हमारे फिल्म उद्योग में पिछले कुछ वर्षों से ऑटोबायोग्राफी बनाने का चलन हुआ है। इन आत्मकथाओं के ढेर में कुछ अनमोल रत्न भी हैं लेकिन वे बहुत ही कम हैं। इधर बाहुबली की विराट सफलता की नकल करने के फेर में कुछ निर्माता-निर्देशक भारत के पौराणिक नायकों पर फिल्म बनाने के प्रयास करते देखे गए हैं। कई लोगों ने महाभारत और रामायण पर फिल्म बनाने का विचार तो किया लेकिन इन ग्रंथों की विशालता देखकर विचार त्याग दिया।
वर्तमान में ‘दंगल’ निर्देशक नीतेश तिवारी महाभारत प्रोजेक्ट पर शोध कार्य करने में जुटे हुए हैं। ओम राउत की ‘आदिपुरुष’ तो जल्दी पूर्ण होकर रिलीज के लिए तैयार हो जाएगी। ओम राउत की नीयत पर हम विश्वास कर सकते हैं लेकिन मधु मेंटाना जैसे चरसी का क्या भरोसा करे। मधु मेंटाना नाम आपके लिए नया हो सकता है लेकिन नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के लिए ये नाम नया नहीं है।
श्रीमान मधु मेंटाना का ज़िक्र यहाँ इसलिए हो रहा है क्योंकि उन्होंने रामायण पर एक थ्रीडी फिल्म बनाने की घोषणा की है। इस फिल्म के लिए उन्होंने मुख्य कलाकारों में ऋत्विक रोशन और दीपिका पादुकोण को लेने का मन बनाया है। 300 करोड़ की लागत से बनने जा रही इस फिल्म के ख़बरों से मनोरंजन मीडिया पटा पड़ा है। फिल्म के बारे में जानने से पहले मधु के बारे में जानना आवश्यक है।
इनका पूरा नाम मधु मेंटाना वर्मा है। मधु रिश्ते में राम गोपाल वर्मा के भाई लगते हैं और नीना गुप्ता की बेटी मसाबा से उन्होंने विवाह किया है। वे हिन्दी, तमिल, तेलगु और बंगाली फिल्मों में पैसा लगाते हैं। गत वर्ष जब अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध हत्या के बाद मुंबई में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने बॉलीवुड में ड्रग्स के विरुद्ध अभियान चलाया तो मधु का नाम भी आया था।
एनसीबी के समन के बाद उनसे पूछताछ भी की गई थी। ये क्या कम हैरानी की बात है कि ये व्यक्ति ड्रग्स समस्या पर बनी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का सह निर्माता था। मैंने चेताया था कि बॉलीवुड में पनप रहे ड्रग्स के घोंसलों पर हाथ डालने की प्रतिक्रिया बॉलीवुड इस तरह की फिल्मों से देने जा रहा है। रामायण संपूर्ण विश्व के हिन्दुओं के लिए वही मूल्य रखता है, जो विश्वभर के ईसाईयों के लिए बाइबिल का मूल्य है।
रामायण पर एक ऐसा निर्माता फिल्म बनाने जा रहा है, जो स्वयं ड्रग्स के जंजाल में फंसा हुआ है। उसकी फिल्म में सीता का किरदार दीपिका पादुकोण करने जा रही हैं। दीपिका पादुकोण को सीता के रुप में हिन्दू समाज कितना स्वीकार कर सकेगा, ये आप अच्छी तरह से जानते हैं। जेएनयू स्टैंड से लेकर ड्रग्स काण्ड में नाम आने के बाद उनकी सामाजिक छवि सीता के किरदार के लिए उपयुक्त रहेगी क्या?
ऋत्विक रोशन ग्रीक गॉड से अवश्य दिखाई देते हैं लेकिन राम के चरित्र के लिए फिट नहीं बैठेंगे। रामायण के लिए तो एक विश्व्यापी टेलेंट हंट होना चाहिए। हज़ारों कलाकारों में से चुने जाने चाहिए ‘राम और सीता’। ये कलाकार ऐसे हो कि कभी किसी फिल्म में दिखाई नहीं दिए हो, लोगों के लिए सर्वथा अपरिचित हो। तब जाकर आप रामायण को आदर्श ढंग से बनाने के बारे में सोच सकते हैं।
रिचर्ड एटनबरो की सर्वकालिक महान फिल्म ‘गाँधी’ के किरदार के लिए बेन किंग्सले ने सयंमित जीवन जीना शुरू किया था। वे मांसाहार छोड़ चुके थे। वे शूटिंग पूर्ण होने तक शराब से दूर रहे। तब जाकर वे ‘गाँधी’ को कैमरे के सामने जी सके। एक आत्मकथा कई वर्षों तक याद रखी जाए, उसके लिए ऐसा समर्पण करना पड़ता है। क्या ऋत्विक और दीपिका राम और सीता के चरित्र को निभाने से पूर्व बेन किंग्सले की तरह अंतर्मन शुद्ध कर सकेंगे?
चरसियों की ये गैंग रामायण बनाने चली है। देश के हिन्दू समाज को होने वाली अकथनीय पीड़ा से उन्हें रामजी ही बचा सकते हैं अब। फिर दोहराता हूँ। वह समिति कहाँ है, जो प्रकाश जावड़ेकर जी ने फिल्मों पर निगरानी करने के लिए बनाई थी। क्या इस प्रकरण में भी देश को उत्तरप्रदेश सरकार के भरोसे पर रहना होगा? ‘टीम तांडव’ की धृष्टता पर जैसे उत्तरप्रदेश सरकार ने संज्ञान लिया, क्या वैसे ही मधु मेंटाना के दुःसाहस पर संज्ञान लेना होगा?
प्रकाश जावड़ेकर के पूर्व रिकार्ड से स्पष्ट है कि ये फिल्म बनकर प्रदर्शित हो जाएगी लेकिन उनकी कथित अदृश्य समिति कुछ कर नहीं सकेगी। ये परंपरा कितनी खतरनाक और देश तोड़क हो सकती है, इस पर मंत्री जी ने कभी विचार किया ही नहीं है। हम नहीं जानते कि मधु ने रामायण पर 300 करोड़ की धनराशि किस उद्देश्य से लगाने का निश्चय किया है।
उनके निजी व्यक्तित्व और कारगुजारियों को देखकर ऐसा तो कतई नहीं लगता कि उन्होंने भक्ति भाव में करोड़ों खर्च करने की ठान ली है। आखिर उनका उद्देश्य क्या है और दीपिका इस फिल्म में क्यों है? इन प्रश्नों का जवाब योगी आदित्यनाथ जी को आज से ही सोचना शुरु कर देना चाहिए। सोचना उन्हें ही होगा।
आज मनोरंजन उद्योग के विषैले दंश को कुचलने में केवल योगी आदित्यनाथ ही एकमात्र विकल्प दिखाई देते हैं। प्रकाश जावड़ेकर जैसे दूसरों के आंगन में कूदने वाले मंत्रियों के वश की ये बात नहीं है और न ही रामजी के प्रति उनकी कोई श्रद्धा दिखाई देती है। अब राम जी ही बचाए मनोरंजन उद्योग से।