संदीप देव। प्रशांत किशोर आरंभ से भाजपा का वह जासूस है, जिसे भाजपा से निकालने का नाटक कर विपक्षी पार्टियों के रणनीति कक्ष में इसकी एंट्री कराई गई। यह शक तब हुआ था जब अमित शाह ने एक नहीं, दो-दो बार नीतीश कुमार को फोन कर प्रशांत को जदयू का प्रमुख रणनीतिकार बनवाया था। नीतीश कुमार ने एक न्यूज चैनल के मंच से उसी वक्त स्वीकारा था, लेकिन मामले को दबा दिया गया। नीतीश ने कहा था, “मैं तो उनको (प्रशांत) जानता भी नहीं था। अमित शाह ने बार-बार फोन करके रखने को कहा था।”
भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश ने दोबारा से भी इसे कहा था, लेकिन तब प्रशांत ने नीतीश पर हमला कर दिया। इसमें मीडिया ने केवल प्रशांत के हमले को दिखाया, नीतीश के उस बयान को पुनः अंडर-प्ले कर दिया गया था।
जैसे-जैसे प्रशांत की पोल खुलती गई, विपक्षी पार्टियों ने इससे किनारा कर लिया, लेकिन यह तब तक सभी पार्टियों की अंदरूनी समझ, डाटा और रणनीति को समझ कर उन्हें भाजपा के हवाले कर चुका था। इसे सबसे अधिक परेशानी कांग्रेस में आई थी। वहां इसे डाटा तक पहुंचने नहीं दिया गया और न अंदरूनी कोटरी का हिस्सा बनाया गया, जिससे बौखला कर इसने कांग्रेस पर तब हमला भी किया था।
बाद में बिहार में भाजपा समर्थक करीब आधा दर्जन बड़े उद्योगपतियों ने इसे फंड कर ‘जन-सुराज यात्रा’ चलवाया। यह बिहार में भाजपा के अकेले चलने की संभावना तलाशने के लिए चलाया गया था। लेकिन बिहार की धरती उस अनुकूल नहीं लगी, इसलिए पुनः भाजपा-जदयू का गठबंधन हो गया।
यदि प्रशांत की गोटी सेट हो जाती और जनता का इसे भरपूर समर्थन मिलता तो इसकी पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले लांच कराई जाती, जो NDA का हिस्सा होती और भाजपा को इसका भरपूर फायदा मिलता, लेकिन परिणाम उस अनुरूप नहीं आया।
अब ऋण उतारने की बारी है, जिस कारण जनता के वोटों को प्रभावित करने के लिए इसे चुनाव के बीच खुलकर भाजपा के पक्ष में बोलने के लिए उतारा गया है। यह साइकोलॉजिकल वार-फेयर का पार्ट है।

राजनीति में 2×2 कभी 4 नहीं होता। राजनीति जितनी दिखती है, उससे कई गुणा वह नहीं दिखती, यही राजनीति की पहचान और विशेषता है! प्रशांत किशोर इस राजनीति में भाजपा का तुरुप का पत्ता था और उसने अपने काम से इसे भाजपा के लिए बार-बार साबित भी किया है!