
चाटुकारों यह तो बताओ कि आखिर प्रियंका गांधी से इतना डर क्यों रहे हैं राहुल?
2014 लोकसभा चुनाव के बाद जब भी देश के किसी भी राज्य में कांग्रेस पार्टी की हार हुई कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर नारे लगाए ‘ प्रियंका लाओ देश बचाओ’ मीडिया जब भी यह सवाल कांग्रेस के प्रवक्ताओं से करती थी कि क्या राहुल गांधी में दम नहीं है ! बिना प्रियंका के पार्टी चल नहीं सकती! पार्टी प्रवक्ता इन सवालों को टाल देते थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी हार के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही थी। हाल ही में 3 बड़े राज्यों में कांग्रेस की वापसी से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार तो हुआ लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस तरह से सपा बसपा ने कांग्रेस को झटका दिया और फिर बिहार में तेजस्वी यादव ने जो संकेत दिए उससे कांग्रेस पार्टी को लगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में कहीं उसका सुपरा न साफ हो जाए इसलिए कांग्रेस पार्टी ने तुरूप का इक्का के रूप में प्रियंका गांधी को का दांव खेला है।
कांग्रेस पार्टी के लगातार होती हार और मोदी के सामने राहुल गांधी की लगातार बनती पप्पू वाली छवि से वंश वादी और चाटुकारिता केबल पर ऊर्जावान पार्टी लगातार हताश हो रही थी उसे हमेशा लगता था कि प्रियंका गांधी का तेजस्वी चेहरा ही पार्टी को अब बचा सकता है कांग्रेस कार्यकर्ता लगातार मांग कर रहे थे कि प्रियंका गांधी की कांग्रेस पार्टी में इंट्री हो। सालों पुरानी पार्टी कार्यकर्ताओं की मांग को राहुल गांधी ने तब सुना जब उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश में अब बची कुची रायबरेली और अमेठी की सीट पर काबिज होना भी उनके लिए मुश्किल है।
ऐसे में चुपके से कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी किया गया जिसमें बीच के कॉलम में प्रियंका गांधी की पार्टी में इंट्री की धमाकेदार खबर थी। सवाल अहम यह की राहुल गांधी ने जो फैसला लिया जिसका इंतजार पार्टी कार्यकर्ताओं को सालों से था। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता लगातार जिस प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की तस्वीर देखते रहे है। कांग्रेस की बेरा पार कराने की संभावना जिस प्रियंका में लोग देख रहे है उस प्रियंका की पार्टी में इंटर की खबर को दबा कर क्यों पेश किया गया उससे भी हम यह कि प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश के एक कोने का महासचिव क्यों बनाया गया जबकि वह आज भी वो वशवादी चरित्र वाले चाटुकारों की पार्टी संजीवनी है सबसे बड़ी ताकत है। उनकी पार्टी में इंट्री पर दिल्ली से लेकर रायबरेली तक में जो उत्साह दिखा वह काफी कुछ कह रहा है।
फैसला राहुल गांधी ने लिया लेकिन खौफ उत्तर प्रदेश में माया और अखिलेश के अंदर के बढ़ गया। परेशानी तो बीजेपी की भी बढ़ी है ।लेकिन डर उसके अंदर ज्यादा दिख रहा जिसने यह फैसला लिया है। प्रियंका की पार्टी में इंट्री से गांधी नेहरू परिवार के शुभचिंतकों को लगता था पार्टी में नई जान आ जाएगी लेकिन इस आंनद की अनुभूति को वह खौफ सता रहा है जो किस बात की चिंता बढ़ा रहा है कि कहीं प्रियंका का कद राहुल से बड़ा ना हो जाए यह चिंता राहुल की मम्मी को भी है। उनकी सिपहसालार अहमद भाई पटेल को भी है। यही कारण है कि जब जब कांग्रेस डूबती रही पार्टी ने प्रियंका का सहारा तो लिया लेकिन उसका कद रायबरेली और अमेठी से बाहर बढ़ने ही नहीं दिया।
प्रियंका ने कभी अमेठी और रायबरेली के बाहर पार्टी का प्रचार नहीं किया । अबकी बार 2019 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस को अपना वजूद खत्म होता दिखा ।उत्तर प्रदेश में माया और अखिलेश ने कांग्रेस पार्टी को अमेठी और रायबरेली के बाहर ना सोचने को मजबूर कर दिया तो कांग्रेस के पास प्रियंका के अलावा कोई चारा नहीं था। बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी ने, राहुल गांधी ने, प्रियंका गांधी को सिर्फ उत्तर प्रदेश के एक कोने में समेट कर रख दिया। देश के इतिहास में कभी भी गांधी नेहरू परिवार के बड़े चेहरे को इस तरह कोने में नहीं समेटा गया। तो क्या प्रियंका गांधी से भाजपा ,सपा और बसपा के अपेक्षा राहुल गांधी को डर लग रहा है। जिस प्रियंका की पार्टी में एंट्री से 24 अकबर रोड के कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय से लेकर रायबरेली और अमेठी समेत देश के कोने-कोने में उत्साह है, उस प्रियंका गांधी को सिर्फ उत्तर प्रदेश के एक कोने में समेट कर क्यों रखा गया ? यह सवाल तो निश्चित रूप से अहम हैं। सवाल विपक्षी उठा रहे है ।रविशंकर प्रसाद भी पूछ रहे हैं कि वंशवादी पार्टी में प्रियंका की इंट्री कोई बड़ी बात तो नहीं।लेकिन सवाल अहम यह कि उन्हें इतनी छोटी जिम्मेदारी क्यों दी गई ? भाजपा के मंगल पांडे भी सवाल करते हैं कि प्रियंका राहुल से बेहतर नेतृत्व दे सकती हैं फिर उन्हें उत्तर प्रदेश के कोने में क्यों समेटा गया ।देश और पार्टी से ज्यादा महत्ता गांधी परिवार की परिक्रमा को देने में ,अपना वजूद कायम रखने वाले परजीवी वंशवादी चरित्र वाले हर कांग्रेसियों को सवाल सता रहा है।
इस हाल में तो प्रियंका कांग्रेस की डूबती नैया को मझधार में कुछ पल के लिए उम्मीद तो जगा सकती है बेरा पार नहीं कर सकती।
URL: priyanka appointment no surprise in family oriented party, why fear for rahul
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