सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी माना है. प्रशांत भूषण के कथित रूप से न्यायपालिका के खिलाफ किये गये दो अपमानजनक ट्वीट्स को लेकर उनके खिलाफ अवमानना का केस चल रहा था. और अब अवमानना के इस मामले में उन्हे दोषी करार दे दिया गया है.
अदालत में अब उनकी सज़ा को लेकर सुनवाई 20 अगस्त को होगी. अवमानना के इस मामले में कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण को 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. मामले की सुनवाई 5 अगस्त को पूरी हो गयी थी. न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस मामले में भूषण को दोषी माना।
सुप्रीम कोर्ट ने जून में प्रशांत भूषण द्वारा किये गये दो ट्वीट्स पर अवमानना का स्वत: संज्ञान लिया था. एक ट्वीट में उन्होने देश के मुख्य न्यायधीश जस्ट्स बोगड़े के बारे मे लिखा था कि एक ऐसे समय में जब देश कोरोना वायरस आपदा से गुज़र रहा है और न्यायालय आम लोगों के लिये बंद हैं, चीफ जस्टिस बिना मास्क के 50 लाख रुपये की मोटरसाइकल चला रहे हैं. जबकि जो फोटो इस घटना को लेकर वायरल हुई थी, उसमे स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि जस्टिस बोगड़े सिर्फ मोटरसाइकल पर बैठें भर हैं, न कि उसे चला रहे हैं.
एक और ट्वीट में उन्होने सुप्रीम कोर्ट पर प्रजातंत्र का विनाश करने का आरोप लगाया है. और ट्वीट में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि पिछले 6 सालों में ही यह सब कुछ् हुआ है और इसमे पिछले 4 मुख्य न्यायधीशों ने प्रजातांत्रिक ढांचे को तहस नहस करने में अहम भूमिका निभाई.
प्रशांत भूषण ने अपने बचाव में तर्क दिया था कि किसी एक प्रधान न्यायधीश या उसके बाद के प्रधान न्यायाधीशों के कामकाज की आलोचना करने का अभिप्राय सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करना नहीं है, यह तो सिर्फ उन व्यक्तियों के कामकाज के तरीके पर टिप्पणी है.
इस मामले में प्रशांत भूषण जी का एक ट्वीट याद आता है. 2017 में जब पूर्व न्यायधीश सी एस करनन को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के मामले में सज़ा हुई थी तो भूषण जी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा था कि वे इस बात से बहुत खुश हैं कि आखिरकार अदालत ने इस मामले में करनन को दोषी मान ही लिया. उन्होने देश के न्यायाधीशों पर गैरज़िम्मेदाराना आरोप लगाये और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ अजीबोगरीब आर्डर पास किये.
तो अब इस पूरे प्रकरण से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का दोगुलापन साफ पता चलता है. मात्र तीन साल पहले ही वे अवमानना के मामले को लेकर एक न्यायाधीश का मज़ाक उड़ा रहे थे, उनके सज़ा पाने पर सार्वजनिक रूप से अपनी खुशी व्यक्त कर रहे थे और उनपर खुद पर जब अवमानना का केस चला तो उन्हे वही न्यायालय और उसका फैसला दोषपूर्ण लगने लगा!