राज्यसभा चैनल से लेकर कई न्यूज चैनलों में आप उर्मिलेश जी को ज्ञान बांचते देखते होंगे! उत्तप्रदेश चुनाव में अखिलेश-राहुल गठजोड़ पर वो लट्टू हुए जा रहे हैं! आप सोच रहे होंगे कि इसमें क्या बड़ी बात है? तो बड़ी बात यह है कि उर्मिलेश अपने नाम के आगे तो ‘उर्मिल’ लगाते हैं, लेकिन जहां तक पत्रकारिता के क्षेत्र में चर्चा है, उनका वास्तविक नाम उर्मिलेश यादव है! और आजकल वह ‘यादव’ की भड़ैती कर रहे हैं!
यही नहीं, चर्चा यह भी है कि उनके एक ससुराल पक्ष के निकटतम रिश्तेदार ‘यादववाद’ के सहारे ही अखिलेश राज में पुलिस महकमे में बड़े उंचे पद पर तैनात हैं। अब वह अखिलेश यादव का भजन-कीर्तिन नहीं करेंगे तो और किसका करेंगे? लेकिन कम से कम खुद को पत्रकार तो मत कहिए? जातिवाद को प्रश्रय देने वाले, पांच साल में उत्तप्रदेश में गूंजी महिलाओं की चीख को अनसुना करने वाले और करीब 500 दंगे में झुलसे प्रदेश की सरकार के पक्ष में चैनलों पर बकैती करने वाले उर्मिलेश यादव जैसे लोग पत्रकारिता को छल रहे हैं और लोगों को धोखा दे रहे हैं!
इस छुपे सरनेम वाले कथित पत्रकार को सेना प्रमुख विपिन रावत के बयान पर भी ऐतराज है। हो भी क्यों नहीं? यादव-मुसलिम गठजोड़ का भविष्य उप्र में दांव पर जो लगा है? कश्मीर में आतंकी सेना के जवानों को मारे या आतंकी के पक्ष में वहां के लोग सेना पर पत्थरबाजी करें, आईएसआईएस व पाकिस्तान के झंडे लहराएं, उर्मिलेश यादव जैसे पत्रकार बड़े आराम से प्रेस क्लब और आईआईसी में हाथ में गिलास थामे बतकही करते मिल जाते हैं! लेकिन ज्योंही सेना के जवान जेहादियों पर कार्रवाई करे, सेना के पक्ष में उतरने वालों को देशद्रोही की श्रेणी में रखे, इनके अंदर का जातिवाद-संप्रदायवाद जग जाता है और ये बकैती करने न्यूज चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक पर उतर आते हैं।
उर्मिलेश यादव ने अपने फेसबुक पर लिखा है- ‘शायद मैं संविधान पढ़ नहीं पाया हूं। महाशय कृपया बताने का कष्ट करें, संविधान में किधर लिखा है कि सेना, पुलिस या अर्धसैनिक बलों की किसी गतिविधि, कार्रवाई या बयान पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है?’
सचमुच उर्मिलेश यादव जैसे खुद को वरिष्ठ पत्रकार की श्रेणी में रखने वाले लोगों ने संविधान ठीक से नहीं पढ़ा है। संविधान के अनुच्छेद-19(2) के खंड 2 से 6 तक को वो ठीक से पढ़ें। उसमें अभिव्यक्ति की आजादी पर कुछ प्रतिबंध आरोपित किए गए हैं। इसमें साफ-साफ भारत की संप्रभुता तथा अखंडता और राज्य की सुरक्षा के संबंध में प्रतिबंध लगाए गए हैं।
मिस्टर उर्मिलेश यादव कश्मीर में सेना और आतंकियों के मुठभेड़ के समय सेना पर पत्थर बरसाना और वहां पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाना साफ-साफ राज्य की सुरक्षा में हस्तक्षेप की श्रेणी में आता है। सुरक्षा में लगे सेना के प्रमख यदि उस सुरक्षा को नुकसान पहुंचा रहे आतंकियों के पक्ष में पत्थर लेकर उतरने वालों को देशद्रोही कर रहे हैं तो यह न केवल उनका संविधान प्रदत्त अधिकार है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) में उल्लेखित बातों की सुरक्षा भी वह कर रहे हैं। हां, महोदय आप जैसे लोग जरूर देशद्रोह कर रहे हैं, क्योंकि आप केवल सेना प्रमुख के बयान की निंदा नहीं कर रहे हैं, बल्कि पाकिस्तानी आतंकियों, पत्थरबाजों और पाकिस्तान का नारा लगाने वाले देशद्रोहियों का अप्रत्यक्ष समर्थन भी कर रहे हैं!
