विपुल रेगे। कच्चा बादाम से लोकप्रिय हुए मूंगफली विक्रेता भुबन बादायकर को उनका गीत व्यावसायिक रुप से प्रयोग करने वाली कंपनी ने तीन लाख रुपये का भुगतान किया है। इस मूंगफली के दाने जितने भुगतान पर वे युवा प्रशंसक नाराज़ हैं, जिनका परिचय इस निर्धन गायक से हो चुका है। भुबन का गाया ‘कच्चा बादाम’ आज का सबसे लोकप्रिय गीत बन चुका है। यूट्यूब पर रील बनाने वाले भी इस गीत पर टूट पड़े हैं। भुबन ने पश्चिम बंगाल के लोक संगीत को संपूर्ण देश में लोकप्रिय कर दिया है।
भुबन बादायकर पश्चिम बंगाल के बीरभूम के एक गांव क़ुरालगुड़ी के निवासी हैं। बीरभूम को वीरों की भूमि कहा जाता है। बीरभूम एक कारण से और प्रसिद्ध है और वह है यहाँ का लोक गायन। बीरभूम में बाउल संगीत की परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं पर भी इस संगीत का प्रभाव देखा गया है। बाउल संगीत भुबन बादायकर के गीत में सांस लेता प्रतीत होता है।
भुबन पारंपरिक गायक तो नहीं हैं लेकिन बीरभूम का पारंपरिक संगीत उनके गीत में स्पष्ट ढंग से परिलक्षित होता है। बंगाल में दो प्रकार के लोकगीतों की परंपरा रही है। एक है भतियाली और दूसरा है बाउल संगीत। भुबन बादायकर ने अपना गीत मूंगफली बेचने के लिए लिखा था। वे अपने गीत में अपनी कच्ची मूंगफली की प्रशंसा करते हुए बता रहे हैं कि ये स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी है।
लोकगीतों के संगीत में एक रहस्यमयी आकर्षण होता है। हाल ही में एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। छत्तीसगढ़ के एक बच्चे सहदेव द्वारा गाया गया गीत ‘बचपन का प्यार’ भी ऐसा ही लोकप्रिय रहा, जैसा वर्तमान में कच्चा बादाम प्रसिद्ध हो रहा है। उस गीत का पूरा फायदा एक संगीत कंपनी और सहदेव को मिल गया, जबकि मूल गायक और संगीतकार को पूछा तक न गया।
आश्चर्य कि बचपन का प्यार भी एक लोकगीत की धुन पर आधारित है। इसे गुजरात के एक आदिवासी लोक कलाकार कमलेश बरोट ने गाया था। कुछ वर्ष पूर्व मालवा की धरती पर एक भील लोकगीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि शादियों और पार्टियों में ये गाया-बजाया जाने लगा था और जब ये गीत बजाया जाता, लोग नाचने-झूमने लगते थे। ‘अमु काका बाबा ना पोरिया रे’ नामक ये गीत देशभर के संगीत समारोहों में भी बजाया जाने लगा था।
मध्यप्रदेश से लेकर गुजरात तक इस गीत की लोकप्रियता समान थी। कच्चा बादाम की लोकप्रियता के पीछे भी लोक संगीत ही है। जैसे ही ये गीत वायरल हुआ, इस पर उन युवाओं की निगाह पड़ गई, जो रील बनाने के लिए कुख्यात हैं। सैकड़ों युट्यूबर्स ने इस गीत का इस्तेमाल कर लाखों लाइक बटोरे और पैसा कमाया। इस गीत को एक संगीत कंपनी ने भुबन की आवाज़ में रिकार्ड करवाया और वीडियो भी बनाया।
कंपनी ने इस गीत से बहुत पैसा कमाया लेकिन भुबन को कुछ नहीं दिया। जब प्रशंसकों की ओर से विरोध किया गया तो औपचारिकतावश तीन लाख रुपये दे दिए गए। जबकि इस गीत पर भुबन का कॉपीराइट है। उन्होंने ये गाना न केवल गाया है बल्कि लिखा और संगीत भी उन्होंने ही बनाया है। आज कहने को भारत में पाश्चात्य संगीत चल रहा है किन्तु लोकप्रिय वही होता है, जिसमे भारत के लोक संगीत की सुगंध हो।
आज संगीत जगत में इतने प्रतिभाशाली संगीतकार हैं लेकिन वे अपना मौलिक संगीत हिट नहीं करा पाते हैं। वही एक छोटे से गांव का गरीब मूंगफली विक्रेता ऐसा गीत गा देता है, जो पुष्पा के ‘श्रीवल्ली’ गीत से मुकाबला करता है। कच्चा बादाम की लोकप्रियता ने सिद्ध कर दिया है कि भारतीय युवा हो या भारतीय वृद्ध, उनके मन को भारत का लोक संगीत हिलोरों से भर देता है। आप आज के गीतों से भारतीय लोक संगीत और राग-रागिनियों को हटा दीजिये, तो कुछ न बचेगा।