की तह तक पहुंच कर लोगों को जागरूक करने का मेरा अभियान जारी रहेगा। इसलिए प्लीज कोई नसीहत देने न आएं। धन्यवाद!
20 जुलाई को संसद के अंदर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा जबरदस्ती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले पड़ने पर सोशलाइट्स, अंग्रेजी महिला पत्रकार और खुद को ‘फ्री-थिंकर’ मानने वाली वामी-कांगी महिलाएं रिझी पड़ी हैं। जबरदस्ती गले पड़ने में उन्हें ‘मेट्रोसेक्सुअलिटी’ नजर आ रही है। इन महिलाओं की सोच में संसदीय मर्यादा से अधिक ‘यौन’ और राहुल गांधी की ‘यौनिकता’ केंद्र में है। मनोविश्लेषक सिग्मंड फ्रायड का मनोविश्लेषण कहता है कि ‘जो आपके अचेतन मन में दबा है, वही प्रकट हो जाता है!’ इस मेट्रो और अंग्रेजी बिरादरी की शब्दावली और उनका मनोविज्ञान ‘यौन’ के आसपास ही घूमता है, क्योंकि उनके अचेतन मन में स्वतंत्र चिंतन का पर्यायवाची शब्द केवल और केवल सेक्स है, इसलिए वह जब-तब प्रकट होता रहता है।
मनोविश्लेषण से पहले थोड़ा उदाहरण देख लेते हैं
राहुल गांधी की गले पड़ने वाली घटना से पहले आप इनके कुछ पूर्व के उदाहरण देखिए। जेएनयू में कन्हैया कुमार को कवर करने गई बरखा दत्त के ट्वीट में अचानक से कॉन्डोम जगह पा लेता है, होली पर बैलून में सागरिका घोष को वीर्य भरा नजर आता है, महरूम वामपंथी गौरी लंकेश सेनेटरी पैड पर जीएसटी लगने पर पीएम मोदी को उपयोग में लाई गई सेनेटरी नैपकिन और पिंक चड्डी भेजने का अभियान चलाती हैं, वामपंथी कविता कृष्णन और शेहला राशिद खुलकर फ्री सेक्स की वकालत करते हुए ट्वीट करती है और कविता की मां लक्ष्मी कृष्णन कहती है कि ‘हां उसने फ्री सेक्स किया है’, जेएनयू में किस-डे मनाया जाता है, संघ कार्यालय के बाहर चुंबन का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाता है।
राष्ट्रवादी सोच के लेखकों, पत्रकारों और व्यक्तियों ने अभी तक इनके मनोविज्ञान को ठीक से समझा ही नहीं है, जिसके कारण वे इसके विरोध में गाली-गलौच व मारपीट जैसे जाल में फंस जाते हैं। वामपंथी बिरादरी यही चाहती है। अपने दमित ‘यौन’ को उन्होंने freethinking का परिचायक बना दिया गया है और उसका विरोध करने वालों को देश-विदेश की मीडिया में जबरदस्त तरीके से रूढि़वादी प्रचारित किया जाता है। इससे ‘कामसूत्र’ और ‘खजुराहो’ जैसा प्रगतिशील चिंतन देने वाला हिंदू धर्म पूरी दुनिया में रूढ़ीवादी धर्म के रूप में बदनाम होता है!
पहले देख लें कि राहुल गांधी के गले पड़ने वाले लेख में बरखा दत्त ने किन शब्दों का उपयोग किया है!
अंग्रेजी पत्रकार बरखा दत्त ने राहुल गांधी द्वारा पीएम के गले पड़ने पर वाशिंगटन पोस्ट में Rahul Gandhi hugged Narendra Modi — and it hurt शीर्षक से एक लंबा-चौड़ा लेख लिखा है। उनके लेख में उपयोग में आए कुछ शब्द और वाक्य को देखते हैं-
* Hurt
* Prime Minister Narendra Modi is a hugger
* Affection
* wrapped his arms around the man he had just called incompetent.
* Imagine Hillary Clinton surprising Donald Trump in a clasp
* handsomely
* The Hug is the politics of love vs. the politics of hate
* metrosexual gentleness can combat hard-line machismo.
