एक पत्रकार होने के नाते अपनी ही बिरादरी के लोगों को सार्वजनिक रूप से भला-बुरा कहना ठीक नहीं है। लेकिन गौरी लंकेश की हत्या के बाद जो कुछ हुआ, उसमें चुप रहना भी गुनाह है। जो मैंने ऑब्जर्व किया, वो सीधे-सीधे आपको बताता हूं
* दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पत्रकारों ने मारपीट की, नाक-कान तोड़ने के प्रयास किए। भड़ास के संपादक यशवंत सिंह के वीडियो इसके सबूत हैं।
* प्रेस क्लब के भीतर टीवी पत्रकार को शहला जाफरी जैसी यूनिवर्सिटी की नेता ने GET OUT कहा। वो रिपोर्टर भी रिपब्लिक टीवी जैसे बड़े ब्रांड का था।
* प्रेस क्लब के भीतर एक आरोपी देशद्रोही को मंच दिया गया और भाषण करने दिया गया।
* प्रेस क्लब में पहली बार कन्हैया जैसे सड़क छाप नेता की अगुवाई में दिग्गज संपादकों को खड़ा होने में शर्म नहीं आई।
* प्रेस क्लब को राजनीति का अखाड़ा बनाया गया। भाजपा को छोड़कर लगभग सभी दलों के नेताओं को तथाकथित पत्रकारों ने आमंत्रित किया।
* NDTV जैसे चैनल ने प्रेस क्लब के बहाने फिर से सरकार पर एकतरफा हमला करना शुरू कर दिया।
* प्रेस क्लब के भीतर से देश के प्रधानमंत्री को भला-बुरा कहा गया। रवीश कुमार का भाषण सुन सकते हैं।
* पत्रकारों ने नेताओं के साथ मिलकर फैसला सुनाना शुरू कर दिया, जबकि अभी तो जांच भी शुरू नहीं हुई है।
कुल मिलाकर यह सवाल उठना चाहिए कि आखिर प्रेस क्लब में किसका कब्जा है। मेरी मांग है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि प्रेस क्लब में सिर्फ पत्रकारों को जगह मिले, नेताओं ने कैसे इस संस्थान के बहाने राजनीति शुरू कर दी है।