हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज़ को यह नहीं पता था कि वैक्सीन ही उनकी मुसीबत का कारण बन जायेगी। उदाहरणार्थ उन्होंने जोश में आकर वालंटियर कर दिया और परिणाम आपके सामने है। उनकी नेकनियती एवं समाज कल्याण की भावना को देखते हुये, ईश्वर उन्हें स्वस्थ करें यही हमारी मनोकामना है।
इसके पहले वाले लेख में मैंने वैक्सीन बनाने की समयावधि की तालिका प्रस्तुत की थी, जिसके अनुसार किसी भी वैक्सीन को बनाने में कम से कम 10 वर्ष का समय लगता है। परन्तु कोरोना के संदर्भ में इस समयावधि को दरकिनानार कर समूचे विश्व के मॉडर्न मेडिसिन के खोजकर्ताओं ने पॉलिटिकल प्रेशर में आकर आनन-फ़ानन में वैक्सीन बनाने का निर्णय लिया। गौर करने वाली बात यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैक्सीन बनाने की सभी गाइडलाइन में छूट दे दी, जिससे मानवजाति को धरती पर बचाया जा सके ?
आपको यह बात याद होनी चाहिए कि जब अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की नाटकीय रूप से फ़ंडिंग कम कर दी थी तो विश्व में दवा बनाने वाली कंम्पनियों के सबसे बड़े मालिक बिलगेट्स ने अपनी फ़ंडिंग अमेरिका द्वारा दी जाने वाली फ़ंडिंग के समतुल्य कर दी थी। परिणाम यह हुआ कि कोरोना वाइरस की वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल कोरोना की उत्पत्ति के चौथे महीने से ही शुरू हो गया था, जबकी उस समय तक कोरोना की बहुत कम जानकारी उपलब्ध थी।
मार्च-अप्रैल के महीनों में टीवी व मीडिया पर कोरोना की ऐसी छवि दिखाई गई, जिससे पूरे विश्व को यह प्रतीत होने लगा कि कोरोना धरती को मानवरहित बना देगा। मैं मानता हूँ कि चूँकि यह नये प्रकार का वाइरस था अत: उसकी रोकथाम के सही उपाय खोजने में समय लगेगा क्योंकि विगत दशकों में इसी प्रकार से बर्ड फ़्लू, स्वाइन फ़्लू, सार्स, मार्स इत्यादि सभी वाइरस के उपाय खोजे गये। परन्तु कोरोना को लेकर विश्वव्यापी महासंग्राम इसलिये शुरू हुआ कि यह दुनिया कि महाशक्तियों एवं अधम् पूँजीपतियों की विश्वस्तरीय साज़िश थी, जिससे दुनिया के उभरते हुये देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर ग़रीबी के गर्त में गिरा दिया जाये जिससे उनका बर्चश्व और अधिपत्य आगे आने वाले कई दशकों तक बना रहे। आँकड़े महज़ छलावा है, आंतरिक व्यवस्था कुछ और है।
शुरुआत में विश्वव्यापी लॉकडाउन से देशों की अर्थव्यवस्था चरमारा गई और अब कोरोना को ख़ौफ़नाक साबित करने के लिये प्रीमैच्योर वैक्सीन से पूरे देश को कोरोना संक्रमित करने का षड्यंत्र। मुमकिन है कि साज़िश कर्ताओं के पास असरकारक वैक्सीन पहले से मौजूद थी, जिसका प्रयोग कर वे अपने नागरिकों को बचाने का कार्य करेंगे तथा वैक्सीन की गुणवत्ता का बखान। अत: अन्य देशों को दी जाने वाली वैक्सीन की गुणवत्ता पर संदेह लाज़मी है। आपको ज्ञात होगा कि विकसित देशों में मिलने वाली दवाओं की गुणवत्ता अन्य देशों के मुक़ाबले बहुत अच्छी होती है। अमेरिका का भारत से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन का आग्रह कर आयात करना भी नाटकीय व संदेहास्पद लगता है।
ख़ैर छोड़िये इन बातों को और अब बात करते हैं प्रीमैच्योर वैक्सीन की। उदाहरण के तौर पर यह समझिये कि कंसीव करने के बाद स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिये मॉं के पेट में 9 महीनें का समय लगता है।परन्तु यदि उस बच्चे को कंसीव होते ही निकाल लिया जाये तो वह बच्चा कैसा होगा ? ठीक वैसे ही वैक्सीन बनने में कम से कम 10 वर्ष का समय लगता है, तो क्या 10 महीने में विकसित की हुई वैक्सीन कारगर होगी ? इस सवाल के माध्यम से मेरा देश के वैज्ञानिकों, नेताओं, स्वास्थ्यविदों, डॉक्टरों, वैक्सीन बनाने वाली कंम्पनियों तथा अन्य स्वास्थ्य संस्थानों से अनुरोध है कि वैक्सीन को लेकर स्वयं गुमराह ना हों और ना ही देशवासियों को गुमराह करें।
मानवता का परिचय दें और मानवकल्याण का काम करें। लोगों को कोरोना की साज़िश से मुक्ति दिलवाने और केरोना के प्रति उनके डर को कम करने का प्रयास करें। हमारे देश के सरकारी आँकड़े 93.52% रिकवरी रेट एवं 1.47% डेथ रेट के अनुसार कोरोना भारत के लिये पैंडमिक नहीं है। हमारे देश में कोरोना से कहीं अधिक घातक दसियों बीमारियाँ हैं । इसलिये कोरोना को लेकर हम क्यों विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों का पालन कर रहे हैं और क्यों अन्य देशों के अनुरूप चलने का प्रयास कर रहे हैं ? देश को कोरोना मुक्त बनाने के लिये वैक्सीन नहीं अपितु इन्यूनिटी पर फ़ोकस करने की ज़रूरत है।
कमाण्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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