* cheek moment
* love and compassion
* pure
* playbook
* huge gamble
* powerful
* fiefdoms
* drawing attention
* war game
* mischievous
* flamboyance
* flirtation
* romance
* courtship
* relationship
* charm
* chutzpah
. @RahulGandhi hugged @narendramodi – And It Hurt! My take in @washingtonpost on why 'The Hug' showed RG was astute, stumped the Prime Minister, won the headlines- but he also took a big risk https://t.co/niqJooZpx1
— barkha dutt (@BDUTT) July 23, 2018
बरखा के लेख का फ्रायडियन विश्लेषण
बरखा दत्त के लेख का लिंक उसके शीर्षक में अटैच्ड है, जहां से ये कुछ शब्द लिए गये हैं। इन शब्दों को गौर से देखिए और मनन कीजिए। बरखा दत्त ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि ‘माचोमैन’ की और राहुल की छवि ‘मेट्रोसेक्सुअल जेंटलमैन’ की गढ़ी है और उसी अनुरूप शब्दों का चयन किया है। अब आप किसी रोमांटिक या कामुकता से भरे नॉवल को पढि़ए, आप बरखा दत्त द्वारा इस लेख में उपयोग में लाए गये अधिकांश शब्द वहां पा जाएंगे! याद रखिए बरखा ने राजनीतिक लेख में इसका प्रयोग किया है, लेकिन उनके अचेतन मन से ‘यौनिक’ शब्दों और वाक्यों का प्रस्फुटन हो रहा है, जो जबरदस्ती, लेकिन कसकर किए गये राहुल के आलिंगन और उसके अधोवस्त्रविहीन डोंगे के उभरने कारण उपजे अचेतन मन के प्रस्फूटन का नतीजा हो सकता है!
यहां तक कि बरखा ने अपने इस लेख में हिलेरी द्वारा ट्रंप को गले लगाने की कल्पना तक कर डाली है। उनकी इस कल्पना में राहुल गांधी हिलेरी की जगह और ट्रंप मोदी की जगह दिखते हैं, इसलिए मोदी के लिए वह ‘माचोमैन’ और राहुल के लिए ‘जेंटलमैन’ का उपयोग कर रही है। इसके अलावा रोमांस, कोर्टशिप, रिलेशनशिप, फ्लर्टेशन, चार्म, पीड़ा पहुंचाना, शुद्धता जैसे शब्दों का चयन किया गया है, जो प्रेमालाप या यौन से जुड़े शब्द हैं। हर शब्द की अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है, लेकिन फिर लेख बहुत अधिक विस्तारित हो जाएगा, इसलिए एक पैटर्न पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया गया है।
अब आते हैं फ्रायड के मनोविश्लेषण पर। फ्रायड ने कहा है कि “स्वप्न (या फिर स्वप्न जैसी स्थिति हो) बहुत अधिक कामुक इच्छाओं से पैदा होते हैं। जगे होने पर भी जब कोई क्रिया करता है और उसमें अचेतन मन शामिल होता है, तो वह भी कामुक इच्छाओं को ही व्यक्त करता है।” फ्रायड कहता है कि “जब किसी के प्रति अनुराग पैदा हो तो इसके पीछे केवल एक ही कारण है, और वह यह है कि उसे उसकी आवश्यकता है और उसके बिना उसका काम नहीं चल सकता है।”
इस पूरे लेख को यदि हम पढ़ें तो पाएंगे कि बरखा दत्त का का पुरुषोचित व्यवहार (जो कि उसकी डोमिनेंट पर्सनालिटी, उसकी चाल-ढाल, व्यवहार और पहनावे से झलकता भी है) राहुल गांधी के स्त्रियोचित व्यवहार (स्वयं बरखा ने ही अचेतन मन से राहुल की जगह महिला (हिलेरी क्लिंटन) को रखकर एक कल्पना की है) पर रीझा हुआ है! संभवतः एक स्त्री देह में पुरुषोचित गुण की प्रबलता के कारण वह 56 ईंच की छाती वाले ‘माचोमैन’ की जगह ‘स्त्रियोचित जैंटलमैन’ के प्रति ज्यादा आकर्षित हैं!
विपरीत गुणों का आकर्षण समान गुणों के आकर्षण से कहीं अधिक होता है। पूरे लेख में ‘माचोमैन मोदी’ की कठोरता से बरखा को पीड़ा हो रही है, जो वह राहुल पर प्रक्षेपित कर इसे व्यक्त कर रही है। इसका विश्लेषण यदि फ्रायड के मनोविश्लेषण रूप में करें तो कहेंगे कि बरखा चाहती है कि उसका ‘मेट्रोसेक्सुअल जेंटलमैन’ ‘पावर गेम’ में ‘माचोमैन’ से जीत जाए ताकि भविष्य में वह उसकी आवश्यकता (2G जैसी) को पूरा कर सके! बरखा का लेख इस पूरे मंतव्य को उसके अचेतन मन से निकले शब्दों और वाक्य विन्यास के जरिए स्पष्ट कर देता है!
