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India Speaks Daily > Blog > धर्म > सनातन हिंदू धर्म > ‘प्रतीकों में महाकाली’ माता का सातवाँ रूप
सनातन हिंदू धर्म

‘प्रतीकों में महाकाली’ माता का सातवाँ रूप

Kamlesh Kamal
Last updated: 2021/04/19 at 1:08 PM
By Kamlesh Kamal 77 Views 7 Min Read
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7 Min Read
kali
kali
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कमलेश कमल अब तक सिंह की सवारी करने वाली माता अब क्यों है गर्दभ पर सवार? ‘काल’ समय को कहते हैं और मृत्यु को भी। सनातन कहता है कि काल(समय) ही काल(मृत्यु) है। यह काल(मृत्यु का कारण) हर काल(क्षण) आपको ग्रास बनाता जाता है… खाता जाता है और एक दिन आप पूरी तरह काल-कवलित(भौतिक देह समाप्त) हो जाते हैं।

अब देखें कि चराचर विश्व की अधीश्वरी, जगत् को धारण करनेवाली, संसार का पालन एवं संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति पराम्बा के सातवें रूप को ‘कालरात्रि’ या ‘महाकाली’ कहा गया है। यहाँ काल की रात्रि का मतलब क्या मृत्यु की रात्रि है? जब हम जागरण कर रहे हैं, तो उसमें यह मृत्यु की रात्रि कहाँ से आई? या शक्ति को कालरात्रि कहने का कुछ गहरा अर्थ है??

कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ है– ‘जो सब को मारने वाले काल की भी रात्रि या विनाशिका हो’। सनातनी आस्था है कि सत्कर्म से अज्ञान का विनाश होता है और अमरत्व मिलता है। तो, यह साधना की शक्ति से अज्ञान की समाप्ति की कालरात्रि है। साथ ही, ज्ञान की संप्राप्ति की महारात्रि है। ध्यातव्य है कि यह अमरत्व शरीर का नहीं, शरीरी का होता है, उसके अच्छे कर्मों का होता है। तो, यह सत्कर्मों की कीर्ति का अमरत्व है।

विदित हो कि आर्ष ग्रंथों में कुसंस्कार और अज्ञान को मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में वर्णित किया गया है, जो उसके रक्त और बीज(वीर्य) के माध्यम से संचरित होते हैं। साधना की अग्नि से ये रक्तबीज रूपी राक्षस विनष्ट होते हैं। इस तरह साधकों को समझना चाहिए कि कालरात्रि क्या है और महारात्रि क्या है।

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कालरात्रि को रूप में भयंकरा, साधकों के लिए अभयंकारा जबकि भक्तों के लिए शुभंकरी कहा गया है, क्योंकि उनके लिए ये समस्त शुभों की आश्रयस्थली हैं। इसे ऐसे समझें कि उद्दाम ऊर्जा का विस्फोट अपने स्वरूप में भयंकर लेकिन निमित्त में शुभ होता है। स्मरण रहे कि सांकेतिक रूप से ही आदि शक्ति (माँ) के इस उग्र-स्वरूप में निरूपित किया गया है। जब इन सप्त चक्रों की सुषुप्त ऊर्जा उद्घाटित होती है, तो इस सृष्टि के कण-कण में अपरिमित ऊर्जा का प्रवाह होता है।

कहते हैं साधनारत देवी कुदृष्टि की भाजन ना बन जाए इसीलिए उनका वर्ण श्याम कर दिया गया। इस धार्मिक कथा को अगर तार्किक धरातल पर देखें तो स्त्री शक्ति की सामाजिक स्थिति का भी पता चलता है।

इसका मतलब है कि आशंका और कुत्सित मानसिकता सदैव से हर समाज में रही है जिसे शक्ति की साधना से ही बदला जा सकता है। कदाचित् यही कारण है कि माँ अगले रूप में गौरवर्णा हैं। ऐसी आश्वस्ति भी है इस दिन तक आते-आते साधक की साधना मूलाधार से सहस्रार तक पहुँच जाती है। परमसत्ता इसी चक्र में अवस्थित होती है; इसीलिए यह आदिम ऊर्जा ही ‘उद्दाम ऊर्जा’ या असीम ऊर्जा का स्पंदन कराती है।

