
Movie Review लचर डायरेक्शन वाली ‘कुत्ते’ रिलीज के पहले ही दिन औंधे मुंह गिर पड़ी
विपुल रेगे। बॉलीवुड में ‘नेपोकिड्स’ समय-समय पर अपना भाग्य आज़माते रहते हैं। इनमे से बहुत कम ही सफलता का मुंह देख पाते हैं। निर्माता-निर्देशक-संगीतकार विशाल भारद्वाज के बेटे आसमान भारद्वाज की ‘कुत्ते’ शुक्रवार को रिलीज हुई। कमज़ोर स्क्रीनप्ले और लचर डायरेक्शन वाली ये फिल्म रिलीज के पहले ही दिन औंधे मुंह गिर पड़ी। निर्देशक के रुप में पारी शुरु करने वाले आसमान ने अपनी पहली ही फिल्म से ज़मीन देख ली है।
यदि आसमान विशाल भारद्वाज के बेटे न होते तो निर्देशक बनने के लिए उन्हें सालों तक मुंबई के फिल्म जगत में एड़ियां घिसनी पड़ती। नेपोकिड होने के कारण आसमान को प्रोड्यूसर के रुप में पिता विशाल का साथ मिल गया। पिता के रेफरेंस से फिल्म के लिए शानदार कलाकार मिल गए। एक नेपोकिड के लिए फिल्म निर्माण का सभी साजो सामान उपलब्ध करवा दिया गया था। इसके बावजूद आसमान ने कचरा बनाया है।
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शायद कचरे में भी इससे अधिक सहूलियत रहती है। फिल्म की शुरुआत एक नक्सली आपरेशन से होती है। इस आपरेशन का फिल्म की कहानी से कोई सीधा संबंध नहीं होता। नक्सलियों की मुखिया को छुड़ाने आई गैंग भयंकर रक्तपात करती है। मुखिया एक पुलिस अधिकारी के हाथ में ग्रेनेड थमाकर चली जाती है। कहानी यहाँ से आगे बढ़ती है। एक गैंगस्टर दो पुलिसवालों को किसी को मारने की सुपारी देता है।
दोनों शिकार को मारने में नाकाम रहते हैं। दोनों पर पुलिस जांच बैठ जाती है। नौकरी में बहाल होने के लिए एक करोड़ की रिश्वत मांगी जाती है। रिश्वत के पैसों की जुगाड़ करने के लिए दोनों पैसों से भरी एक वैन लूटने की योजना बनाते हैं। इस तरह कहानी में एक के बाद एक ट्विस्ट आते चले जाते हैं। पहली फिल्म होने के बावजूद आसमान के पास निर्देशन के लिए भरपूर मार्गदर्शन की कमी नहीं थी लेकिन वे उसका लाभ नहीं ले सके।
लगभग 40 करोड़ के बजट से बनी ‘कुत्ते’ दर्शक को प्रभावित करने में असफल रही है। इतने बजट में कोई बंगाली या मराठी निर्देशक शानदार पैसा कमाऊ फिल्म बना लेता। आसमान की फिल्मोलॉजी में उनके पिता की शैली का प्रभाव दिखाई देता है या पहली फिल्म में सफलता प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपने पिता की निर्देशन शैली की नकल की है।
फिल्म में तब्बू ही एकमात्र ऐसी कलाकार रहीं, जो कुछ दृश्यों में प्रभाव छोड़ती है। नसीरुद्दीन शाह, कोंकणा सेन शर्मा, अर्जुन कपूर, राधिका मदान आदि से निर्देशक अच्छा काम नहीं ले सके हैं। पहली फिल्म से निर्देशक किसी भी डिपार्टमेंट में प्रभावित नहीं कर सके। उनके निर्देशन में ऐसा कुछ नहीं है कि किसी फिल्म के लिए कोई निर्माता उन्हें अनुबंधित कर सके।
कुल मिलकर ‘कुत्ते’ 2023 की ऐसी लचर फिल्म है, जिसका रिकार्ड लचरपन में इस साल तो कोई और फिल्म तोड़ नहीं सकेगी। पहले दिन एक करोड़ से कम का कलेक्शन सिद्ध करता है कि ‘कुत्ते’ टिकट खिड़की पर घटित हुआ एक हादसा है। एक अनुभवहीन सितारा पुत्र को सारे संसाधन उपलब्ध करवा दिए गए थे लेकिन बनाया उन्होंने फिर भी कचरा ही।
असली कचरा भी ‘कुत्ते’ के बाद खुद को थोड़ा बहुत खूबसूरत मानने लगेगा। फिल्म में नक्सली मुखिया पुलिस अधिकारी को एक ग्रेनेड देकर चली जाती है। पूरी फिल्म में दर्शक ने उसी ग्रेनेड से अपना सिर ठोंका है।
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