सागरिका घोष ने क्या लिखा, आइए देखते हैं
सागरिका घोष ने इसे लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया में Jhappi is smart TV, now Rahul must get real शीर्षक से एक लेख लिखा। पहले देखते हैं कि सागरिका ने किन शब्दों का उपयोग अपने लेख में प्रमुखता से किया है-
* thunderstruck
* flung his arms
* Jhappi
* Howzat
* political nautanki
* naughty behaviour
* dramatic photo-ops
* uncharacteristically bold
* courageously
* subliminal massage
* Munnabhai playing love guru
* Rahul Gandhi is still not a rugged politician
* Lage raho Rahulbhai
Rahul Gandhi's hug was smart TV, but Rahul still has to get real about his politics and the hug can't be a one-act show. My take in today's Sunday Times Of India https://t.co/Ef6MUO4TOF
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) July 22, 2018
सागरिका एक गृहिणी है और एक मां है, इसलिए राहुल के प्रति उसमें ममता का बोध झलकता है। उसके पति राजदीप सरदेसाई के पिता दिलीप सरदेसाई एक क्रिकेटर रहे हैं, इसलिए उनके लेख में क्रिकेट के शब्द भी देखने में आते हैं। टीवी पत्रकारिता में लाइट-कैमरा-एक्शन और राजनीतिक नौटंकी पर उनका फोकस ज्यादा है। मां होने के कारण सागरिका राहुल के प्रति चिंतित जान पड़ती है। वह यह देख रही है कि राहुल एक जवाबदेही से मुक्त बच्चा है, इसलिए उसकी छवि ‘पप्पू’ जैसी है। वह राहुल की दाढ़ी और सेविंग फेस का जिक्र कर रही है, जो एक बच्चे के कभी बड़े होने-कभी बच्चा बने रहने को लेकर सागरिका के अंदर चल रहे द्वंद्व का परिचायक है।
सागरिका ने राहुल के भाषण का जिक्र कर यह दर्शाने की कोशिश की है कि भले ही राहुल के अंदाज पहले नाटकीय थे, लेकिन 20 जुलाई का उसका भाषण असमान्य रूप से बोल्ड और साहसी था। सागरिका ने अपने पूरे पोस्ट में एक बच्चे पप्पू को बड़े राहुल गांधी में रुपांतरित करने का प्रयास किया है। इसलिए कभी वह उस बच्चे को ‘लवगुरु’ कह देती है, कभी ‘राहुल भाई’। यह सागरिका के मानसिक द्वंद्व को उद्घाटित कर रहा है, ठीक राहुल गांधी के व्यक्तित्व की तरह।
सागरिका घोष के पूरे लेख को फ्रायडियन मनोविश्लेषण के हिसाब से देखें तो पाते हैं कि सागरिका राहुल के प्रति चिंतित है, जिसके कारण वह objective anxiety की शिकार है। वह राहुल को एक पलायनवादी व्यक्तित्व के रूप में देख रही है और उसके लिए एक मां की तरह परेशान है। फिर भी आप इस लेख को एक पत्रकार का लेख कह सकते हैं, जिसकी धरातल में राजनीति और मीडिया है।
मनोविश्लेषण के हिसाब से देखें तो शादीशुदा जीवन और परिवार ने बरखा और सागरिका के बीच सोच के अंतर को पैदा किया है, जबकि इन दोनों की पत्रकारिता गांधी परिवार की वफादार रही है। बरखा का एकाधिकारवादी पुरुषोचित स्वभाव और उसका अकेलापन राहुल के प्रति रोमांटिसिज्म के रूप में बाहर आया है तो सागरिका का पारिवारिक परिवेश राहुल के प्रति मां जैसी चिंता और व्याकुलता दर्शाता है।
बरखा दत्त जहां रोमांटिसिज्म में खोयी हुई अचेतन मन से लिखती प्रतीत होती है, वहीं सागरिका का लेख धरातल को छोड़ कर फिर से धरातल पर वापस आ जाता है। बरखा और सागरिका की पूरी पत्रकारिता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध और गांधी परिवार के प्रति वफादारी पर टिकी है, इसलिए राहुल गांधी के प्रति लगाव दोनों के लेख में दिखता है, हालांकि इस लगाव का भाव अलग-अलग है। यही फ्रायडियन विश्लेषण है, जो बिना पूर्वग्रह व्यक्तियों के व्यवहार, उसके लेखन और उसके वाचन के आधार पर उसकी मनोदशा को प्रकट कर देता है।
अविश्वास प्रस्ताव पर पीएम मोदी को सीट से उठने के लिए कहने वाले राहुल गांधी की मानसिकता का विवेचन करता अन्य लेख-
क्या ‘कैस्ट्रेशन कांप्लेक्स’ जैसी यौन-ग्रंथि के शिकार हैं राहुल गांधी?
Note: कल इसी विषय पर पढि़ए एक और फ्रायडियन मनोविश्लेषण….
URL: Political psychology-rahul gandhis behaviour and the media-1
Keywords: Narendra Modi, No Confidence Motion, Rahul Gandhi, Sexual Complex, barkha dutt, sagarika ghose, fraud psychology