आईएसडी नेटवर्क। पीएम केयर्स फंड की कानूनी स्थिति पर, दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुनवाई में प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया कि फंड को धर्मार्थ ट्रस्ट के रुप में स्थापित किया गया है। सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि फंड का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। ये सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में नहीं है। पीएम केयर्स फंड की वैधता और क़ानूनी स्थिति को न्यायालय में लगातार चुनौती दी जा रही है। सन 2021 में इस फंड और PMNRF को अवैधानिक और शून्य घोषित करने, खातों का खुलासा करने व CAG से ऑडिट की मांग की गई थी।
इसी वर्ष फरवरी में लेखा परीक्षण के बयान से जानकारी मिली कि वित्त वर्ष 2020-21 में प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और राहत कोष (पीएम केयर्स फंड) में लगभग तीन गुना वृद्धि हुई। वृद्धि होने के बाद ये राशि दस हज़ार करोड़ से अधिक हो चुकी थी। ये आंकड़ा गत वर्ष फरवरी में बताया गया था। इस फंड के स्थापित होने के बाद से ही इसकी वैधता पर लगातार कोर्ट में सवाल उठाए जाते रहे हैं।
हालाँकि सरकारी पक्ष ने भी न्यायालय में सारे प्रश्नों का जवाब दिया है। पिछले दिनों से चल रही सुनवाई में याचिका में ये मांग रखी गई कि पीएम केयर्स फंड को RTI के दायरे में लाया जाए। इस पर पीएमओ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी कि पीएम केयर्स फंड’ सरकारी कोष नहीं है। इसमें दिया गया दान भारत की संचित निधि में नहीं जाता है, इसलिए इसके बारे में तीसरे पक्ष को कोई जानकारी नहीं दी जा सकती है।
हलफनामे में कहा गया कि ‘पीएम केयर्स फंड एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है और यह भारत के संविधान या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा या उसके तहत नहीं बनाया गया। ट्रस्ट का, न तो, भविष्य में कोई सरकारी मदद लेने का इरादा है, और न ही यह किसी सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण से किसी संस्था द्वारा वित्तपोषित ही है। साथ ही, न ही यह सरकार का कोई संसाधन है।’
याचिका सम्यक गंगवाल द्वारा दायर की गई है। जबसे ये मामला कोर्ट में आया, सरकार की ओर विस्तृत रिपोर्ट कभी पेश नहीं की गई। जुलाई 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक पन्ने का जवाब देने पर कड़ी फटकार लगाईं थी। विपक्षी दल कांग्रेस ने सन 2020 में इस मुद्दे को लेकर पारदर्शिता की मांग की थी। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने उस समय ट्वीटर पर लिखा
‘पीएम केयर्स फंड को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और रेलवे जैसे बड़े सरकारी उपक्रमों से काफी पैसा मिला है। यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री सुनिश्चित करें कि इस कोष का ऑडिट हो और पैसे लेने और खर्च करने का रिकॉर्ड जनता के सामने उपलब्ध हो। जब ये फंड लाया गया तो समाचारों में कहीं भी उल्लेख नहीं किया गया कि इसका सरकार से सीधा कोई संबंध नहीं है। न ही उस समय सरकार ने ये बात स्पष्ट की थी।
सरकार ने स्पष्टीकरण, मामला कोर्ट में आने के बाद दिया था। 2020 में ही पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताते हुए कुछ सेवानिवृत अधिकारियों ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र लिखा। इसमें कहा गया कि अगर यह एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है, तो सरकार के सदस्यों के रूप में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री ने अपने पदनाम और आधिकारिक पदों को कैसे दिया है? वे क्यों अपनी आधिकारिक क्षमता में इसके ट्रस्टी हैं, बतौर नागरिक नहीं?’