सुप्रीम कोर्ट के संतोष सिंह बनाम दिल्ली प्रशासन के मामले को ठीक से पढ़ें। उसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है- ‘ऐसे प्रत्येक भाषण को जिसमें राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर देने की प्रवृत्ति छुपी हो दंडनीय बनाया जा सकता है।’ महोदय आप जैसों को तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी देशद्रोही साबित करता है, क्योंकि आपके बयान राज्य को नष्ट करने वालों का अप्रत्यक्ष समर्थन कर रहे हैं।
उर्मिलेश यादव चिंतित हैं कि यूपी के दो नौजवान- उनके हम जाति अखिलेश यादव और बड़े सारे तथाकथित पत्रकारों की मालकिन के बेटे राहुल गांधी-ठीक से प्रधानमंत्री पर हमला नहीं कर पा रहे हैं। यादव जी लिखते हैं कि तीन सालों में समस्याओं का अंबार लगा है, लेकिन दोनों नौजवाद धारदार तरीके से हमला नहीं कर पा रहे हैं! महोदय, आपको किसने रोका है! अखिलेश ने आपके रिश्तेदार को उप्र में उंचे पद पर बैठाया है, आप खुलकर अपने नाम में सरनेम लगा लीजिए और मीडिया सलाहकार का पद मांग लीजिए! फिर उनके मंच पर चढ़कर धारदार तरीके से बकैती कीजिए, किसने रोका है? कम से कम आपके पत्रकार होने का यह मुखौटा तो उतरेगा!
उर्मिलेश यादव को न्यूज चैनलों पर सुनिए या उनके फेसबुक पोस्ट को देखिए। निराश हैं कि उप्र में उनके ‘यादव राज’ में सेंध लग रहा है। हताशा में कभी चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं, कभी अखिलेश को सलाह दे रहे हैं, कभी लिख रहे हैं कि सभी जातियों को यादवों के विरुद्ध गोलबंद किया गया है….मतलब उनके वाचन और लेखन में वह सबकुछ है, जो पत्रकारिता के दायरे में नहीं आता है!
पत्रकार जमीन पर उतर कर वास्तविक हालात का विश्लेषण करता है न कि नेताओं को सलाह देता है, न कि जातिवाद को बढ़ाने वाली बात करता है, न कि कभी दो नौजवानों पर रीझता है तो कभी उन्हें बिना मांगे सलाह देने उतरता है, न कि चुनाव आयोग द्वारा पांच चरणों में चुनाव कराए जाने पर व्यंग्य कसता है! यदि पांच चरणों में चुनाव से इतनी ही आपत्ति थी तो सही विश्लेषण करते हुए लेख लिखते? लेकिन नहीं, इनका मतलब तो केवल इतना है कि इनका ‘यादवराज’ और इनके राजा अखिलेश यादव सलामत रहे! सलामत रहने की दुआ ताली बजाते हुए कौन लोग करते हैं…उर्मिलेश यादव इससे तो आप वाकिफ ही होंगे!
Good Very Good Argument
उर्मिलेश जैसे पत्रकार पर देश के बुद्धिजीवियों को नाज है।
उर्मिलेश पर उंगली उठाने वाले और जातीय लांक्षण लगाने पहले अपने गिरेवान में ईमानदारी से झांककर देखें और गंदी मानशिकता से ऊपर उठें।
Dalla patrakar
Jativadi mansikta se upar uthiye mahashay , Mujhe Lagta hai sabse jyada problem aapko hi hai
Urmilesh ke mutabik kasmir samssya Bharat ki den hai isme Pakistan ka koi haath nahi hai .akhir hai to jnu ka hi pyada
पत्रकारिता का निष्पक्ष होना नितांत आवश्यक है, पत्रकार की कोई विचारधारा नहीं होती है विचारधारा से बंधा पत्रकार कभी निष्पक्ष तरीके से कार्य नहीं कर सकता। पत्रकारिता स्वयं एक विचार है।
वास्तव में भारत में किसी भी भी विद्वान व्यक्ति की पहले जाति ढूंढी जाती है तदुपरान्त उसकी प्रतिभा की हत्या की जाती है ।आज से नहीं आदि काल से, चाहे रामायण के शम्बूक ऋषि हों या महाभारत के एकलव्य ।
उर्मिलेश जी भाजपा का विरोध यानि राष्ट्र का विरोध!
Bakwas column
जब पूरा गोदी मिडिया मनुवादी व्यवस्था को स्थापित करने में लगा तब तुम्हें जातिवाद नजर नहीं आता लेकिन जब दूसरा कोई अपने समाज के लिए कुछ करता हैं तो तुम्हें पेट दर्द होने लगा हैं । अब बहुजनो कि बात करने बहुजन मिडिया भी आगे आए हैं ।।
JNU ka free ka kha ke degree ka farj to Ada karana padega akhir.