“अलाउद्दीन खिलजी” की बेटी “शहज़ादी फिरोज़ा” जिसने हिंदू राजकुमार के लिए दी अपनी जान जालौर के “वीरमदेव सोनगरा चौहान” की गौरवगाथा । क्यूँकि ये सच्चाई आपको कोई फ़िल्मकार बड़ेपर्दे पर दिखाने का साहस नहीं कर पायेगा, जबकि इसके विपरीत तो आपने कई फ़िल्मों में देखा होगा ।
1298 AD में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति अलुगखाखा और नसरतखां ने गुजरात विजय अभियान के लिए जालोर के कान्हड़ देव से रास्ता माँगा, परन्तु कान्हड़ देव ने आक्रांताओं को अपने राज्य से होकर आगे बढ़ने की इजाजत नहीं दी । अतः खिलजी के सेना अन्य रस्ते से गुजरात पहुंची ।
जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना सोमनाथ मंदिर को तोड़ने के बाद मंदिर में रखे शिवलिंग को लेकर दिल्ली जा रही थी जालोर के राजा कान्हड़ देव चौहान को शिवलिंग के बारे में पता लगा तो उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर हमला कर दिया। इस युद्द में खिलजी की सेना हार हुई ।
जीत के बाद कान्हड़ देव ने उस शिवलिंग को जालौर में स्थापित करवा दिया। खिलजी इस हार को बर्दाश्त नहीं कर सका। लेकिन उस समय खिलजी का ध्यान रणथम्बोर और चित्तोड़ विजय की ओर ज्यादा था अतः उनको जीतकर खिलजी ने 1305 AD में “ऍनउलमुल्क सुल्तान” के साथ सेना जालोर भेजी लेकिन खिलजी के ।
सेनानायक ने आदरपूर्वक संधि का आश्वासन दिलाकर कान्हड़ देव को दिल्ली भेज दिया , और फिर उनके पुत्र वीरमदेव भी दिल्ली दरबार में रहने लगे। विरामदेव उस समय के जालोर के सबसे बड़े योद्धा थे। पहली नजर में ही शहज़ादी वीरमदेव को प्रेम कर बैठी।

फिरोजा का वीरमदेव के प्रति प्रेम— कान्हड़देव के पुत्र वीरमदेव एक सुडौल बलवान शरीर के तेजवान राजवंशी थे । उनकी वीरता में एक दोहा प्रसिद्ध है:- “सोनगरा वंको क्षत्रिय अणरो जोश अपार। झेले कुण अण जगत मे वीरम री तलवार।”
दिल्ली दरबार में रहने के दौरान “शहजादी फिरोजा” को उनसे प्रेम हो गया। चूँकि उस समय इस तरह के राजनैतिक विवाह सम्बन्ध प्रचलन में नहीं थे। इसलिए फिरोजा और वीरमदेव का विवाह संभव नहीं हो पाया। लेकिन फिरोजा का वीरमदेव के प्रति प्रेम बहुत ज्यादा बढ़ गया था वह मन ही मन वीरमदेव को अपना पति मान चुकी थी।
शहजादी कहने लगी, “वर वरूं वीरमदेव ना तो रहूंगी अकन कुंवारी” अर्थात निकाह करूंगी तो वीरमदेव से नहीं तो अक्षत कुंवारी रहूंगी। इधर वीरमदेव ने सामाजिक और कुल की परम्पराओ को ध्यान में रखते हुए फिरोजा से विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
कहते हैं कि वीरमदेव ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि — “मामो लाजे भाटियां, कुल लाजे चौहान, जे मैं परणु तुरकणी, तो पश्चिम उगे भान।” अर्थात : अगर मैं तुरकणी से शादी करूं तो मामा (भाटी) कुल और स्वयं का चौहान कुल लज्जित हो जाएंगे और ऐसा तभी हो सकता है जब सूरज पश्चिम से उगे और इस कारणवश युद्ध की सम्भावना और प्रबल हो गयी।
फिर खिलजी ने जालोर पर आक्रमण के लिए 5 वर्षो तक कई सैन्य टुकड़ियां भेजी, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी और आख़िरकार 1310 में स्वयं खिलजी एक बड़ी सेना लेकर जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर आक्रमण किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त व मांस डलवा दिया जिससे पीने का पानी दूषित हो गया।
इसलिए सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध की घोषणा करके केसरिया बाना पहन लिया। जिससे रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीर शाका करके अन्तिम युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद खिलजी ने अपनी सेना को जालौर पर आक्रमण का हुक्म देकर स्वयं दिल्ली आ गया । उसकी सेना ने मारवाड़ में लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया ।
आदि वीर शाका करके अन्तिम युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद खिलजी ने अपनी सेना को जालौर पर आक्रमण का हुक्म देकर स्वयं दिल्ली आ गया । उसकी सेना ने मारवाड़ में लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया ।
फिर कान्हड़ देव ने कुछ जगह खिलजी सेना पर आक्रमण कर उसे हराया और दोनों सेनाओ के बीच कई दिनों तक युद्ध चलता रहा । आखिरकार खिलजी ने जालौर के लिए सेनापति कमालुद्दीन को विशाल सैन्यदल के साथ जालौर भेजा फिर सेनापति ने जालौर दुर्ग के चारों और बड़ा घेरा डाल युद्ध किया लेकिन जालौर नहीं जीत सका और वापस जाने लगा तभी कान्हड़ देव के एक सरदार विका ने जालौर से लौटती खिलजी सेना को दुर्ग के गुप्त और खुले रस्ते का रहस्य बता दिया विका के इस विश्वासघात के कारण विका की पत्नी ने विका को जहर देकर मार दिया इस विश्वासघाती की वजह से जालौर पर खिलजी सेना का कब्जा हो गया ।
1311 में कान्हड़ देव ने वीरमदेव को गद्दी पर बैठाकर अंतिम युद्ध किया । जालौर दुर्ग में रानियों के अलावा अन्य औरतों ने जौहर किया और कान्हड़ देव शाका करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । वीरमदेव ने अपने शाशनकाल में साढ़े तीन साल युद्ध में बिताए । और फिर वीरमदेव ने भी केसरिया बाना पहन कर अंतिम युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । तथा दुर्ग की महिलाओं ने जौहर कर लिया | वीरमदेव ने 22 वर्ष की अल्पायु में ही युद्ध में वीरगति पाई।
वीरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की “सनावर” नाम की धाय भी युद्ध में सेना के साथ आई थी वो वीरमदेव का मस्तक काट कर उसे सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | और ऐसा कहते है कि जब वीरमदेव का मस्तक स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सामने लाया गया तो मस्तक ने मुँह फेर लिया था।
तब व्यथित शहजादी फिरोजा ने अपनी कथा सुनाई “तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें । भो-भो रा भरतार, शीश न धूण सोनीगरा ।। ” अथार्त- सोनगरे के सरदार तू अपना सिर मत घुमा, तू मेरे जन्म-जन्मांतर का भरतार है। आज मैं तुरकणी से हिन्दू बन गई और अब अपना मिलन अग्नि की ज्वाला में होगा।
तब फिरोजा ये कहते हुए वीरमदेव का कटा सिर गोद में लेकर, हिन्दू सुहागिन का भेष धारण कर वीरमदेव की चिता पर सती हो गई। आज भी जालौर की सोनगरा की पहाड़ियों पर स्थित पुराने किले में फिरोजा का समाधि स्थल है, जिसे फिरोजा की छतरी के नाम से जाना जाता है।

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