आपने गौर किया है कि पूरे चुनाव अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग सभी मीडिया हाउस को अपना साक्षात्कार दिया, लेकिन देश की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी पीटीआई को साक्षात्कार क्यों नहीं दिया?
क्या आपने ध्यान दिया है कि प्रधानमंत्री के विदेश दौरे में पीटीआई का प्रतिनिधि क्यों नहीं जाता?
दरअसल पीटीआई यानी प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया का पूरा चरित्र अब ‘पाकिस्तान ट्रस्ट इन इंडिया’ का हो चुका है। कहीं प्रेस ट्रस्ट आॅफ इंडिया के संपादक खुद को Pakistan Tehreek-e-Insaf (PTI) के कार्यकर्ता तो नहीं मानने लगे हैं? PTI के संपादक और उनका मंडल मोदी विरोध में इतने अंधे हो चुके हैं कि वह कब भारत का विरोध करने लगे, उन्हें पता ही नहीं चला। इस साल की कुछ घटनाएं तो यही दर्शाती हैं कि पीटीआई मोदी का विरोध करते-करते भारत का विरोध करने लगी है।
14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमले में हमारे देश के 40 से अधिक जवान शहीद हो गये। इस हमले में पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने की पुष्टि हुई। पूरा देश शोकाकुल था, लेकिन सूत्रों के अनुसार, पीटीआई में इसे लेकर खुशी का माहौल था कि अब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे।
पीटीआई के प्रमुख संपादक विजय जोशी, कार्यकारी संपादक जी.सुधाकर जोशी और उप कार्यकारी संपादक प्रियंका टिक्कू के नेतृत्व में पूरा संपादक मंडल इससे इस कदर खुश था कि हमले की अगली ही रात 15 फरवरी को दिल्ली के कनाॅट प्लेस स्थित Hot Mess Kitchen and Bar
M-11, Block M, Middle Circle, Connaught Place, New Delhi, Delhi 110001 . It’s in the lane behind Odeon Social. में जमकर पार्टी की।
कहने को यह पार्टी पूर्व निर्धारित था, लेकिन जब देश पर आतंकवादी हमला हुआ हो तो देश के मूर्धन्य पत्रकारों की भूमिका फिर क्या हो जाती है? क्या यह पार्टी निरस्त नहीं की जा सकती थी? चूंकि पीटीआई के प्रमुख संपादक विजय जोशी पीटीआई के पूर्व कर्ताधर्ता एम.के.राजदान की कृपा से पैरा शूट से उतरे हैं, इसलिए वह भी उनकी ही तरह मोदी विरोध में हर सीमा लांघने को तैयार हैं। एम.के.
राजदान एनडीटीवी की वरिष्ठ एंकर निधि राजदान के पिता हैं। यह दोनों पिता-पुत्री घोषित वामपंथी और मोदी-विरोधी हैं।
सूत्र बताते हैं कि इस संपादक मंडल में कुछ संपादकों ने कहा भी कि जब देश पर संकट उत्पन्न है तो हमें पार्टी निरस्त कर देना चाहिए, लेकिन उन्हें डराया गया। दो महिलाओं को पैसा वसूल कर पार्टी करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। उन महिलाओं ने विरोध करने वालों को साफ कहा कि एडिटर-इन-चीफ इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे!
पीटीआई के संपादक मंडल की भारत और भारतीय वायु सेना के प्रति अविश्वास कुछ दिन बाद ही जाहिर हो गया। जब भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया तो सुबह साढ़े तीन-चार बजे के हमले को PTI ने सुबह 9 बजकर 55 मिनट पर जारी किया। पीटीआई ने इस खबर को पूरी तरह से दबाने का प्रयास किया ताकि अधिकतम समय तक लोगों को इस सूचना से महरूम रखा जाए। लेकिन जब सभी चैनल खबर चलाने लगे तो हार-थक कर पीटीआई ने इसे जारी किया। क्या मोदी विरोध में पीटीआई के संपादक भारतीय वायु सेना के एयर स्ट्राइक को झुठलाने का प्रयास कर रहे थे?
पीटीआई के संपादक मंडल का पुलवामा और बालकोट को लेकर रवैया साफ दर्शाता है कि वह प्रो-पाकिस्तानी स्टेंड लिए हुए थे। प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में पीटीआई देश के विरोध पर एक तरह से उतारू थी।
गौरतलब है कि पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी को ब्लैक आउट करना हो या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने जैसी बड़ी खबर को दबाने का प्रयास करना हो, पीटीआई एक न्यूज एजेंसी से अधिक मोदी हेटर के रूप में पहले कई दफा नजर आ चुकी है। लेकिन पुलवामा और बालाकोट के प्रति पीटीआई संपादकों का रवैया यह दर्शाता है कि यह न्यूज एजेंसी भारत नहीं, पाकिस्तान के हित में काम कर रही हो!
क्रमशः
दुर्भावना से लिखा गया लेख। तथ्यों को जानबूझकर तोड़ा मरोड़ा गया लगता है!
जिस भी भावना से लिखा गया हो। तुम्हारे अनुसार जब तोड़ – मरोड़ ही दिया है तो बत्ती बनाकर अपने पिछवाड़े में देलो, जब दो हो जाये तो अपने आकाओं के साथ मिल बांटकर kiss ऑफ लव करते हुए खा लेना। मेंटल चूतिये।
I feel GOI should bring a bill for privatization of PTI. Before privatization all its assets like land, building and cash reserve etc. should be transferred to some new organization. After that GOI should initiate one new government news agency.