सहस्रार का केंद्र सिर के शिखर पर माना गया है। वस्तुतः साधना की यह सर्वोच्च अवस्था है। पिछले चक्रों में हमने देखा कि साधक या कोई भी व्यक्ति मूलाधार से विशुद्धि तक किसी-न-किसी चक्र में अटका होता है; लेकिन सहस्रार वह चक्र नहीं है, जहाँ कोई साधक हरदम रह सकता है। इस चक्र के जागरण को तो कभी-कभी ही अनुभूत किया जा सकता है। अगर अधिक देर तक इससे तादात्म्य रहे, तो शरीर से तादात्म्य समाप्तप्राय होने लगता है और साधक के शरीर की आयु समाप्त होने लगती है।

आदि-शक्ति के गले में मुण्डमाल का क्या अर्थ है? देखिए कि सहस्रार सम्पूर्ण विकसित चेतना की अवस्था है, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से इसे सहस्र-दल कमल कहा गया है। एक कमल में हज़ार से अधिक पंखुड़ियाँ क्या होंगी, भला? तो, इसका मतलब है– अपनी सर्वोत्तम अवस्था और जागरण की संप्राप्ति। इस अवस्था में स्वयं का बोध मिट जाता है। इसलिए, देखिए कि शक्ति के जागरण से सिरों की माला (मुण्डमाल) की निर्मिति हुई है जो मिथ्या-तादात्म्य के कटने और विनष्ट होने का प्रतीक है।

अब तक माँ को सिंह की सवारी करते दिखाया गया था, लेकिन इस रूप में माँ गर्दभ(गदहे) पर आरूढ हैं। क्या इसका कोई प्रयोजन है? जी, हाँ। यह एक प्रतीकात्मक व्यवस्था है। यह दिखाया जा रहा है कि जब इस रूप में ऊर्जा का विस्फोट हो जाता है तब अपनी वृत्तियों को सँभालना सिंह की सवारी करने जैसा दुस्साध्य नहीं रहता, वरन् अब गर्दभ(गर्दभी) की सवारी करने की भाँति सरल हो जाता है। अभिप्रेत यह कि अब साधक हृषिकेश हो जाता है एवं इन्द्रियाँ किसी दासिन, किसी गर्दभी की तरह आज्ञाकारिणी हो जाती हैं।

जगन्मयी माता की महिमा को ग्रंथों में कुछ इन विभूषणों से व्याख्यायित किया गया है : आरम्भ में सृष्टिरूपा, पालन-काल में स्थितिरूपा, कल्पान्त के समय संहाररूपा, महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी, महासुरी और तीनों गुणों(सत् रजस् तमस्) को उत्पन्न करनेवाली प्रकृति आदि। इसके अलावा, महामाया को भयंकरा, कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी कहा गया तो श्री, ईश्वरी, ह्री और बोधस्वरूपा-बुद्धि भी कहा गया है। भाषा के अध्येता इन नामों की व्याख्या सहजता से कर सकते हैं।

निष्पत्ति के रूप में यह कहा जा सकता है कि इन गूढ़ प्रतीकों का चिंतन-अनुचिंतन करने से इनके अर्थ साधक को स्वयं उद्घाटित होते हैं। हाँ, जो साधक मंत्र द्वारा देवी कालिका (जो शस्त्र के रूप खड्ग धारण करती हैं) की साधना करना चाहते हैं, उनके लिए सरल मंत्र है–
ॐ क्रीं कालिकायै नमः।
ॐ कपालिन्यै नमः।।

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TAGGED: maa kali, navratri, navratri 2021
Kamlesh Kamal April 19, 2021
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Kamlesh Kamal
Posted by Kamlesh Kamal
मूल रूप से बिहार के पूर्णिया जिला निवासी कमलेश कमल ITBP में कमांडेंट होने के साथ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक भी हैं। उनका उपन्यास ऑपरेशन बस्तर : प्रेम और जंग' अब तक पांच भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
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