प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यू यार्क के ब्लूम्बर्ग वैश्विक बिज़नेस फोरम में दिये गये अपने वक्तव्य में भारत की परमाणु सप्लायर्स ग्रुप की सद्स्यता की प्रबल दावेदारी पर एक बार फिर ज़ोर दिया.
प्रधानमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा कि आज भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती परमाणु ऊर्जा का उत्पादन बढाने की है. भारत अपने शाश्वत ऊर्जा मिशन पर और भी दृढ़ रूप से आगे तभी अग्रसर हो पायेगा जब उसे परमाणु सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता में शामिल किया जाये.
न्यूकलियर सप्लायर्स ग्रुप यानि परमाणु सप्लायर्स ग्रुप एक ऐसी वैश्विक इकाई है जो कि दुनिया भर में होने वाले परमाणु व्यापार को नियंत्रित करती है, इस व्यापार को आगे बढ़ाने की शर्तें तय करती है और जो देश उसे लगता है कि परमाणु शक्ति का इस्तेमाल युद्द जैसी विध्वंसकारी क्रियाओं के लिये कर सकते हैं, उन पर प्रतिबंध लगाने से पीछे नहीं हटती.
2014 से छेड़ी भारत ने अपने सिविल न्यूकलियर प्रोग्राम को सशक्त करने की मुहिम
चीन से लेकर फ्रांस से लेकर ईस्टर्न यूरोप के कई छोटे छोटे देश भी इस ग्रुप के सदस्य है. ऐसे में आज के परिपेक्ष में जब भारत एक अहम शक्ति बनकर पूरे विश्व में उभर रहा है और एक तरह से एशिया और अफ्रीका का प्रतिनिधित्व कर रहा है, उसे इस ‘एलीट क्लब’ की सदस्यता से दूर रखने की बात कुछ विचित्र ही मालूम होती है. हालांकि न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप का गठन भारत के 1974 के प्रथम परमाणु परीक्षण के बाद ही हुआ था. और उस वक्त इसका उद्देश्य भारत को और परमाणु परीक्षण करने से रोकना और नवीनतम परमाणु टेक्नांलाजी से भारत को दूर रखना था. लेकिन तब और अब के हालात में ज़मीन आसमान का अंतर है. समय के साथ साथ इस ग्रुप में कई सदस्य जुड़ते चले गये. और पिछले कई वर्षों से भारत ने तेज़ी से अपने सिविल न्यूकलियर पोग्राम को सशक्त किया है. खासकर कि 2014 से लेकर अब तक भारत ने कितने ही देशों के साथ परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिये समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं. इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी लगभग सारी अंतराष्ट्रीय वार्ताओं में न्यूकलियर सप्लायर्स ग्रुप के लिये भारत की दावेदारी के समर्थन का मुद्द्दा उठाया है और इनमें से कई देशों के भारत के साथ मिलकर जारी किये गये संयुक्त वक्तव्यों में इस बात का पुख्ता प्रमाण है इन देशों ने औपचारिक रूप से भारत की एन एस जी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन करने की घोषणा की है.
सिवाय चीन के भारत की एन एस जी सदस्यता की दावेदारी से किसी को भी आपत्ति नहीं
सिर्फ चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जिसने भारत की न्युकलियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता को रोका हुआ है. उसने एक बार नहीं बल्कि कई बार अपनी वेटो पांवर का इस्तेमाल कर भारत को इस ग्रुप का सदस्य नहीं बनने दिया. इसकी वजह चीन यह बताता है कि भारत को इस ग्रुप का सदस्य बनने का अधिकार तभी है जब वह एन पी टी पर हस्ताक्षर करे. जबकि चीन के भारत को रोकने की असली वजह कुछ् और ही हैं. इसकी एक प्रमुख वजह चीन का सदाबहार मित्र पाकिस्तान है तो पाकिस्तान के साथ अपने आर्थिक और अन्य फायदों को देखते हुए चीन अपनी पाकिस्तान अपीज़मेंट पांलिसी के अंतर्गत बहुत से मुद्दों पर भारत का रास्ता रोकने का प्रयास करता है.
भारत की क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन के प्रयत्नों में परमाणु ऊर्जा निभा सकती है एक अहम भूमिका
भारत शाश्वत ऊर्जा के क्षेत्र में एक अहम भूमिका निभाने के पथ पर अग्रसर है. लेकिन ये कार्य दूसरे देशों, खासकर कि विकसित देशों के सहयोग के बगैर असंभव है. भारत के कुल ऊर्जा मिक्स में परमाणु ऊर्जा का योगदान 3 प्रतिशत है और इसके 2030 तक 6 प्रतिशत तक पहुंचने के अनुमान हैं. इसके विपरीत फ्रांस जैसे विकसित देशों के बिजली उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा परमाणु ऊर्जा से बनता है. एक ऐसे समय में जब भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर किये गये अंतराष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी पूरी प्रतिबद्धिता दिखा रहा है और अपने शाश्वत ऊर्जा उत्पादन को 450 गेगावाट तक ले जाना चाहता है, ऐसे में भारत को नवीनतम परमाणु टेक्नांलाजीज़ से दूर रखने का कोई औचित्य नहीं है. झां तक परमाणु टेक्नालाजी का उपयोग युद्द के लिये करने का सवाल है तो इतिहास गवाह है कि भारत ने आज तक कभी भी किसी दूसरे देश को लेकर कैसी तरह की आक्रामक पहल कभी नहीं की. जिस देश ने अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई तक अहिंसात्मक ढंग़ से लड़ी हो, उससे युद्द और हिंसा के खतरे के नाम पर उसे नवीनतम परमाणु टेक्नांलाजी से वंचित रखना हास्यासपद ही है. और अमरीका, फ्रांस समेत लगभग सभी मुल्कों को अब यह बात भली भांति समझ भी आ गयी है.